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सियासत में सधे कदमों से आगे बढ़े शिवराज

ByNI Desk,
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सियासत में सधे कदमों से आगे बढ़े शिवराज
भोपाल। मध्य प्रदेश के चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान ने चार दशक से ज्यादा के अपने राजनीतिक जीवन में धीरे और सधे कदम बढ़ाए हैं। उन्होंने टकराव के बजाए समन्वय और सहयोग की राजनीति पर ज्यादा जोर दिया है। यही कारण है कि इस सियासी सफर में उनके दुश्मन कम और दोस्त ज्यादा बने हैं। चौहान एक किसान परिवार से आते हैं। उनका किसी सियासी परिवार से दूर-दूर तक नाता नहीं रहा हैं। उन्होंने हर मंजिल को अपने परिश्रम और समर्पण के बल हासल किया है। बीते चार दशक से ज्यादा के उनके सियासी सफर पर गौर करें तो पता चलता है कि सीहोर जिले के जैत में किसान परिवार में पांच मार्च 1959 को जन्मे चौहान ने सियासी पारी की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से 1977-78 में की थी। चौहान ने शुरुआत में भोपाल में छात्र राजनीति की। अभाविप में कई अहम पदों पर रहे। उनके जीवन में बड़ा बदलाव तब आया, जब उन्हें 1990 में विधानसभा का चुनाव लड़ने का मौका मिला। महज एक साल विधायक रहे, तभी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा गया। चौहान ने वर्ष 1991 में विधायक पद से इस्तीफा दिया और विदिशा से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की। यहां से चौहान की सफलता की कहानी आगे बढ़ी और फिर उन्होंने वर्ष 2018 तक पीछे मुड़कर नहीं देखा। दसवीं लोकसभा में सांसद चुने जाने के बाद पार्टी ने चौहान को संगठन में सक्रिय करने के लिए राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी। वहीं चौहान ने लगातार पांच बार विदिशा से लोकसभा का चुनाव जीता। उनकी संगठन क्षमता का उपयोग करते हुए पार्टी ने वर्ष 2005 में उन्हें प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी, राज्य में भाजपा की सरकार वर्ष 2003 में बन चुकी थी। इसी दौरान पार्टी ने बाबू लाल गौर के स्थान पर चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। चौहान ने 29 नवंबर, 2005 को राज्य के मुख्यमंत्री पद की पहली बार शपथ ली। उसके बाद वह लगातार दो और चुनाव जीते और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया। चौहान दूसरी बार 12 दिसंबर, 2008 को मुख्यमंत्री बने। उसके बाद उन्होंने आठ दिसंबर, 2013 को तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उनकी इस सफलता पर वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में ब्रेक लगा। चौहान ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बुधनी से रिकार्ड जीत दर्ज की, मगर वह पार्टी को बहुमत नहीं दिला पाए। भाजपा को 109 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 114 सीटें हासिल हुईं। इस स्थिति में बसपा, सपा और निर्दलीय का कमलनाथ को समर्थन मिला और वे मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस की यह सरकार महज 15 माह ही चली और 22 विधायकों की बगावत के चलते सरकार गिर गई और चौहान फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं। चौहान की भाजपा के कार्यकर्ता से लेकर नेताओं के बीच गहरी पैठ है। उनके विरोधी भी हैं, मगर समर्थक कहीं ज्यादा हैं। यही कारण है कि उनको चौथी बार मुख्यमंत्री बनने से रोकने की कई नेताओं ने कोशिश की मगर सफलता नहीं मिली।
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