नई दिल्ली। उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा के सभापति के तौर पर बुधवार को अपना कामकाज शुरू किया। ध्यान रहे संसद के मॉनसून सत्र के समापन से एक दिन पहले ही वे उप राष्ट्रपति चुने गए थे। उस सत्र में उन्होंने किसी बैठक का संचालन नहीं किया था। बुधवार को जब वे पहली बार उच्च सदन का संचालन करने आए तो पूरे सदन में उनका स्वागत किया और बधाई दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे सदन और पूरे देश की तरफ से उनका स्वागत किया।
शीतकालीन सत्र के पहले दिन की पहली बैठक के संचालन के दौरान सभापति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग, एनजेएसी पर संसद से पारित कानून को रद्द किए जाने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के ऊपर सवाल उठाए। एनजेएसी कानून के लिए 99वां संवैधानिक संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित किया गया था। लेकिन इस कानून को 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। उप राष्ट्रपति ने इसे संसदीय संप्रभुता के साथ गंभीर समझौता करार दिया है।
उन्होंने बुधवार को कहा- ये उस जनादेश का असम्मान है, जिसके संरक्षक उच्च सदन और लोकसभा है। उप राष्ट्रपति ने कहा- लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसी कोई मिसाल नहीं मिलती, जहां नियमबद्ध तरीके से किए गए संवैधानिक उपाय को इस तरह न्यायिक ढंग से निष्प्रभावी कर दिया गया हो। गौरतलब है कि उस कानून के जरिए न्यायिक नियुक्तियों में सरकार को एक भूमिका दी गई थी। उस कानून की वजह से कॉलेजियम सिस्टम प्रभावित हो रहा था। सर्वोच्च अदालत ने उसे संविधान के बुनियादी ढांचे के खिलाफ बताते हुए खारिज कर दिया था।
इस फैसले पर सवाल उठाते हुए जगदीप धनखड़ ने कहा- हमें इस बात को ध्यान में रखने की जरूरत है कि लोकतांत्रिक शासन में किसी भी संवैधानिक ढांचे की बुनियाद संसद में परिलक्षित होने वाले जनादेश की प्रमुखता को कायम रखना है, यह चिंताजनक बात है कि इस बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद का ध्यान केंद्रित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि संसद से पारित एक कानून, जो लोगों की इच्छा को दर्शाता है, उसको सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। धनखड़ ने कहा- दुनिया को ऐसे किसी भी कदम के बारे में कोई जानकारी नहीं है। उप राष्ट्रपति ने पिछले दिनों एलएम सिंघवी व्याख्यान के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की मौजूदगी में भी यह मुद्दा उठाया था।
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