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पाप का नाश करने वाली है पापमोचनी एकादशी

पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। मनुष्य के समस्त पापों के नाश और सुख- समृद्धि की प्राप्ति हेतु पापमोचनी एकादशी व्रत किये जाने की प्राचीन परिपाटी भारत में प्रचलित है। पापमोचनी एकादशी का अर्थ है पाप को नष्ट करने वाली एकादशी। इस दिन निंदित कर्म तथा मिथ्या भाषण सर्वथा वर्जित हैं। लोक मान्यतानुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का व्रत समस्त पापनाशक और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदायक है।

17 मार्च 2023 को पापमोचिनी एकादशी

संसार के सभी मनुष्य पापकर्म के फल से डरते हैं। लेकिन इन्द्रिय के वशीभूत होकर कभी न कभी जाने -अनजाने में पाप कर्म कर ही डालते हैं। और फिर पाप के नाश और जीवन में सुख- समृद्धि की प्राप्ति के लिए ईश्वर की शरण में जाकर भक्ति भाव से उपासना -आराधना करते हुए पाप कर्मों के नाश व कृत पापकर्म की क्षमा मांगने का कोई न कोई यत्न अवश्य ही करते हैं। वैष्णवों में पाप कर्मों के नाश व कृत पापकर्म की क्षमा मांगने के लिए एकादशी व्रत विशेषकर चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी, जिसे पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है, किये जाने का विधान है।

पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। मनुष्य के समस्त पापों के नाश और सुख- समृद्धि की प्राप्ति हेतु पापमोचनी एकादशी व्रत किये जाने की प्राचीन परिपाटी भारत में प्रचलित है। पापमोचनी एकादशी का अर्थ है पाप को नष्ट करने वाली एकादशी। इस दिन निंदित कर्म तथा मिथ्या भाषण सर्वथा वर्जित हैं। लोक मान्यतानुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का व्रत समस्त पापनाशक और जीवन में सुख-समृद्धि प्रदायक है। पाप मोचनी एकादशी के सन्दर्भ में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन करते हुए कहा गया है कि इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती को दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन कर मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाना चाहिए।

एकादशी तिथि को सूर्योदय काल में स्नान कर व्रत का संकल्प ले भगवान विष्णु को अर्ध्य दान देकर षोडशोतपचार पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात धूप, दीप, चंदन आदि से नीराजन करना चाहिए। भिक्षुक, बन्धु-बान्धव तथा ब्राह्मणों को भोजन दान देना फलदायी माना गया है। पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भगवद कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए। एकादशी तिथि को रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है। यही कारण है कि एकादशी तिथि को रात्रि में भी निराहार रहकर भजन- कीर्तन करते हुए जागरण करने की प्राचीन परम्परा आज भी भारत में प्रचलित है। द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा कर और फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही स्वयं भोजन करने का विधान भविष्योत्तर पुराण में किया गया है । मान्यतानुसार इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी, मद्यपान, अहिंसा, अगम्यागमन, भ्रूणघात आदि अनेकानेक घोर पापों के दोषों से मुक्ति मिल जाती है।

समस्त पापों को नष्ट करने वाली चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापमोचनी एकादशी के सन्दर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार महाराज युधिष्ठिर के द्वारा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के सम्बन्ध में पूछे जाने पर भगवान श्रीकृष्ण ने चैत्र मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के नाम, व्रत विधि व महिमा के बारे में जानकारी देते हुए प्राचीन कालीन चक्रवर्ती नरेश मान्धाता के पूछने पर महर्षि लोमश के द्वारा बताई गई पापनाशक उपाख्यान सुनाई।

कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण युद्धिष्ठिर से कहते हैं, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से मनुष्य से जाने – अनजाने हुए पाप कर्मों से मुक्ति का उपाय पूछा। राजा मान्धाता के इस प्रश्न के प्रत्युत्तर में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि प्राचीन काल में अप्सराओं से सेवित चैत्ररथ नामक अति रमणीक वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी नामक ऋषि ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं तथा देवताओं सहित स्वच्छन्द विहार किया करते थे। ऋषि मेघावी शिव भक्त तथा अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी। एक समय की बात है कि कामदेव ने मेधावी मुनि की तपस्या को भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा। मंजुघोषा मुनि के भय से आश्रम से एक कोस दूर ही ठहर गई और मुनिवर मेघावी को मोहित करने के लिए सुन्दर ढंग से वीणा बजाती हुई मधुर गीत गाने लगी। मुनिश्रेष्ठ मेघावी के कानों तक भी यह सुमधुर आवाज पहुँची और घूमते हुए वे उधर जा निकले। ऋषि मेघावी उस सुन्दर अप्सरा को इस प्रकार गान करते देख बरबस ही मोह के वशीभूत हो गये। मंजुघोषा ने अपने नृत्य-गान और हाव-भाव से ऋषि का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया। अप्सरा के हाव-भाव और नृत्य गान से ऋषि उस पर मोहित हो गए। मुनि की ऐसी अवस्था देख मंजुघोषा उनके समीप आई और वीणा नीचे रखकर उनका आलिंगन करने लगी। मेघावी भी उसके साथ रमण करने लगे। रात और दिन का भी उन्हें भान न रहा।

इस प्रकार रमन करते हुए दोनों ने अनेक वर्ष साथ-साथ व्यतीत किये। एक दिन जब मंजुघोषा ने देवलोक जाने के लिए आज्ञा माँगी तो ऋषि को आत्मज्ञान हुआ। उन्होंने समय की गणना की, तो उन्हें पत्ता चला कि मंजुघोषा के साथ रमन करते हुएउनके सतावन वर्ष व्यतीत हो चुके थे। ऋषि को अपनी तपस्या भंग होने का भान हुआ। उन्होंने अपने को रसातल में पहुँचाने का एकमात्र कारण मंजुघोषा को समझकर, क्रोधित हो उसे पिशाचनी होने का शाप दे दिया। मुनि के शाप से दग्ध होकर वह विनय से नतमस्तक हो कांपते हुए बोली – मेरे शाप का उद्धार कीजिये। सात वाक्य बोलने अथवा सात पद साथ -साथ चलने मात्र से ही सत्पुरुषों के साथ मैत्री हो जाती है। ब्रह्मन ! मैंने तो आपके साथ अनेक वर्ष व्यतीत किये हैं, अत: मुझ पर कृपा कीजिये। मुझे मुक्ति मार्ग बताइये। बहुत अनुनय-विनय करने पर ऋषि का हृदय पसीज गया।

मुनि बोले – भद्रे ! क्या करुँ? तुमने मेरी बहुत बड़ी तपस्या नष्ट कर डाली है। फिर भी सुनो। चैत्र कृष्णपक्ष में आने वाली एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा जाता है। वह शाप से उद्धार करने वाली तथा सब पापों का क्षय करने वाली है। उस एकादशी का व्रत करने पर तुम्हारे पाप और शाप दोनों ही समाप्त हो जाएंगे। तुम्हारी पिशाचता दूर होगी और तुम पुन: अपने पूर्व रूप को प्राप्त करोगी। अप्सरा को मुक्ति का मार्ग बताकर मेघावी अपने पिता मुनिवर च्यवन के आश्रम पर गये। अप्सरा और फिर शाप की बात सुनकर महर्षि च्यवन ने कहा- पुत्र! तुमने यह क्या किया? तुमने तो अपने पुण्य का नाश कर डाला। मेघावी के पातक नाश और प्रायश्चित के लिए उपाय पूछे जाने पर च्यवन ने कहा – चैत्र कृष्णपक्ष में आने वाली पापमोचनी एकादशी का व्रत करने पर पाप राशि का विनाश हो जायेगा। पिता का यह कथन सुनकर मेघावी ने उस व्रत का अनुष्ठान किया। इससे उनका पाप नष्ट हो गया और वे पुन: तपस्या से परिपूर्ण हो गये । इसी प्रकार मंजुघोषा ने भी इस उत्तम व्रत का पालन किया। पापमोचनी एकादशी का व्रत करने के कारण वह पिशाचयोनि से मुक्त हुई और दिव्य रुपधारिणी श्रेष्ठ अप्सरा होकर स्वर्गलोक में चली गयी।

भगवान श्रीकृष्ण ने व्रत की सम्पूर्ण विधि-विधान का वर्णन करते हुए कहा कि जो श्रेष्ठ मनुष्य पापमोचनी एकादशी का व्रत करते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इस कथा को पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है। ब्रह्महत्या, सुवर्ण की चोरी, सुरापान और गुरुपत्नीगमन करनेवाले महापातकी भी इस व्रत को करने से पापमुक्त हो जाते हैं। यह व्रत बहुत पुण्यमय है।

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