जीवन मंत्र

वेजाइनल एट्रॉफी की आम समस्या

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वेजाइनल एट्रॉफी की आम समस्या
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक वर्तमान में करीब 40 प्रतिशत महिलायें इसका शिकार हैं लेकिन सामाजिक ताने-बाने से पैदा हुयी शर्म और झिझक से इलाज नहीं करातीं, समस्या बढ़ने पर घरेलू उपचार से काम चलाकर डॉक्टर के पास जाने से बचती हैं। मेडिकल साइंस के मुताबिक यह जानलेवा नहीं है लेकिन बिना इलाज इसके परिणाम गम्भीर और क्वालिटी ऑफ लाइफ खराब हो जाती है। वेजाइनल एट्रॉफी, महिलाओं को होनी वाली यौन समस्या जो जाति और नस्ल में भेद नहीं करती, दुनिया में कहीं की भी महिलायें हो उन्हें इस बीमारी का रिस्क हमेशा रहता है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के मुताबिक वर्तमान में करीब 40 प्रतिशत महिलायें इसका शिकार हैं लेकिन सामाजिक ताने-बाने से पैदा हुयी शर्म और झिझक से इलाज नहीं करातीं, समस्या बढ़ने पर घरेलू उपचार से काम चलाकर डॉक्टर के पास जाने से बचती हैं। मेडिकल साइंस के मुताबिक यह जानलेवा नहीं है लेकिन बिना इलाज इसके परिणाम गम्भीर और क्वालिटी ऑफ लाइफ खराब हो जाती है।  आखिर है क्या वेजाइनल एट्रॉफी? आमतौर पर 45 की उम्र के बाद महिलाओं में मेनोपॉज के कारण एग (अंडा) बनाना बंद होने से मासिक धर्म नहीं होता जिससे बहुत सी महिलायें वेजाइनल एट्रॉफी जैसी यौन समस्या का शिकार हो जाती हैं, ऐसा एस्ट्रोजन हारमोन कम बनने से होता है। मेडिकल साइंस में योनि की अंदरूनी दीवार पतली होने से पैदा हुई स्थिति (सूखापन) को वेजाइनल एट्रॉफी कहते हैं। इससे पीड़ित महिलाओं में यूटीआई (यूरीनरी ट्रैक इंफेक्शन) का रिस्क बढ़ता है व यौन संबध बनाने में असहनीय पीड़ा से सेक्स में रूचि समाप्त हो जाती है। यदि योनि की अंदरूनी त्वचा ज्यादा पतली हो जाये तो ब्लीडिंग होने से एंडोमेट्रियल एट्रोफी हो सकती है।  वेजाइनल एट्रॉफी बनाम एंडोमेट्रियल एट्रोफी यदि वेजाइनल एट्रॉफी को बिना इलाज छोड़ दिया जाये तो एंडोमेट्रियल एट्रोफी हो सकती है। एंडोमेट्रियल एट्रोफी, महिलाओं में पोस्‍टमेनोपॉजल ब्‍लीडिंग का कारण है। यूटेरिन लाइनिंग के पतले होने का मतलब भी एंडोमेट्रियल एट्रोफी होता है। एंडोमेट्रियल वह टिश्यू है, जो योनि लाइनिंग को मोटा (थिक) करने के साथ एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे हार्मोन्स को रिस्‍पॉन्‍ड करता है। मेनोपॉज के बाद हार्मोन स्तर में प्राकृतिक गिरावट वेजाइनल लाइनिंग के बहुत पतले होने का एक कारण है, इससे ब्‍लीडिंग होने लगती है। ब्लीडिंग का असल कारण जानना जरूरी: एंडोमेट्रियल एट्रोफी के अलावा ब्‍लीडिंग के और भी कारण होते हैं जैसे एंडोमेट्रियल कैंसर, एंडोमेट्रियल हाइपरप्‍लासिया, फाइब्रॉएड और पॉलिप्स। इसलिए ब्‍लीडिंग का वास्‍तविक कारण जानना जरूरी है। महिलाओं को यह समझने की आवश्यकता है कि पोस्‍टमेनोपॉजल ब्‍लीडिंग कभी भी सामान्य नहीं होती, यह एंडोमेट्रियल कैंसर का शुरुआती लक्षण भी है। किसी भी तरह की ब्‍लीडिंग, यहां तक कि स्पॉटिंग होने पर डॉक्टर के पास जायें। आमतौर पर, पोस्टमेनोपॉजल ब्‍लीडिंग चिंताजनक नहीं होती, लेकिन लगभग 10% पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं में, जिन्हें ब्‍लीडिंग हो रही है एंडोमेट्रियल कैंसर हो सकता है। ब्‍लीडिंग इस कैंसर का पहला संकेत है, इसलिए ब्‍लीडिंग का कारण जानने के लिए तुरंत डॉक्टर से मिलें। ब्‍लीडिंग का कारण जानने के लिए मेडिकल हिस्‍ट्री की समीक्षा और एंडोमेट्रियल बॉयोप्सी, ट्रांसवेजिनल अल्ट्रासाउंड, हिस्टेरोस्कोपी, डी एंड सी जैसे टेस्ट किये जाते हैं। क्या लक्षण उभरते हैं इसमें? वेजाइनल एट्रॉफी के लक्षण प्रत्येक महिला में अलग-अलग हो सकते हैं और यह जरूरी नहीं कि सभी लक्षण एक साथ उभरें। इसकी वजह से योनि में सूखापन, खुजली, ज्यादा डिस्चार्ज, सम्भोग में दर्द, ब्लीडिंग, बार-बार यूरीनेशन, पेशाब करते समय जलन, वजाइनल कैनाल सिकुड़ना और सेक्स में अरूचि जैसे लक्षण उभरते हैं। कारण क्या हैं इसके? इसका मुख्य कारण है मेनोपॉज के बाद महिला शरीर में एस्ट्रोजन हारमोन कम बनना। मेनोपॉज के अलावा और भी कई कारण हैं जिनसे शरीर में एस्ट्रोजन स्तर घटता है जैसेकि बच्चे को जन्म देना, शिशु स्तनपान या किसी अन्य बीमारी के इलाज में दी जा रही एंटी एस्ट्रोजन दवायें।  महिला ओवरी में बनने वाला एस्ट्रोजन हारमोन ब्लडस्ट्रीम में मिलकर सम्पूर्ण शरीर में सर्कुलेट होता है जिससे उत्सर्जित स्राव, योनि की अंदरूनी त्वचा को प्रोटेक्ट और नम रखता है। मेनोपॉज के बाद एस्ट्रोजन बनना बंद होने से योनि की अंदरूनी दीवारें पतली और स्राव बंद होने से योनि में सूखापन आता है परिणाम सम्भोग में दर्द और अन्य समस्यायें। प्रि-मेनोपॉज़ में भी एस्ट्रोजन हार्मोन स्तर में गिरावट आती है, इसलिए कई महिलायें प्रि-मेनोपॉज़ के दौरान वेजाइनल एट्रॉफी का शिकार हो जाती हैं। सर्जिकल मेनोपॉज, वैजाइनल एट्रॉफी का बड़ा कारण है। किसी बीमारी जैसे कि गर्भाशय में गांठ (सिस्ट)  इत्यादि के चलते सर्जरी से अंडाशय निकालने के कारण महिला शरीर में एस्ट्रोजन लेवल घटता है। एस्ट्रोजन घटने के अन्य कारणों में ब्रेस्ट कैंसर, एंडोमेट्रियोसिस, फाइब्रायड्स और बांझपन के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवायें तथा हारमोन्स होते हैं। एक शोध में सामने आया कि पैल्विक एरिया में दर्द के इलाज, अनकंट्रोल़्ड डॉयबिटीज, कीमोथेरेपी, हाई स्ट्रेस, डिप्रेशन और हार्ड एक्सरसाइज से भी शरीर में एस्ट्रोजन निर्माण प्रक्रिया बाधित होती है। यदि एक्सटर्नल कारणों की बात करें तो योनि या उसके आसपास के क्षेत्र में साबुन, लोशन और परफ्यूम के इस्तेमाल से होने वाली जलन और खुजली से वेजाइनल एट्रॉफी हो सकती है। अधिक स्मोकिंग, यीस्ट इंफेक्शन, टैम्पोन, निम्न श्रेणी के कंडोम और सिंथेटिक कपड़े से बने अंडरगारमेंट भी वेजाइनल एट्रॉफी का रिस्क बढ़ाते हैं, यदि समस्या पहले से है तो उसे ज्यादा गम्भीर बना देते हैं। पुष्टि कैसे होती है इसकी? एशियन देशों में ज्यादातर महिलायें संकोच/शर्म से यौन समस्याओं की बात ही नहीं करतीं डॉक्टर के पास जाना तो बहुत बड़ी बात है। यदि वेजाइनल एट्रॉफी के लक्षण दिखाई दें तो अनदेखा न करें, इस सम्बन्ध में स्त्री रोग विशेषज्ञ (गॉयनिकोलॉजिस्ट) से सलाह लें। गॉयनिकोलॉजिस्ट इसकी पुष्टि के लिये मरीज के शारीरिक परीक्षण के साथ पीरियड बंद होने तथा अन्य बीमारियों के बारे में पूछते हैं। यह भी पूछा जा सकता है कि वे कौन सा साबुन, परफ्यूम या डियोडिरेन्ट इस्तेमाल करती हैं। महिलाओं के आंतरिक यौन अंग इन उत्पादों के प्रति संवेदनशील होते हैं जिससे वेजाइनल एट्रॉफी हो सकती है। पुष्टि प्रक्रिया के दौरान पेल्विक एरिया और जननांगों के बाहरी हिस्सों की जांच करके योनि की चिकनाहट, अंदरूनी परत की मोटाई, लचीलापन, मूत्राशय की कोशिकाओं में खिंचाव की जांच की जाती हैं साथ ही ब्लड/यूरीन टेस्ट, वेजाइनल स्मीयर और वेजाइनल एसिडिटी टेस्ट किये जाते हैं। इलाज क्या है इसका? समय पर इलाज से जीवन पहले की तरह सामान्य हो जाता है, आमतौर पर इसका इलाज लक्षणों पर निर्भर है। यदि लक्षण गंभीर हैं तो एस्ट्रोजन रिप्लेसमेंट थेरेपी दी जाती है, इससे योनि में लचीलापन और प्राकृतिक नमी लौट आती है। इस थेरेपी में ओरल एस्ट्रोजन टेबलेट दी जाती हैं जो डायजेस्ट होकर ब्लडस्ट्रीम में मिलती हैं जिससे वेजाइनल एट्रॉफी के लक्षण कम हो जाते हैं। इसके अलावा एस्ट्रिंग नामक वेजाइनल रिंग जिसे योनि में इंसर्ट किया जाता है से ब्लड स्ट्रीम के जरिये पूरे शरीर में एस्ट्रोजन पहुंचाता है। आजकल वेजिफेम नामक वेजाइनल एस्ट्रोजन टेबलेट भी उपलब्ध हैं इन्हें एक डिस्पोजल द्वारा योनि में इंसर्ट करते हैं। इन्हें सप्ताह में दो बार इस्तेमाल करने से वेजाइनल एट्रॉफी समस्या में राहत मिलती है। प्रीमैरिन और एस्ट्रेस नामक एस्ट्रोजन क्रीम्स भी कारगर सिद्ध हो रही हैं। कैसे बच सकते हैं इससे? मेनोपॉज होने पर वेजाइनल एट्रॉफी से पीड़ित होने से पहले ही एस्ट्रोजन के इस्तेमाल से इससे बचा जा सकता है। रेगुलर सेक्स (यानी सेक्स में लम्बा अंतराल न डालें) भी वेजाइनल एट्रॉफी की समस्या कम करता है। इसके शुरुआती लक्षण उभरते ही महिलाओं को सेक्स लाइफ में ज्यादा एक्टिव रहना चाहिए, सेक्स सिर्फ इस बीमारी में ही नहीं बल्कि मानसिक सेहत के लिए भी फायदेमंद है। ऐसा नहीं कि सेक्स से शरीर में एस्ट्रोजन उत्पादन बढ़ेगा लेकिन इससे योनि क्षेत्र में रक्त संचार बेहतर होने से जननांग लम्बे समय तक स्वस्थ रहते हैं। यौन संबंध बनाने से पहले पानी में घुलनशील वेजाइनल ल्यूब्रिकेंट का प्रयोग नमी और चिकनाहट बनाये रखने में मदद करता है। विटामिन ई ऑयल वेजाइनल एट्रॉफी के लक्षण कम करता है, इसके अलावा नियमित विटामिन डी का सेवन यौन अंगों में नमी बढ़ाता है। विटामिन डी शरीर को कैल्शियम अवशोषित करने में मदद करता है जिससे पोस्टमेनोपॉज़ल बोन लॉस धीमा हो जाता है। डॉक्टर की सलाह से ऐसे मल्टीविटामिन सप्लीमेंट लेना शुरू करें जिसमें विटामिन ई, , डी, बी, बीटा कैरौटिन और ओमेगा-3 फैटी एसिड हों। एस्ट्रोजन थेरेपी के विकल्प के रूप में सी-बकथ्रोन ऑयल भी कारगर है, इसमें जरूरी फैटी एसिड भरपूर मात्रा में होते हैं जिससे योनि टिश्यूज में लचीलापन आने के साथ उनका क्षय रूकता है। सप्ताह में 5 दिन नियमित 30 मिनट का हल्का व्यायाम जननांगों में ब्लड सर्कुलेशन ठीक रखता है जिससे एट्रॉफी के लक्षण कम होते हैं। एट्रॉफी की समस्या होने पर भारी व्यायाम करने से बचें। स्मोकिंग, वेजाइनल एट्रॉफी को बढ़ाती है, धूम्रपान से योनि में पर्याप्त ब्लड सर्कुलेशन नहीं होता और सिगरेट में मौजूद कैमिकल शरीर में प्राकृतिक रूप से एस्ट्रोजन निर्माण रोकते हैं। सूती अंडरवियर और ढीले-ढाले कपड़े पहनने से जननांगों के चारों ओर एयर सर्कुलेशन ठीक रहता है, जिससे हानिकारक बैक्टीरिया ग्रोथ घटती है। यदि बच्चे को जन्म देने या मेनोपॉज के बाद असामान्य लक्षण महसूस हो, ओवरी या यौन अंगों में बदलाव नज़र आये तो डॉक्टर से मिलें, समय पर इलाज से वेजाइनल एट्रॉफी और इससे होने वाली समस्याओं से बच सकते हैं। ध्यान रहे किसी भी बीमारी को शुरुआत में रोकना ज्यादा आसान है इसलिए बिलकुल भी लापरवाही न बरतें।  
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