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शनि की दृष्टि पड़ते ही धड़ से अलग हो गया था गणेश जी का मस्तक

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शनि की दृष्टि पड़ते ही धड़ से अलग हो गया था गणेश जी का मस्तक
भोपाल। विघ्न विनाशक, बुद्धि दाता भगवान गणेश के जन्म को लेकर वेद और पुराणाें में कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं। यह हम सब जानते हैं शिव और पार्वती के पुत्र भगवान गणेश का जन्म भादों मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ। स्कंद पुराण के अनुसार गणेश जी का जन्म अरबुद पर्वत पर हुआ। यह पर्वत आज माउंट आबू पर्वत के नाम से जाना जाता है। इसे अर्ध काशी भी कहते हैं। यहां भगवान गणेश का विशाल मंदिर है। माना जाता है कि यहां के दर्शन और पूजन करने से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। ganesh chaturthi celebrated 2021 बारह पुराण के अनुसार भगवान शिव एक बार पंच तत्वों से एक ऐसे जीव की रचना कर रहे थे जो विद्यावान, रूपवान और गुणवान हो। जब इसकी भनक देवताओं को लगी तो उन्हें यह डर सताने लगा कि यदि भगवान शिव अपने इस मनोरथ में सफल हो गए और सुदर्शन व बुद्धि, विद्या के देवता की रचना कर दी तो हमें पूछेगा कौन?  और ऐसा जीव सबके आकर्षण का केंद्र हो जाएगा। सारे देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और अपनी मंशा उनके सामने जताई। तब भगवान शिव ने इन देवताओं का मान रखते हुए जिस जीव की रचना कर रहे थे उसका पेट बड़ा कर दिया और मस्तक पर सूंड लगा दी ganesh chaturthi 2021 ....और शनि की दृष्टि ने अनर्थ कर दिया: एक दूसरी कथा जो बहुत कम प्रचलित है वह कथा यह है पार्वती जी के मन में एक बार यह भाव आया कि मैं एक ऐसे पुत्र को जन्म दूं जो अत्यंत सुंदर हो विद्या, बुद्धि और बल में श्रेष्ठ हो। यह बात उन्होंने शिवजी को बताई। इस पर शिवजी ने उनसे कहा कि इसके लिए आपको तप करना पड़ेगा। इसके बाद पार्वती जी कई समय तक तपस्या में रहीं। तब भगवान गणेश ने उन्हें स्वप्न में आकर कहा कि मैं बिना आपके गर्भ में आए आपके घर में जन्म लूंगा और ऐसा ही हुआ। पार्वती मां को सुंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। भगवान गणेश जी को देखने समस्त लोक के देवी, देवता आए। बालक इतना सुंदर था कि सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए। कहा जाता है कि इन देवताओं के साथ शनिदेव भी गणेश जी का दर्शन करने आए थे। बारी-बारी से जब सब देवता भगवान गणेश जी को आशीर्वाद देकर जाने लगे तब माता पार्वती जी ने शनि देव से कहा शनि महाराज आप भी आइए और पुत्र को आशीर्वाद दीजिए लेकिन शनि देव भगवान गणेश जी के पास नहीं आना चाहते थे क्योंकि वे जानते थे कि उन्होंने यदि भगवान गणेश जी को देख लिया तो अनर्थ हो जाएगा। लेकिन पार्वती जी ने उनसे पुनः भगवान गणेश को आशीर्वाद देने का आग्रह किया। इस पर शनिदेव भगवान गणेश जी के पास आए और जैसे ही उन्होंने अपनी दृष्टि गणेश जी के चेहरे पर डाली इतने में ही भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग होकर आसमान में जा समाया। चारों दिशाओं में निराशा छा गई और कोहराम मच गया। इसके बाद भगवान शिव ने गरुड़ जी को आज्ञा दी कि जाओ एक उत्तम सिर लेकर आओ। तब गरुड़ जी उत्तर दिशा में गए और हाथी का सिर ले आए भगवान शिव ने वह हाथी का सिर धड़ पर रख दिया और भगवान गणेश जी की पुनर्रचना हुई। इसलिए कहा जाता है कि शनि की दृष्टि बहुत अनर्थ कारी होती है ज्योतिष शास्त्र में जिस भाव में शनि बैठते हैं वह शुभ माना जाता है लेकिन जिन भावों पर शनि की दृष्टि पड़ती है वहां अनर्थ ही होता है। Read also वैदिक-शिल्पी विश्वकर्मा Ganesh chaturthi celebrated 2021 ऐसा गुस्सा कि पुत्र का ही सिर धड़ से अलग कर दिया: भगवान गणेश जी के जन्म को लेकर एक और कथा जो सर्वविदित है और हम सब जानते हैं। एक बार की बात है पार्वती जी ने उबटन लगाई और जब उसे उतारा तो उसके मेल से मिट्टी का पुतला बना दिया फिर उसमें प्राणों का संचार कर दिया। हम यह भी जानते हैं कि एक समय पार्वती जी गुफा में थी। उन्होंने पहरा देने के लिए गणेश जी को दरवाजे पर बैठा दिया और यह आदेश दिया कि जब तक मैं न कहूं तब तक आप किसी को अंदर मत आने देना। संयोगवश उसी समय कुछ देर बाद भगवान शिव का वहां आना हुआ। गणेश जी ने उन्हें गुफा में जाने से रोक दिया और कहा कि माता आज्ञा के बिना कोई भी अंदर नहीं जा सकता। भगवान शिव ने गणेश जी को बहुत समझाया पर वे नहीं माने। इस पर शिव और गणेश में बहुत बहस हुई। बात इतनी बढ़ गई कि दोनों में युद्ध हो गया। शंकर जी को इतना इतना गुस्सा आया कि उन्होंने त्रिशूल से गणेश जी की गर्दन काट दी। यह सब सुनकर माता बाहर निकलीं और गणेश जी का धड़ पृथ्वी पर पड़ा देखकर अत्यंत क्रोधित हो गई।  उन्होंने भगवान शिव से कहा कि आपने यह क्या कर दिया। अनर्थ हो गया। माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि आपको अभी मेरे पुत्र को जीवित करना पड़ेगा। तब भगवान शिव ने गरुड़ जी को आज्ञा दी कि आप उत्तर दिशा में जाओ और जो भी माता अपने पुत्र की तरफ पीठ करके सो रही हाे उसका मस्तक ले आओ। गरुड़ जी गए। उन्हें एक हथिनी अपने पुत्र की तरफ पीठ करके सोते हुए मिली। गरुड़ जी तुरंत हाथिनी के बच्चे का मस्तक लेकर आ गए। तब भगवान शिव ने वह मस्तक गणेश जी के धड़ पर रख दिया और उनके शरीर में प्राणों का संचार कर दिया। इस प्रकार भगवान गणेश की रचना हुई।  आज भी भगवान गणेश इसी रूप में पूरे विश्व में पूजे जाते हैं। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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