जीवन मंत्र

कोलेस्ट्रॉल: जरूरी मगर जानलेवा

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कोलेस्ट्रॉल: जरूरी मगर जानलेवा
Cholesterol responsible heart attack कोलेस्ट्रॉल हमेशा जानलेवा नहीं होता बल्कि हमारे जीवन के लिये यह बहुत जरूरी तत्व है और बिना इसके स्वस्थ रहना सम्भव ही नहीं। कोलेस्ट्रॉल से स्वस्थ कोशिकाओं, विशेष हारमोन्स, विटामिन डी, भोजन पचाने में सहायक एन्जाइम व कोशिकाओं के सुचारू संचालन के लिये अनेक रसायनों का निर्माण होता है। मेडिकल साइंस में कोलेस्ट्रॉल जैसे तत्वों के लिये लिपिड शब्द प्रयोग होता है, लिपिड वास्तव में वसा (फैट) जैसे मॉलीक्यूल्स (अणु) हैं जो रक्त-प्रवाह के जरिये शरीर की कोशिकाओं  तक पहुंचते हैं। कोलेस्ट्रॉल से प्रतिवर्ष करोड़ों लोग जानलेवा बीमारियों का शिकार होकर मर जाते हैं या लकवाग्रस्त होकर अपाहिज हो जाते हैं। हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक के लिये कोलेस्ट्रॉल ही जिम्मेदार है। लेकिन कोलेस्ट्रॉल हमेशा जानलेवा नहीं होता बल्कि हमारे जीवन के लिये यह बहुत जरूरी तत्व है और बिना इसके स्वस्थ रहना सम्भव ही नहीं। कोलेस्ट्रॉल से स्वस्थ कोशिकाओं, विशेष हारमोन्स, विटामिन डी, भोजन पचाने में सहायक एन्जाइम व कोशिकाओं के सुचारू संचालन के लिये अनेक रसायनों का निर्माण होता है।  मेडिकल साइंस में कोलेस्ट्रॉल जैसे तत्वों के लिये लिपिड शब्द प्रयोग होता है, लिपिड वास्तव में वसा (फैट) जैसे मॉलीक्यूल्स (अणु) हैं जो रक्त-प्रवाह के जरिये शरीर की कोशिकाओं  तक पहुंचते हैं। Read also Tokyo Olympic में भारत की एक और जीत, 41 साल बाद Hockey के Semifinal में पहुंचा, मुकाबला बेल्जियम से होगा   लिपिड कई तरह के होते हैं, इन्हीं में से कुछ को कोलेस्ट्रॉल के नाम से जाना जाता है। कोलेस्ट्रॉल,  वसा (चिकनाई) और प्रोटीन से मिलकर बना मोम जैसा पदार्थ है इसलिये कोलेस्ट्रॉल के कुछ प्रकारों को लिपिड प्रोटीन भी कहते हैं। ट्राइगिलिसराइड भी लिपिड का ही एक टाइप है। कोलेस्टॉल पानी में नहीं घुलता इसलिये लीवर, फैट और प्रोटीन मिलाकर विशेष प्रकार के लिपोप्रोटीन बनाता है जिसमें घुलकर कोलेस्ट्रॉल और ट्राइगिलिसराइड जैसे लिपिड्स ब्लड सट्रीम के जरिये शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुंचते हैं। लिपोप्रोटीन के दो प्रकार हैं- लो-डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) और हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल)। Read also जब रक्त में लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (एल़डीएल) की मात्रा बढ़ जाती है अर्थात कोलेस्ट्रॉल को शरीर की प्रत्येक कोशिका तक पहुंचाने में एलडीएल का इस्तेमाल बढ़ता है तो हाई कोलेस्ट्रॉल की कंडीशन बनती है। इस कंडीशन में नसों में खून का बहाव घटता है जिससे ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क बढ़ने से हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। एलडीएल यानी हानिकारक कोलेस्ट्रॉल लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन को बैड कोलेस्ट्रॉल भी कहते हैं, कोलेस्ट्रॉल इसमें घुलकर कोशिकाओं तक पंहुचता है, रक्त में इसकी मात्रा बढ़ने पर यह नसों (आर्टरी) की दीवारों पर प्लॉक के रूप में जमने लगता है। जिससे नसें संकरी होती हैं और ब्लड क्लॉटिंग की सम्भावना बढ़ जाती है। यदि ब्लड क्लॉट दिल या दिमाग की नसों में बन जाये तो हार्ट अटैक/ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। एचडीएल यानी अच्छा कोलेस्ट्रॉल एचडीएल (हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन) अच्छा कोलेस्ट्रॉल है, यह एलडीएल अर्थात लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन को लीवर में वापस पहुंचाकर उसे शरीर से रिमूव करता है। यह नसों में प्लॉक बनने की प्रक्रिया रोकता है। रक्त में इसकी जरूरी मात्रा ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क घटाती है। ट्राइगिल्सराइड्स यानी ऊर्जा ट्राइगिल्सराइड्स, कोलेस्ट्रॉल से भिन्न, अलग तरह का लिपिड है, जब हमारी कोशिकायें कोलेस्ट्रॉल से  विटामिन डी, हारमोन्स और एन्जाइम्स बनाती हैं तो ट्राइगिल्सराइड इस प्रक्रिया के लिये जरूरी ऊर्जा प्रदान करता है। भोजन से प्राप्त कैलोरीज में से कुछ कैलोरी ऊर्जा का इस्तेमाल तुरन्त हो जाता है लेकिन बची कैलोरीज, ट्राइगिलिसराइड्स में परिवर्तित होकर शरीर में मौजूद वसायुक्त कोशिकाओं (फैट सेल्स) में जमा हो जाती हैं। ट्राइगिलिसराइड्स भी लिपोप्रोटीन के जरिये ब्लड स्ट्रीम में प्रवाहित होते हैं। जब आप नियमित रूप से शरीर की जरूरत से ज्यादा कैलोरीज का सेवन करते हैं शरीर में इनका स्तर बढ़ने से दिल सम्बन्धी बीमारियों और स्ट्रोक का खतरा बढ़ने लगता है।   लक्षण क्या उभरते हैं? हाई कोलेस्ट्रॉल को साइलेन्ट किलर कहते हैं ज्यादातर लोगों में इसके कोई लक्षण नहीं उभरते लेकिन कुछ लोगों को सीने में दर्द, हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, त्वचा (विशेष रूप से आंखों की पलकें) पर हल्के पीले बम्पस, मुहासे, अधिक पसीना, बाईल (पित्त) असंतुलन, पैरों में दर्द और गर्दन में अकड़न जैसे लक्षण महसूस होते हैं। कुछ लोगों के तलवों में गांठ बनने लगती है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की गाइडलाइन्स के मुताबिक 25 वर्ष की उम्र के बाद प्रतिवर्ष और 40 साल के बाद छह माह पर कोलेस्ट्रॉल की जांच अवश्य करानी चाहिये। कैसे पता चलता है हाई कोलेस्ट्रॉल का? लिपिड प्रोफाइल नामक ब्लड टेस्ट से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर पता चलता है। इस टेस्ट से एलडीएल, एचडीएल और ट्राइगिलिसराइड्स जैसे सभी लिपिड्स की जानकारी मिलती है। जब जांच में टोटल कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ा हुआ आता है तो इसमें एलडीएल और एचडीएल दोनों तरह के कोलेस्ट्रॉल शामिल होते हैं। यदि इसमें एलडीएल अधिक है तो हाई कोलेस्ट्रॉल की कंडीशन बनती है। हाई कोलेस्ट्रॉल उस अवस्था में ज्यादा घातक है जब एचडीएल जरूरी स्तर से कम हो। क्या होना चाहिये कोलेस्ट्रॉल का स्तर? सन 2013 में हुयी एक रिसर्च के मुताबिक कोलेस्ट्रॉल के बढ़े स्तर के साथ डॉयबिटीज होना ज्यादा घातक कंडीशन है। ऐसी स्थिति में टोटल कोलेस्ट्रॉल का स्तर 189 एमजी/डीएल से अधिक होने पर तुरन्त इलाज शुरू करना चाहिये। यदि डॉयबिटीज नहीं है तो 200 एमजी/डीएल तक के स्तर को लाइफ स्टाइल और खानपान बदलकर कंट्रोल कर सकते हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक स्वस्थ व्यक्ति में टोटल कोलेस्ट्रॉल 170 एमजी/डीएल से कम और एचडीएल 45 से अधिक तथा एलडीएल 110 से कम होना चाहिये। यदि टोटल कोलेस्ट्रॉल 170-199 एमजी/डीएल और एचडीएल 40-45 से अधिक तथा एलडीएल 110-129 तक हो तो इसे बार्डरलाइन माना जाता है। यदि टोटल कोलेस्ट्रॉल 200 एमजी/डीएल से अधिक और एलडीएल 130 से ज्यादा हो तो यह हाई कोलेस्ट्रॉल की श्रेणी में आता है। क्यों होता है हाई कोलेस्ट्रॉल? आमतौर पर इसका मूल कारण ज्यादा मात्रा में वसा युक्त भोजन है। सैचुरेटेड और ट्रान्स फैट वाले  भोजन से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है। इसके अलावा सुस्त लाइफ स्टाइल, स्मोकिंग और नियमित मदिरा सेवन भी इसके प्रमुख कारण हैं। कुछ मामलों में जेनेटिक कारणों से कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है। हमारे शरीर में मौजूद जीन्स ही यह निर्देश देते हैं कि कोलेस्ट्रॉल और वसा को किस तरह प्रोसेस हो। यदि माता-पिता हाई कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित रहे हैं तो बच्चों में ये जीन्स चले जाते हैं और उनमें हाई कोलेस्ट्रॉल का रिस्क बढ़ जाता है। कुछ दुर्लभ मामलों में हाई कोलेस्ट्रॉल का कारण फेमिलियल हाइपरकोलेस्ट्रॉलिमिया (एफएच) है। यह जेनेटिक डिस्आर्डर है इससे पीड़ित व्यक्तियों में एलडीएल कोलेस्ट्रॉल का स्तर हाई रहता है। नेशनल जीनोम ह्यूमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के मुताबिक इससे ग्रस्त व्यक्तियों में टोटल कोलेस्ट्रॉल का स्तर 300 एमजी/डीएल और एलडीएल का स्तर 200 एमजी/डीएल से ऊपर होता है। स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य समस्यायें जैसेकि डॉयबिटीज और हाइपोथॉयरोडिज्म भी हाई कोलेस्ट्रॉल का रिस्क बढ़ाते हैं। हाई कोलेस्ट्रॉल कितना खतरनाक? यदि हाई कोलेस्ट्रॉल का समय पर इलाज न किया जाये तो नसों में प्लॉक जमा होने से वे संकरी हो जाती हैं और रक्त प्रवाह धीमा पड़ने से अथेरोस्किलेरोसिस कंडीशन बनती है जिससे स्ट्रोक, हार्ट अटैक, एन्जाइना चेस्ट पेन, हाई ब्लड प्रेशर, दृष्टि धुंधलाना, एरिद्मिया, पेरीफेरल वेस्कुलर डिसीस तथा किडनी फेल (क्रोनिक किडनी डिसीस) का रिस्क बढ़ता है। इनके अलावा हाई कोलेस्ट्रॉल से शरीर में बाइल संतुलन बिगड़ने से गॉल स्टोन बनने लगते हैं। एक रिसर्च के मुताबिक यदि शरीर में ज्यादा दिनों तक लो-डेन्सिटी कोलेस्ट्रॉल का स्तर हाई रहे तो एचआईवी-एड्स से संक्रमित होने के चांस कई गुना बढ़ जाते हैं साथ ही लूपस और हाइपोथॉयरोडिज्म का रिस्क भी बढ़ता है। ऑर्गन ट्रांस्प्लांट के मरीजों के लिये हाई कोलेस्ट्रॉल बड़ा खतरा है, ऐसे में नियमित कोलेस्ट्रॉल टेस्ट कराना चाहिये और यदि यह अपर साइड में है तो तुरन्त अपने डाक्टर से बात करें।   कैसे ठीक हो हाई कोलेस्ट्रॉल? हाई कोलेस्ट्रॉल होने पर डॉक्टर लाइफस्टाइल बदलने की सलाह देते हैं जिसके तहत नियमित व्यायाम,  खाने में फैट की मात्रा कम करना और स्मोकिंग तथा शराब छोड़ना जरूरी है। रोजाना कम से कम 30 मिनट व्यायाम या 45 मिनट वॉक करें। मोटापा कम करने का हर सम्भव प्रयास करें और स्ट्रेस से बचें। यदि कोलेस्ट्रॉल ज्यादा बढ़ा हुआ है तो दवाओं की जरूरत पड़ती है, इसके लिये स्टेटिन वर्ग में आने वाली दवायें जैसेकि एटॉरवासटेटिन (लिपिटोर), फ्लूवॉसटेटिन (लेस्कॉल), रोजूवासटेटिन (क्रेस्टर) और सिमवास्टेटिन (जैडकोर) इत्यादि दी जाती हैं। कुछ मामलों में डॉक्टर नियासिन, कोलेस्वेलॉम, कोलेस्टीपॉल और कोलेस्टिरामाइन जैसी दवायें लिखते हैं। हाई कोलेस्ट्रॉल से ब्लड प्रेशर बढ़ने पर ब्लड थिनर (ईकोस्प्रिन) भी दिये जाते हैं। यदि लीवर अधिक मात्रा में लिपिड्स बना रहा है तो इसके कम करने के लिये कोलेस्ट्रॉल एब्जॉर्बसन इनहेबिटर के रूप में इजेटीमाइब जैसी दवायें दी जाती हैं। क्या खायें और क्या न खायें? खाने में चिकनाई, नमक और मीठा कम करें। रेड मीट के स्थान पर चिकन या फिश शामिल करें। भोजन में फाइबर की मात्रा अधिक होनी चाहिये, इसके लिये साबुत अनाज, दालें, सब्जियां और फलों का सेवन बढ़ायें। तले भोजन के स्थान पर स्टीम्ड, बेक्ड, ग्रिल्ड और रोस्टेड भोजन अपनायें। जंक और फास्ट फूड से परहेज करें। रेड मीट, ऑर्गन मीट और अंडे के पीले वाले भाग में कोलेस्ट्रॉल अधिक होता है इनसे परहेज करें। कोका बटर, वनस्पति घी, पाम ऑयल और कोकोनट ऑयल के सेवन से बचें और सरसों के तेल को प्राथमिकता दें। सम्भव हो तो मछली को अपने भोजन में शामिल करें, इसमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड एलडीएल कोलेस्ट्रॉल कम करता है। बादाम, अखरोट, अलसी के बीज, लहसुन, रेड यीस्ट राइस, ओट ब्रायन और स्टेनॉल सप्लीमेंट कोलेस्ट्रॉल कम करने में सहायक है। मदिरा सेवन (बीयर, व्हिस्की), सोडे वाले ड्रिंक और स्मोकिंग को न कहें।
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