जीवन मंत्र

दिमागी फितूर, अजीब अनुभव (हलूसिनेशन)

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दिमागी फितूर, अजीब अनुभव (हलूसिनेशन)
यह ऐसा मानसिक रोग है जिसमें व्यक्ति को दिमाग में अजीबो-गरीब वास्तविक प्रतीत होने वाले सेन्सरी (संवेदी) अनुभव होते हैं जबकि असलियत में होता कुछ नहीं है। इन्हें दिमाग इस तरह से गढ़ता है कि ये पीड़ित की पांचों इंन्द्रियों को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिये इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को कमरे में ऐसी आवाजें सुनाई दे सकती हैं जिसे उसके अलावा कमरे में मौजूद कोई और नहीं सुन सकता। इसी तरह से उसे अपने आसपास ऐसी छवियां दिखाई देने लगती हैं जिन्हें कोई और नहीं देख सकता। मेडिकल साइंस के अनुसार ये लक्षण मानसिक बीमारियों, दवाओं के दुष्प्रभाव और बहुत अधिक मात्रा में शराब तथा मादक पदार्थों के सेवन से उभरते हैं। हमारे देश में अधिकतर लोग इसे भूत-प्रेत समझकर झाड़-फूंक के चक्कर में पड़कर बीमारी को ज्यादा गम्भीर कर लेते हैं। जबकि इसके इलाज के लिये मनोचिकित्सक और न्यूरोलॉजिस्ट के पास जाना चाहिये। सही दवाओं और थेरेपी से इसे पूरी तरह से ठीक किया जा सकता है, शुरूआती स्टेज में इसके कुछ कारणों का इलाज फिजीशियन भी कर सकता है। हमारे देश में प्रतिवर्ष इसके कई लाख केस सामने आते हैं। इसमें पीड़ित कुछ मामलों में खुद का और कुछ में दूसरों का शारीरिक नुकसान कर देते हैं। कितनी तरह का हलूसिनेशन? इस बीमारी से पीड़ित की देखने, सुनने, सूंघने, स्वाद और स्पर्श संवेदनायें प्रभावित होती है। मनोचिकित्सा में इन्हीं के आधार पर हलूसिनेशन को वर्गीकृत किया गया है- विजुअल हलूसिनेशन: इसमें व्यक्ति को वह दिखाई देता है जो होता ही नहीं है। इसके तहत उसे कोई ऑब्जेक्ट, विजुअल पैटर्न, लोग या तरह-तरह का प्रकाश  दिखाई देने लगता है। उदाहरण के लिये पीड़ित को कमरे में चमकती लाइट, तस्वीर या पेटिंग या फिर लोग दिखाई दे सकते हैं जो कमरे में मौजूद किसी अन्य को नहीं दिखाई देते। ऑलफैक्टरी हलूसिनेशन: इसमें व्यक्ति को अलग-अलग तरह की गंध का अनुभव होता है, विशेष रूप से आधी रात को उठने पर। ज्यादातर मामलों में ऐसा महसूस होता है कि पीड़ित के खुद के शरीर से गंदी स्मेल आ रही है लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं होता। कुछ मामलों में फूलों और इत्र की खुशबू का अनुभव भी होता है। गस्टेटोरी हलूसनेशन: इसमें पाड़ित को अपने मुंह में अजीब-अजीब से स्वाद महसूस होते हैं, अधिकतर मामलों में ये अप्रिय और धातुओं के स्वाद होते हैं। जिन लोगों को मिर्गी होती है उन्हें भी इस तरह का हलूसिनेशन होता है। ऑडिटरी हलूसनेशन: यह सबसे कॉमन टाइप का हलूसिनेशन है। इसमें पीड़ित व्यक्ति को कई तरह की आवाजें सुनाई देती हैं, ये आवाजें गुस्से वाली, नर्म या तटस्थ किसी भी तरह की हो सकती हैं। कुछ लोगों को ऐसा अनुभव भी होता है कि कोई अदृश्य शक्ति उससे कुछ करने को कह रही है, या उनके आसपास कुछ लोग चल फिर रहे हैं या ठक-ठक की आवाज कर रहे हैं इत्यादि। टैक्टाइल हलूसिनेशन: इसमें व्यक्ति को किसी स्पर्श का अनुभव होता है, ज्यादातर मामलों में ऐसा महसूस होता कि उसके शरीर पर सांप, बिच्छू और कीड़े रेंग रहे हैं या उनके शरीर को कोई अपने हाथों से बार-बार छू रहा है। कुछ ऐसे मामले भी सामने आये हैं जिसमें पीड़ित को यह महसूस हुआ कि उसके इंटरनल अंग उसके चारों ओर घूम रहे हैं, उसकी खाल कोई खींच रहा है, स्किन जल रही है या वह सेक्स कर रहा है। क्यों होता है हलूसिनेशन? इसका सबसे बड़ा कारण खराब मेन्टल हेल्थ कंडीशन है। सिज़ोफ्रेनिया, बाइपोलर डिस्आर्डर, डिमेन्शिया, डिप्रेशन और डिलीरियम जैसी बीमारी से ग्रस्त ज्यादातर लोग इस बीमारी के शिकार हो जाते हैं। मनोचिकित्सकों के अनुसार यह बीमारी इन वजहों से भी हो जाती है- सब्सटेन्स यूज: मादक द्रव्यों के सेवन से लोग हलूसिनेट करने लगते हैं। बहुत से लोग अधिक शराब पीने और कोकीन के सेवन के पश्चात ऐसा महसूस करते हैं कि उन्हें कुछ दिखाई या सुनाई दे रहा है। एलएसडी और पीएसपी जैसे ड्रग्स लेने से भी लोगों को मतिभ्रम हो जाता है। नींद की कमी: यदि नींद पूरी न हो तो हलूसिनेशन होने लगते हैं। कई दिनों या लम्बे समय से न  सोने पर मतिभ्रम के चांस बढ़ जाते हैं। कुछ लोगों को सोने से एकदम पहले या जागने से एकदम पहले हलूसिनेशन होते हैं मेडिकल साइंस में इन्हें हाइप्नागोगिक हलूसिनेशन कहते हैं। मेडिकेशन: पार्किन्सन डिसीस, डिप्रेशन और मिर्गी के इलाज में दी दवायें भी इस बीमारी का कारण बन जाती हैं। ये दवायें पीड़ित में हलुसिनेशन की समस्या को ट्रिगर करती हैं। असामान्य हालात: ऊपर दिये हुए कारणों के अलावा तेज बुखार, माइग्रेन, सोशल आइसोलेशन, सीजर्स, चार्ल्स बोनेट सिन्ड्रोम जैसेकि मैकुलर डिजेनरेशन (नेत्र रोग), बहरापन, मिर्गी, ब्रेन ट्यूमर और टर्मिनल इलनेस (जैसेकि किडनी/लीवर फेलियर की अंतिम स्टेज, ब्रेन कैंसर और एड्स की अंतिम स्टेज) से भी व्यक्ति हलूसिनेट करने लगता है। पुष्टि कैसे होती है? इसकी पुष्टि के लिये डाक्टर लक्षणों का गहराई से अध्यन करने के साथ पीड़ित की मेडिकल हिस्ट्री, करेंट मेडिकल कंडीशन और लाइफस्टाइल के बारे में जानकारी हासिल करते हैं। साथ ही उसकी स्लीप हिस्ट्री या सोने का पैटर्न समझने के लिये पीड़ित को एक डॉयरी मेन्टेन करने के लिये कहते हैं जिसमें उनके सोने-जागने का समय नोट हो। इसी के आधार पर इलाज में स्लीप मेडीकेशन का प्रयोग होता है। दिमाग की विद्युतीय गतिविधियां मापने के लिये ईईजी (इलेक्ट्रोइन्सेफ्लोग्राम) टेस्ट किया जाता है। इससे पता चलता है कि कहीं इसके पीछे सीजर्स (दिमागी दौरे) तो नहीं है। मेडिकल साइंस में इस बीमारी की पुष्टि के लिये डॉयग्नोस्टिक एंड स्टेटिस्टिक मैन्युल ऑफ मेन्टल डिस्आर्डर में दिये रिफरेन्स का प्रयोग किया जाता है। डाक्टर मरीज के लक्षणों का मिलान इसमें डिफाइन क्राइटेरिया से करते हैं। इस प्रक्रिया में मनोचिकित्सक, रोगी से सवाल पूछकर उसके व्यवहार का आकलन करते हैं जैसेकि- - मरीज अपने आप को और दूसरों को क्या समझता है। - मरीज दूसरे व्यक्तियों से डील करते समय किस तरह से एक्ट करता है। - मरीज का भावानात्मक रिस्पांस कैसा है। - मरीज अपने गुस्से या आवेग को कैसे कंट्रोल करता है। कुछ अवस्थाओं में डाक्टर ब्लड और यूरीन टेस्ट (स्क्रीनिंग टेस्ट) भी करवाते हैं जिससे पता चल सके कि मरीज के शरीर में शराब या किसी अन्य प्रकार के ड्रग का प्रभाव तो नहीं है। दिमाग में सूजन, वायरस/बैक्टीरिया का असर या ट्यूमर इत्यादि के बारे में जानने के लिये सीटी स्कैन और एमआरआई की जाती है। इलाज क्या है इसका? हलूसिनेशन के सटीक इलाज के लिये इसके सही कारण का पता चलना जरूरी है। उदाहरण के लिये हलूसिनेशन का कारण यदि शराब और मादक पदार्थों का सेवन है तो उसके अनुसार दवाइयां दी  जायेंगी। यदि यह न सो पाने की वजह से हो रहा है तो डाक्टर पीड़ित को नींद की दवा देते हैं जिससे वह गहरी नींद सो सके। इसी तरह से यदि कारण पार्किन्सन और डिमेन्शिया जैसी बीमारियां हैं तो इनका इलाज करके हलूसिनेशन ठीक करते हैं। - मरीज को अच्छी तरह से नींद आये और उसकी आकुलता, व्यग्रता कम हो इसके लिये एंटी-एन्ग्जायटी दवायें दी जाती हैं। - जब मरीज वास्तविकता से दूर कल्पनाओं में जीने लगता है तो एंटीसाइकोटिक या न्यूरोलेपटिक्स दवाओं का प्रयोग किया जाता है। - एंटीडिप्रेशन और मूड स्टेबलाइजर दवाओं से डिप्रेशन और गुस्सा कम करके मूड सामान्य करते हैं। - दौरे रोकने के लिये एंटीसीज़र दवायें दी जाती हैं। लंदन के मशहूर मनोचिकित्सक डॉक्टर लियोन रियोजविच के अनुसार इस बीमारी के इलाज में टोपिरामेट, एंटीडिप्रेसेन्ट, डोपानाइन एगोनिस्ट, मेलाटोनिन, लीवोडोपा और बैजोडायडेपाइन तथा क्लोनजेपम जैसी दवायें इस्तेमाल की जाती हैं। जब हलूसिनेशन का कारण किसी अन्य बीमारी के इलाज के लिये ली जा रही दवा का रियेक्शन होता है तो मनोचिकित्सक उस बीमारी के डॉक्टर को वैकल्पिक दवा लिखने के लिये कहते हैं। कुछ मामलों में दवाओं के अलावा काउंसलिंग भी ट्रीटमेंट प्लान का भाग होती है। यह तब और जरूरी हो जाता है जब मरीज की मेन्टल हैल्थ कंडीशन ज्यादा खराब हो और हलूसिनेशन का कारण भी यही हो। साइकोथेरेपी में डाक्टर, मरीज से बातचीत करके समस्या को दूर करने का प्रयास करते हैं। इसमें   डाक्टर, मरीज के विचारों और भावनाओं को समझते हुए यह तय करता है कि समस्या दूर करने में कितनी सिटिंग चाहिये। कुछ अवस्थाओं में व्यक्तिगत सेशन के साथ-साथ ग्रुप सेशन की जरूरत होती है। इसे डायलेक्टिकल बिहैवियर थेरेपी कहते हैं, इसमें मरीज को सिखाया जाता है कि वह स्ट्रेस सहन करते हुए कैसे अपने व्यक्तिगत तथा सामाजिक रिश्ते बेहतर कर सकता है। इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली काग्निटिव बिहैविरल थेरेपी में मरीज को सिखाते हैं कि वह किस तरह से अपनी नकारात्मक सोच बदलकर मानसिक तनाव घटा सकता है। मनोचिकित्सकों का कहना है कि कुछ मामलों में यह समस्या स्ट्रेस और एंग्जॉयटी से होती है इसलिये सीबीटी के साथ विश्राम चिकित्सा और सम्मोहन को भी प्रयोग किया जाता है। नजरिया हलूसिनेशन का मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा अज्ञानता की वजह से पीड़ित लोगों को उनके करीबी इलाज हेतु डाक्टर या मनोचिकित्सक के पास ले जाने के बजाय झाड़-फूंक के लिये तांत्रिक-ओझाओं के पास ले जाते हैं जिससे समस्या और गम्भीर हो सकती है। इसलिये बीमारी के लक्षण महसूस होते ही मनोचिकित्सक से मिलें और उसे अपनी समस्या खुलकर बतायें। यदि इसका कारण मादक द्रव्यों का सेवन है और मरीज को इनकी आदत पड़ गयी है तो मनोचिकित्सक की देख-रेख में उसे किसी अच्छे रिहैबलिटेशन सेन्टर में कुछ महीनों के लिये दाखिल करायें। इलाज से हलूसिनेशन के लक्षण दूर होने पर अपने आप दवायें लेना बंद न करें, जब डाक्टर कहें तभी ऐसा करें।
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