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इस साल भी कावड़ यात्रा में रोड़ा बना कोरोना, चारधाम यात्रा भी की गई रद्द

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इस साल भी कावड़ यात्रा में रोड़ा बना कोरोना, चारधाम यात्रा भी की गई रद्द
देहरादून |  कोरोना ने पिछले मार्च 2020 से कोई भी आयोजन नहीं होने दिया है। पिछले साल से देश में कोई भी आयोजन नहीं हो रहे है। सावन के महीने से शुरु होने वाली कावड़ यात्रा पर इस बार भी उत्तराखंड सरकार ने प्रतिबंध ( kawad yatra banned ) लगा दिया गया है। सावन का पवित्र महीने के पहले दिन से या उससे पहले से शिव भक्त गंगाजल लेने के लिए पैदल जाते है। और अपने इलाके में आकर शिवलिंग पर उस जल को अर्पित करते है। कुछ कावड़िये ऐसे भी होते है जो गौमुख तक गंगाजल लेने पहुंच जाते है। गौमुख जहां से गंगा नदी का उद्गम हुआ था। यह दूसरा साल है जब कावड़ यात्रा पर रोक लगाई गई है। कावड़ यात्रा ही नहीं चारधाम यात्रा पर भी सरकार ने हाइकोर्ट के आदेश के बाद रोक लगा दी गई है।

चारधाम यात्रा भी रोकी गई kawad yatra banned 

चारधाम यात्रा को लेकर कई बार निर्णय बदला जा चुका है। लेकिन सोमवार को हाइकोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी थी। इके बाद भी उत्तराखंड सरकार ने चारधाम यात्रा को लेकर गाइडलाइन ज़ारी कर दी। लेकिन फिर सरकार ने भी भक्तों के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए आखिरकार चारधाम यात्रा पर अगले आदेश तक रोक ( kawad yatra banned ) लगा दी गई है। चारधाम यात्रा 7 जुलाई तक रोकी गई है। हाइकोर्ट ने सरकार से कहा है कि श्रद्धालुओं के ऑनलाइन दर्शन की व्यवस्था की जाएं।

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धार्मिक स्थल बंद होने से होगा भारी नुकसान

उत्तराखंड सरकार ने कोरोना संबंधी लॉकडाउन में राहत देने के लिए जो एसओपी जारी किया, उसमें पर्यटन क्षेत्र को बड़ी राहतें दीं। लेकिन दूसरी तरफ, धार्मिक पर्यटन या यात्राओं पर फिलहाल प्रतिबंध जारी हैं। आगामी 25 जुलाई से 6 अगस्त के बीच होने वाली कांवड़ यात्रा ( kawad yatra banned ) रद्द कर दिए जाने से बताया जा रहा है कि राज्य के धार्मिक पर्यटन उद्योग को एक बार फिर झटका लग सकता है। झटका इसलिए भी तय है क्योंकि हाई कोर्ट के आदेश के बाद चार धाम यात्रा भी जल्द शुरू होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। इससे लोगों के और राजस्व में भी भारी घाटा होने की संभावना है। उत्तराखंड के लोग चारधाम यात्रा से अपने परिवार का पेट पालते है। पहाड़ी लोग छह महीने तक इंतज़ार करते है चारधाम यात्रा का। लेकिन पिछले वर्ष से यात्रा ना होने के कारण वहां के लोग बहुत मायूस हो गए है।

कितना है कांवड़ यात्रा का कारोबार?

कांवड़ यात्रा राज्य में बेहद लोकप्रिय धार्मिक परंपरा है, जिसके चलते हरिद्वार और ऋषिकेश के होटल, आश्रम, गेस्ट हाउस और धर्मशालाओं समेत भोजनालयों में हर साल कांवड़ियों की इतनी भीड़ उमड़ती रही है कि जगह कम पड़ने की नौबत पेश आती थी। पीटीआई ( kawad yatra banned ) की एक खबर की मानें तो कांवड़ यात्रा के दौरान दो हफ्तों के भीतर हरिद्वार में 150 करोड़ रुपये का राजस्व पैदा होता था, जो कि अब शून्य रह जाएगा। अगर ऋषिकेश, गौमुख और गंगोत्री के कारोबार को भी हरिद्वार के आंकड़ों में जोड़ा जाए तो करीब 500 करोड़ सालाना का राजस्व हुआ करता है। यही नहीं, कांवड़ यात्रा के रद्द होने से उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा के उन छोटे दुकानदारों का भी बड़ा नुकसान होगा, जो इस दौरान अपनी दुकानें लगाया करते थे। बता दें कि उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में धार्मिक पर्यटन उद्योग का बड़ा हिस्सा है, लेकिन इस साल भी महामारी के प्रकोप के चलते राज्य को बड़ा झटका लगना तय है।
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