जीवन मंत्र

बड़ा-फूला हुआ दिल, सावधान रहे

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बड़ा-फूला हुआ दिल, सावधान रहे
सन् सत्तर में बनी स्व. राजकपूर की मशहूर हिंदी फिल्म मेरा नाम जोकर के शुरूआती दृश्य में डाक्टर बने ओमप्रकाश कहते हैं कि इसका (राजू जोकर का) दिल बहुत बड़ा है, ये बहुत गम्भीर बीमारी है  ऑपरेशन करना पड़ेगा, हास्य पैदा करने के लिये बोला गया यह डॉयलाग मेडिकल साइंस के नजरिये से सौ प्रतिशत सत्य है क्योंकि दिल का बड़ा होना (इन्लार्ज हार्ट) एक जानलेवा कंडीशन है, यह इस बात का संकेत है कि निकट भविष्य में स्वास्थ्य के लिये कुछ बुरा घटने वाला है जैसेकि- दिल का वॉल्व खराब होगा या हार्ट अटैक आयेगा। हमारे देश में प्रतिवर्ष इसके दस लाख से ज्यादा मामले सामने आते हैं, यदि समय पर इलाज न कराया जाये तो जान भी जा सकती है या सारी उम्र दवाओं के सहारे कटती है। इसकी वजह और इलाज के बारे में जानने हेतु मैंने डॉ. धीरेन्द्र सिंह (कार्डियोलॉजिस्ट, मेदान्ता-मेडीसिटी (गुरूग्राम)) से बातचीत की और उनसे जो जानकारी मिली वह आज के कॉलम में पाठकों के लिये प्रस्तुत है- मेडिकल साइंस में इसे कार्डियोमेगली कहते हैं, इसमें दिल का आकार सामान्य से बड़ा हो जाने पर मांसपेशियां कठोर व मोटी (थिक) तथा ब्लड चैम्बर चौड़े हो जाते हैं जिससे दिल की ब्लड पम्प करने की क्षमता घटती है और सही रक्त आपूर्ति बनाये रखने के लिये दिल को ज्यादा काम करना पड़ता है। कार्डियोमेगली कंडीशन या तो जन्म से दिल में किसी बड़े डिफेक्ट या दिल के ज्यादा काम करने से होने वाली जानलेवा बीमारियों का संकेत है। इसकी वजह से कार्डियोम्योपैथी, हार्ट वॉल्व में खराबी, हार्ट फेलियर, स्ट्रोक और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां हो जाती हैं। लक्षण दिल बड़ा होने पर सांस फूलना, एरिद्मिया (अनियमित धड़कन), एडिमा (पैरों और टखनों में सूजन), थकान, सिर चकराना, छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी, बाजू, गरदन या जबड़े में दर्द और बेहोशी जैसे लक्षण उभरते हैं। छाती में दर्द, सांस लेने में परेशानी, बाजू, गरदन या जबड़े में दर्द और बेहोशी जैसे लक्षण मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति है, ऐसे में पीड़ित को तुरन्त पास के अस्पताल ले जायें अन्यथा जान जा सकती है। बड़ा दिल, कारण क्या है? मेडिकल साइंस के अनुसार बड़े दिल की समस्या या तो जन्मजात (कन्जेन्टिल) होती है या किसी अन्य कंडीशन के कारण समय के साथ धीरे-धीरे विकसित हो जाती है। कोई भी ऐसी बीमारी जिसकी वजह से दिल को ब्लड पम्प करने के लिये ज्यादा मेहनत करनी पड़े इस कंडीशन को जन्म देती है। जैसे हाथों व पैरों की वे मांसपेशियां ज्यादा बड़ी हो जाती हैं जिनका अधिक इस्तेमाल होता है इसी तरह से दिल पर अधिक काम पड़ने से इसका आकार बढ़ जाता है। इस सम्बन्ध में हुए शोध के मुताबिक इसका सबसे आम कारण इस्केमिक हार्ट डिसीस और हाई ब्लड प्रेशर है। इस्केमिक हार्ट डिसीस में धमनियां कोलोस्ट्रॉल जमने के कारण सकरी हो जाती हैं ऐसे में ब्लड पम्प करने के लिये दिल को अधिक जोर लगाना पड़ता है। इनके अलावा कुछ और कारणों से भी दिल बड़ा हो सकता है जैसेकि- कार्डियोम्योपैथी: यह एक प्रोग्रसिव अर्थात लगातार बढ़ने वाली बीमारी है जिसके कई प्रकार होते हैं। इसमें मांसपेशियां डैमेज होने से दिल कमजोर होता है व इसका आकार बढ़ने लगता है जिससे ब्लड पम्प करने की क्षमता घट जाती है। हार्ट वॉल्व डिसीस: संक्रमण, कनेक्टिव टिश्यू डिसीस और कुछ अन्य मेडिकल कंडीशन्स से दिल का  वॉल्व डैमेज होने पर ब्लड फ्लो बैक मारता है ऐसे में ब्लड को वापस भेजने के लिये दिल को ज्यादा जोर लगाना पड़ता है और परिणाम इन्लार्ज हार्ट के रूप में सामने आता है। हार्ट अटैक: हार्ट अटैक के दौरान दिल के एक भाग में रक्त प्रवाह रूकता है, इस कंडीशन में ऑक्सीजन की कमी से दिल की मांसपेशियां डैमेज होने से दिल का आकार बढ़ता है। थायरॉइड डिसीस: हमारे मेटाबॉलिज्म (चय-पचय) को कंट्रोल करने हेतु थायरॉइड ग्रन्थि हारमोन्स बनाती है, जब यह ग्रन्थि जरूरत से ज्यादा (हाइपरथायरोडिज्म) या कम (हाइपोथॉयरोडिज्म) हारमोन बनाती है तो हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर प्रभावित होता है जो दिल के आकार बढ़ने का कारण बनता है। दिल की लय अनियमित होना: इसे एरिद्मिया कहते हैं। जब यह लय धीमी या तेज (अनियमित) होती है तो ब्लड दिल में बैक मारता है जिससे दिल की मांसपेशियां डैमेज होने लगती हैं और परिणाम इन्लार्ज हार्ट के रूप में सामने आता है। कन्जेन्टिल कंडीशन इस स्थिति में दिल में जन्मजात खराबी होती है जैसेकि- एट्रियल सेप्टल डिफेक्ट: इसमें दिल के ऊपरी चैम्बरों को विभाजित करने वाली वॉल (दीवार) में छेद होता है। वेन्ट्रीकुलर सेप्टल डिफेक्ट: इसमें दिल के निचले चैम्बरों को विभाजित करने वाली वॉल (दीवार) में छेद होता है। कॉर्कटेशन ऑफ द अरोटा: इसमें दिल से सम्पूर्ण शरीर में रक्त ले जाने वाली मुख्य धमनी (अरोटा) सकरी (नैरो) हो जाती है। पेटेन्ट डक्टस आर्टियोसस: इस कंडीशन में दिल से सम्पूर्ण शरीर में रक्त ले जाने वाली मुख्य धमनी (अरोटा) में छेद होता है। इब्सटीन्स एनाटमी: इस स्थिति में दिल के राइट (दांयी ओर के) साइड के चैम्बरों को अलग-अलग करने वाले वॉल्वों (एट्रियम और वेन्ट्रिकल)  में समस्या आ जाती है। टेट्रालॉजी ऑफ फेलोट (टीओएफ): इसमें जन्म से ही दिल में कई समस्यायें होती हैं जिनसे दिल का नार्मल रक्त प्रवाह डिस्टर्ब हो जाता है। दिल बड़ा होने के इन कारणों के अलावा सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पुलमोनरी डिसीस), पुलमोनरी हाइपरटेशन, एनीमिया, कनेक्टिल टिश्यू डिसीस जैसेकि स्क्लेरोडर्मा, माइकार्डिटिस और अधिक मात्रा में लम्बे समय तक मदिरापान, धूम्रपान व मादक द्रव्यों के सेवन से भी दिल का आकार बढ़ जाता है। किन्हें होती है ज्यादा जोखिम? हाई ब्लड प्रेशर, मोटापा, सुस्त जीवनशैली या जिनके माता-पिता व भाई-बहनों को यह समस्या हो, मेटाबोलिक डिस्आर्डर (थायरॉइड डिसीस) और अधिक मात्रा में लम्बे समय तक मादक द्रव्यों का सेवन करने वालों को इसका रिस्क ज्यादा होता है। जिन लोगों को हार्ट अटैक हो चुका है उनमें भी दिल बड़े होने का रिस्क बढ़ जाता है। क्या जटिलताएं हो सकती हैं? यदि इन्लार्ज हार्ट का समय से इलाज न कराया जाये तो हार्ट फेलियर, ब्लड क्लॉट, हार्ट मर-मर और कार्डियक अरेस्ट जैसी समस्यायें हो सकती हैं। कैसे पता चलता है बड़े दिल का? इसकी पुष्टि के लिये फिजिकल जांच के साथ डाक्टर लक्षणों के बारे में जानकारी लेते हैं। साथ ही   हृदय के स्ट्रक्चर की जानकारी हासिल करने के लिये कुछ टेस्ट किये जाते हैं जिनमें एक्स-रे पहला  है। दिल का आकार किन कारणों से बढ़ा है इसका पता लगाने के लिये ईसीजी (ईकोकार्डियोग्राम), इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम, स्ट्रेस टेस्ट, सीटी स्कैन, एमआरआई और कुछ ब्लड टेस्ट भी किये जाते हैं। प्रेगनेन्सी के दौरान बच्चे के दिल में डिफेक्ट पता करने के लिये डाक्टर फेटल ईकोकार्डियोग्राम टेस्ट कराते हैं, इसमें ध्वनि तरंगों से बच्चे के दिल का आकार स्क्रीन पर डिस्प्ले होता है। यदि फैमिली हिस्ट्री में कार्डियोमेगली या कोई अन्य हार्ट डिफेक्ट है या बच्चा डाउन सिन्ड्रोम से ग्रस्त है तो भी यह टेस्ट किया जाता है। इलाज बड़े दिल (कार्डियोमेगली) का इलाज उन कारणों के आधार पर होता है जिनसे यह स्थिति बनी है। इसमें हाई ब्लड प्रेशर, अनियमित हार्ट बीट और हार्ट फेलियर रोकने के लिये दवायें दी जाती हैं। यदि धमनियां सकरी हो गयी हैं तो प्रिक्यूटेनियस कोरोनरी इंटरवेन्सन और कोरोनरी आर्टरी बाइपास ग्राफ्टिंग की जाती है। अनियमित हार्ट बीट की समस्या जब दवाओं से ठीक नहीं होती तो पेसमेकर और आईसीडी जैसे उपकरणों को दिल में फिट करते हैं। इसी तरह से वॉल्व की समस्या ठीक करने के लिये सर्जरी से वॉल्व फिक्स करते हैं या फिर उसे रिप्लेस किया जाता है। व्यायाम: हार्ट इन्लार्ज करने वाली दिल की बीमारियों से बचने का सबसे आसान उपाय व्यायाम है। नियमित व्यायाम से दिल में रक्त प्रवाह ठीक रहता है और कार्डियोवैस्कुलर फिटनेस इम्प्रूव हो जाती है। रोजाना 60 मिनट का व्यायाम या टहलना हृदय स्वस्थ रखने में सहायक है। खान-पान में बदलाव: कम वसा (लो फैट) और कम नमक वाला शाकाहारी भोजन शरीर में कोलोस्ट्रॉल की मात्रा नियन्त्रित रखता है। भोजन में नमक और मीठे की कम मात्रा से ब्लड प्रेशर और शुगर कंट्रोल रहते हैं व मोटापा भी घटता है। हाई-फाइबर खाने को अपनाने के लिये साबुत दालें और मल्टीग्रेन आटे के सेवन को बढ़ावा दें। रिफाइन्ड तेलों और वनस्पति घी (ट्रांस फैट) के स्थान पर सरसों का तेल और शुद्ध घी प्रयोग करें। खाने में नियमित रूप से हरी पत्तेदार सब्जियां, सेब और बादाम शामिल करें। मांसाहारी लोग रेड मीट का सेवन छोड़कर मछली को प्राथमिकता दें क्योंकि इसमें हृदय को स्वस्थ रखने वाला ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है। दूध, क्रीम, चीज, मक्खन और ट्रांस फैट के सेवन से बचें या इन्हें न्यूनतम करें। दूध के स्थान पर दही का सेवन करें। सही इलाज और खानपान से यदि आपका ब्लड प्रेशर 130/80 से कम, फास्टिंग ब्लड शुगर 70 से 100 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर के बीच, ब्लड कोलोस्ट्रॉल 180 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर के नीचे, बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) 18.5 और 24.9 के मध्य, कमर का घेरा महिलाओं के लिये 35 इंच से कम तथा पुरूषों के लिये 40 इंच से कम रहता है तो भविष्य में दिल सम्बन्धी बीमारियों के चांस कम हो जाते हैं। नजरिया हार्ट इन्लार्जमेंट की कंडीशन जानलेवा बीमारियों का संकेत है ऐसे में इसका पता चलते ही डाक्टर के कहे अनुसार दवायें लें और जीवनशैली में परिवर्तन करें। जैसे ही मरीज को इसके लक्षण महसूस हों  उसे जल्द से जल्द डाक्टर के पास ले जाने का प्रयास करें। यदि पहले हार्ट अटैक हो चुका है तो भविष्य में इससे बचाव के लिये लिखी गयी दवाइयों को हमेशा साथ रखें। बड़े दिल की कंडीशन  में कभी भी डाक्टर की बिना सलाह के डायोरेटिक (पेशाब लाने के लिये दी जाने वाली दवाइयां), एंटीबॉयोटिक, एंटीसायोटिक्स,एंटीडिप्रसेन्ट और सोडियम ब्लॉकिंग दवाइयां न लें। ज्यादा भारी व्यायाम (जैसेकि वजन उठाना और तेज दौड़ना) न करें लेकिन हल्के व्यायाम नियमित करें। यदि मरीज मधुमेह (डाइबिटीज) और ब्लड प्रेशर से पीड़ित है तो इन्हें कंट्रोल करने वाली दवाइयों को नियमित और निर्धारित समय पर लें। किसी भी तरह का बुखार होने की स्थिति में इलाज में कोताही न बरतें और जितनी जल्दी हो सके इसका इलाज करायें। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है हार्ट के स्ट्रक्चर में बदलाव होते हैं, ऐसे में साल में दो बार कार्डियोलॉजिस्ट से मिलना चाहिये ताकि वह हृदय के स्ट्रक्चर में आ रहे परिवर्तनों के मुताबिक दवायें एडजस्ट कर सकें। बड़े दिल से होने वाली बीमारियों से बचने के लिये धूम्रपान और दूसरे मादक द्रव्यों के सेवन से बचें। यदि एक बार हार्ट अटैक आ चुका है तो जीवन भर के लिये इन्हें त्याग दें। स्ट्रेस या तनाव ब्लड प्रेशर बढ़ाता है इसलिये योगा और मेडीटेशन से तनाव मुक्त रहने का प्रयास करें।
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