जीवन मंत्र

खाद्य विषाक्ती (फूड पोइज़निंग) में न हो लापरवाही

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खाद्य विषाक्ती (फूड पोइज़निंग) में न हो लापरवाही
खाद्य जनित या खराब भोजन से पैदा हुई बीमारी को आम बोलचाल की भाषा में फूड पोइज़निंग कहते हैं। यह बीमारी दूषित, खराब और विषाक्त भोजन से होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और सेन्टर्स फॉर डिसीस कंट्रोल एंड प्रिवेन्शन की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 5 में से 1 व्यक्ति को साल में कभी न कभी खाद्य विषाक्ती (फूड पोइज़निंग) जरूर होती है। वैसे प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कम से कम एक बार तो इसका शिकार होता ही है। आमतौर पर यह बिना अस्पताल में भर्ती हुए ठीक हो जाती है लेकिन कुछ मामलों में जरा सी लापरवाही इसे गडबडी को जानलेवा भी बना सकती है। लक्षण फूड पोइज़निंग के लक्षण खाना खाने के 1 से 2 घंटे बाद नजर आने लगते हैं और ये पूरी तरह से खाने से हुए संक्रमण पर निर्भर होते हैं। इससे ग्रस्त व्यक्ति को इनमें से कम से कम तीन लक्षण जरूर महसूस होते हैं- पेट में मरोड़, दस्त, उल्टी, भूख में कमी, ठंड लगना, हल्का बुखार, दुर्बलता, आंखों में सूजन, प्यास लगना, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द। जब फूड पोइज़निंग जानलेवा (लाइफ थ्रेटनिंग) होती है तो ये लक्षण उभरते हैं- - तीन दिनों से अधिक समय तक दस्त बने रहना। - 101।5 डिग्री फॉरेनहाइट से ज्यादा बुखार। - देखने या बोलने में कठिनाई। - गम्भीर डिहाइड्रेशन की वजह से मुंह सूखना। - पेशाब न आना या पेशाब में खून आना। यदि पीड़ित इनमें से कोई भी लक्षण महसूस करता है तो उसे डॉक्टर से सम्पर्क करना चाहिये। क्यों होती है फूड पोइज़निंग? ज्यादातर मामलों में फूड पोइज़निंग इन तीन कारणों से होती है- बैक्टीरिया: यह सबसे बड़ा कारण है, जिन बैक्टीरिया की वजह से लोग फूड पोइज़निंग के शिकार होते हैं उनमें ई।कोलाई, लिस्टीरिया और साल्मोनेला प्रमुख हैं। हमारे देश में इनकी वजह से हर साल 90 लाख से ज्यादा मामले सामने आते हैं जिनमें एक लाख से ज्यादा को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। इनके अलावा दो और बैक्टीरिया जिन्हें सी।बोटुलिनम और कैम्पिलोबैक्टर कहते हैं से भी फूड पोइज़निंग होती है। पैरासाइट: फूड पोइज़निंग के सम्बन्ध में पैरासाइट उतने कॉमन नहीं है जितने कि बैक्टीरिया, लेकिन ये घातकता के मामले में बैक्टीरिया से कम नहीं हैं। फूड प्वाइंनिंग के केसों में सबसे ज्यादा टोक्सोप्लाज्माइस नामक पैरासाइट पाया जाता है। यह आमतौर पर पालतू जानवरों के मल में होता है। यदि यह मनुष्यों में चला जाये तो उनके पाचन तन्त्र में वर्षों तक बना रहता है। यह परजीवी यदि गर्भवती महिलाओं और कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों की आंतों में चला जाये तो लाइफ थ्रेटनिंग कंडीशन पैदा कर सकता है। वायरस: फूड पोइज़निंग के कुछ मामलों में वायरस भी जिम्मेदार होते हैं। नोरा या नॉरवाक वायरस से दुनियाभर में प्रतिवर्ष फूड पोइज़निंग के करीब तीन करोड़ मामले सामने आते हैं। इनमें कुछ तो जानलेवा हो जाते हैं। इसके अलावा सापो, रोटा और एस्ट्रो वायरस भी फूड पोइज़निंग करते हैं। यदि हैपेटाइटिस वायरस खाने के जरिये शरीर में चला जाये तो मरीज की जान पर बन आती है। भोजन कैसे हो जाता है विषाक्त? पैथॉजन्स (रोग जनक बैक्टीरिया/विषाणु) लगभग सभी खाद्य पदार्थों में पाये जाते हैं। हालांकि खाना पकाने में इस्तेमाल होने वाली गर्मी इन्हें हमारी खाने की प्लेट तक पहुंचने से पहले मार देती है। इसलिये कच्चा खाया जाने वाला भोजन ही फूड पोइज़निंग का आम स्रोत है। कुछ मामलों में पैथॉजन्स खाना पकाने और परोसने वाले व्यक्ति के हाथों के माध्यम से हमारे भोजन तक पहुंच जाते हैं, ऐसा तब होता है जब व्यक्ति बिना साबुन से हाथ घोये खाने को छूता है। दूषित पानी, मीट, अंडा और डेयरी उत्पाद के जरिये भी पैथॉजन्स शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। बासी भोजन भी फूड पोइज़निंग का एक बड़ा स्रोत है, विशेष रूप से बासी चावल में ई।कोलाई नामक बैक्टीरिया पनपता है जिसे फूड पोइज़निंग का बड़ा कारण मानते हैं। पेट फ्लू और फूड पोइज़निंग हालांकि पेट जनित स्टमक फ्लू (गैस्ट्रोइन्टाराइटिस) और फूड पोइज़निंग के कुछ लक्षण मिलते हैं लेकिन ये दोनों अलग-अलग बीमारियां हैं। स्टमक फ्लू से पेट और आंतो में वायरस संक्रमण की वजह से सूजन आती है जबकि फूड पोइज़निंग में ऐसा नहीं होता। स्टमक फ्लू, वायरस से एक्सपोजर के 24 से 48 घंटो में व्यक्ति को बीमार करता है जबकि फूड पोइज़निंग से खाने के 1 से 6 घंटे के अंदर व्यक्ति बीमार हो जाता है। स्टमक फ्लू में फूड पोइज़निंग के कॉमन लक्षणों के अलावा जोड़ों में दर्द और वेट लॉस भी होने लगता है। स्टमक फ्लू संक्रामक होता है यदि इससे पीड़ित व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के क्लोज सम्पर्क में आ जाये तो उसे भी स्टमक फ्लू हो सकता है जबकि फूड पोइज़निंग में ऐसा नहीं होता। फूड पोइज़निंग के गम्भीर मामलों में स्टूल में खून आने लगता है जबकि स्टमक फ्लू के मामलों में ऐसा नहीं होता। स्टमक फ्लू की रोकथाम के लिये वैक्सीन है, फूड पोइज़निंग के लिये नहीं। किन्हें जोखिम ज्यादा? फूड पोइज़निंग किसी को भी हो सकती है, एक रिसर्च के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कम से कम एक बार तो इसका शिकार होता ही है। लेकिन जिन लोगों का इम्यून सिस्टम कमजोर हो या जो लोग किसी ऑटो इम्यून डिसीस से ग्रस्त हों उन्हें इसका रिस्क ज्यादा रहता है। ऐसे लोगों को फूड पोइज़निंग से लाइफ थ्रेटनिंग कॉम्प्लीकेशन्स हो जाते हैं। नवजात शिशु, बच्चे और 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को इसका रिस्क रहता है क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम, संक्रमण का उतनी तेजी से प्रतिउत्तर नहीं दे पाता जितनी जरूरत होती है। इस सम्बन्ध में म्यो क्लीनिक (अमेरिका) में हुई एक रिसर्च के मुताबिक गर्भवती महिलायों को फूड पोइज़निंग का रिस्क अधिक होता है, क्योंकि हारमोनल परिवर्तन के कारण इनके मेटाबॉलिज्म और सरकुलेटरी सिस्टम में लगातार बदलाव होते हैं। पुष्टि कैसे होती है?  डाक्टर इसकी पुष्टि लक्षणों के आधार पर करते हैं। गम्भीर मामलों में स्टूल और ब्लड टेस्ट की जरूरत पड़ती है। इन टेस्टों से फूड पोइज़निंग का कारण पता चलता है। फूड पोइज़निंग से यदि डिहाइड्रेशन हुआ है तो यूरीन टेस्ट की जरूरत पड़ती है। इलाज क्या है? ज्यादातर मामलों में इसका इलाज घर पर ही हो जाता है और पीड़ित तीन से पांच दिन में ठीक हो जाता है। फूड पोइज़निंग में हाइड्रेट रहने और आराम करने की जरूरत होती है। इसके लिये हाई इलेक्ट्रोलाइट्स वाले पेय पदार्थ लाभकारी हैं। नारियल पानी/ फ्रूट जूस कमजोरी दूर करते हैं। ऐसे में कैफीन युक्त पेय पदार्थों का सेवन न करें, ये डाइजेस्टिव ट्रैक को इरीटेट करते हैं। इनके स्थान पर कैमोमाइन, पिपरमिंट और सिंहपर्णी जैसी जड़ी-बूटियों से बनी चाय पियें। इमोडियम और पेप्टो-बिस्मोल जैसी ओवर द काउंटर दवायें दस्त/मतली कंट्रोल करने में दी जातीं हैं। गम्भीर स्थिति में शरीर से जहरीले तत्वों को निकालने के बाद पानी की कमी पूरी करने के लिये इंट्रावीनस मैथड से मरीज को हाइड्रेट रखते हैं। उल्टी होने के एक घंटे के बाद ही ब्रश करें, क्योंकि उल्टी से निकला एसिड दांतों के इनेमल को नुकसान पहुंचाता है ऐसे में ब्रश करने से यह नुकसान और बढ़ सकता है। बिमारी में खुराक कैसी हो? फूड पोइज़निंग में कम वसा युक्त आसानी से पचने वाले खाद्य-पदार्थों का सेवन करना चाहिये जैसेकि- केला, दलिया, खिचड़ी, उबली हुई सब्जियां, फलों का रस, टोस्ट, उबले अंडे का सफेद वाला भाग, पीनट बटर, चावल, कस्टर्ड और सूप इत्यादि। ऐसे में डेयरी उत्पाद, ज्यादा वसा और मसालेदार खाना, ज्यादा मीठे पदार्थ, डिब्बा बंद खाना, जंक फूड और तले हुए खाने से बचना चाहिये। शराब, निकोटीन और कैफीन युक्त पेय पदार्थों (सोडा, इनर्जी ड्रिंक, कॉफी) का सेवन न करें। कैसे बचें फूड पोइज़निंग से? फूड पोइज़निंग से बचने का आसान तरीका है खाने को अच्छी तरह से पका कर खायें, कच्चे फल और सब्जियों को खाने से पहले भली-भांति धोयें। हरी पत्तेदार सब्जियां अच्छी तरह से धोकर ही इस्तेमाल करें क्योंकि ये फूड पोइज़निंग का सबसे कॉमन सोर्स है और इनमें ई।कोलाई, सॉलमोनेला व लिस्टीरिया नामक बैक्टीरिया होने के चांस सबसे अधिक होते हैं। जहां तक सम्भव हो बिना पका या अधपका भोजन न करें। फिश से बनी कुछ डिश (जैसेकि सुशी) कच्ची या अधपकी ही परोसी जाती हैं इसलिये इन्हें खाने से पहले यह जांच लें कि इन्हें बनाने से पहले ढंग से साफ किया गया है या नहीं। मछली और अन्य सी-फूड्स में हिस्टामाइन्स और टॉक्सिन्स की मौजूदगी रहती है ऐसे में इन्हें बाजार से लाने के बाद साफ पानी से धोयें और  कुछ घंटों के लिये फ्रीजर में रख दें। कभी भी कच्चा या अधपका चावल न खायें क्योंकि इसमें मौजूद बैसिलस सेरेस नामक बैक्टीरिया फूड पोइज़निंग को बढ़ावा देता है। ये बैक्टीरिया सूखे वातावरण में रह सकता है इसलिये यह कच्चे चावल के पैकेट में भी जिंदा रहता है। चावल पकाने के बाद यदि उसे कमरे के तापमान पर कुछ घंटों के लिये छोड़ दें तो यह बैक्टीरिया पनपने लगता है। इसलिये चावल बनाने के बाद उसे एक-दो घंटे में खा लें और बचे हुए को फ्रिज में रख दें। बचे हुए चावलों को दोबारा खाने से पहले इस तरह गर्म करें कि चावल में भाप बन जाये ताकि उसमें पनपा बैक्टीरिया नष्ट हो जाये। कभी-भी कच्चे स्प्राउट्स न खायें। इनसे सॉलमोनेला, ई।कोलाई और लिस्टीरिया जैसे बैक्टीरिया हो सकते  हैं। इनसे बचने के लिये एक बर्तन में पानी उबलने रखें, जब पानी उबलने लगे तो उसमें स्प्राउट्स को 10 सेकेंड के लिये डाल दें और फिर छानकर निकाल लें, इसके बाद ही इन्हें खायें। कच्चे मीट/चिकन में बैक्टीरिया होने के चांस अधिक होते हैं इसलिये इन्हें बाजार से लाने के बाद किचन में किसी सेप्रेट स्थान पर धोयें और फिर उन बर्तनों तथा किचन सरफेस को भी ढंग से साफ करें जहां इसे धोया था। यह याद रखें कि धोने से बैक्टीरिया मरता नहीं बल्कि फैलता है। मीट धोने के बर्तन और इसे काटने वाले चाकू इत्यादि प्रयोग से पहले भी साफ हों और प्रयोग के बाद भी इन्हें ढंग से साफ करें। मीट को अच्छी तरह पकाकर खायें और ध्यान रखें कि यह अंदर तक पक गया हो। खाने को सुरक्षित तापमान में स्टोर करें। जहां तक बैक्टीरिया पनपने की बात है तो इसके लिये 5 से 60 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे आदर्श है। ऐसे में खाना फ्रिज में रखते समय यह जांच लें कि उसका तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से कम सेट हो। जमीन पर गिरे भोजन को कभी भी उठाकर न खायें। बासा खाना खाने से परहेज करें। दूध उबालकर पियें और कच्चे पनीर के सेवन से भी बचें। खाना बनाने और परोसने से पहले हाथ साबुन से अच्छी तरह से धोयें और डिब्बे बंद खाने (सीजन्ड फूड) को खाने से पहले उसकी डेट चैक करें कि कहीं वह ज्यादा पुराना तो नहीं है। निष्कर्ष फूड पोइज़निंग के ज्यादातर मामले 48 घंटे में ठीक हो जाते हैं, यदि इससे ज्यादा समय तक तबियत खराब रहे तो डाक्टर से जरूर मिलें। इससे बचने के लिये पर्सनल और फूड हाइजीन की आदत डालें, किचन को साफ सुथरा रखें और बाजार से सब्जियां लाने के बाद उन्हें सीधे फ्रिज  में रखने के बजाय पहले अच्छी तरह से धोयें फिर फ्रिज में रखें। सब्जियों को छीलने और काटने के लिये प्रयोग किये जाने वाले टूल्स (चाकू, पीलर इत्यादि) इस्तेमाल के पहले धोयें और बाद में भी धोकर रखें। रेस्टोरेंट और पार्टियों में कच्चा सलाद खाने से परहेज करें। सड़क के किनारे या गंदी जगहों पर खाना खाने से बचें। बाजार में खुली गंदी जगहों पर बिकने वाले खाने में मक्खियां बैठती हैं जोकि पैरासाइट तथा बैक्टीरिया दोनों की वाहक हैं। यदि फूड पोइज़निंग हो गयी है तो घबराने के बजाय अपने आपको हाइड्रेट (पानी पीते रहें) करते रहें तथा आराम करें। यदि समस्या 48 घंटे से अधिक समय तक रहे तो  नजदीकी अस्पताल जायें।
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