नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र तथा दिल्ली सरकार के बीच के विवाद पर बुधवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।आम आदमी पार्टी (आप) नीत दिल्ली सरकार ने सेवाओं के नियंत्रण लेकर केंद्र के साथ विवाद में शक्तियों का स्पष्ट ‘सीमांकन’ करने का अनुरोध किया। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रखने से पहले लगभग साढ़े चार दिनों तक क्रमशः केंद्र और दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और वरिष्ठ अधिवक्ता ए. एम. सिंघवी की दलीलें सुनीं।
सिंघवी ने यह कहते हुए अपने प्रत्युत्तर प्रस्तुत किए, मुझे उम्मीद है कि इस बार सीमाएं स्पष्ट रूप से निर्धारित होंगी। उन्होंने कहा कि दिल्ली में सिविल सेवा बोर्ड का अस्तित्व दर्शाता है कि राष्ट्रीय राजधानी अन्य केंद्र शासित प्रदेशों के बराबर नहीं है, जहां इस तरह के सेवा बोर्ड नहीं हैं।
अपनी दलीलें पेश करने से पहले, सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि एक धारणा बनाई गई है कि दिल्ली सरकार के पास कोई शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा था, मेरी बुनियादी दलीलें यह हैं कि हम इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकते कि हम देश की राजधानी के साथ काम कर रहे हैं और केंद्र सरकार के पास इसके प्रशासन में एक बड़ी भूमिका है। उन्होंने कहा कि सेवाएं और उन पर नियंत्रण केंद्र शासित प्रदेशों पर बिल्कुल भी लागू नहीं होता है। उन्होंने कहा, केंद्र शासित प्रदेश संघ का प्रतिनिधित्व करता है और उसका विस्तार है और इसलिए संघ और उसके विस्तारित क्षेत्र के बीच संघवाद की कोई अवधारणा नहीं है।
शीर्ष अदालत ने मंगलवार को कहा कि मौखिक रूप से केंद्र की इस दलील को स्वीकार करना मुश्किल है कि संघवाद की अवधारणा केंद्र शासित प्रदेश पर लागू नहीं होती क्योंकि पंचायत भी ‘सत्ता के विकेंद्रीकरण’ का एक उदाहरण है।
पीठ ने मौखिक रूप से कहा कि आपके (केंद्र के) अभिवदेन को स्वीकार करना मुश्किल हो सकता है कि संघवाद केवल राज्यों और केंद्र पर लागू होता है। केंद्रशासित प्रदेशों और संघ के बीच संघवाद का एक अलग पहलू हो सकता है। इसमें संघवाद की सभी विशेषताएं नहीं हो सकती हैं, लेकिन कुछ हो सकती हैं। पीठ ने कहा, संघवाद की कुछ विशेषताएं संघ शासित प्रदेशों के साथ संबंधों में भी प्रचलित हैं। यहां तक कि पंचायतों में भी संघवाद की अवधारणा स्थानीय सरकार की जरूरत, सत्ता के विकेंद्रीकरण की जरूरत को दर्शाती है।