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इस गांव के एक ग्वाले को माता ने दिये थे दर्शन, पिंड स्वरूप में विराजमान है मां

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इस गांव के एक ग्वाले को माता ने दिये थे दर्शन, पिंड स्वरूप में विराजमान है मां
कानपुर से करीब 40 किमी दूर स्थित घाटमपुर तहसील में मां कुष्मांडा को 1000 साल पुराना मंदिर है. इस मंदिर की नींव 1380 में राजा घाटमपुर दर्शन ने रखी थी. मंदिर के एक चबूतरे में मां की लेटी हुई मुर्ति स्थापित है. 1890 में घाटमपुर के एक कारोबारी चंदीदीन भुर्जी ने मंदिर का निर्माण करवाया था. मां कुष्मांडा देवी दुर्गा की चौथी शक्ति है. अपनी मंद हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है. इस दिन मां कूष्मांडा की उपासना से आयु, यश, बल, और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है.  पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए. इससे भक्तों के रोगों और दुखों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है. ये देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं. इसे भी पढ़ें Virat Kohli को Wisden ने चुना सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी, पुरस्कार पाने वाले बने तीसरे भारतीय

मां कुष्मांडा की मुर्ति से लगातार रिसता है पानी

मां कुष्मांडा इस प्राचीन मंदिर में मां पिंड के रूप में लेटी हुई है. मां के पिंड स्वरूप मुर्ति से लगातार पानी रिसता रहता है. माता के भक्त इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है. माता के इस जल को ग्रहण करने से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है.  कई वैज्ञानिकों ने इस रहस्य को जानने की कोशिश की कई प्रकार के शोध किये गए लेकिन मां की इस चमत्कार की खोज नहीं कर पाए.

पंडित नहीं माली करते है पूजा-पाठ

देवी के इस मंदिर में पंडित पूजा नहीं करते है इस मंदिर में माली पूजा करते है.  यहां दसवीं पीढ़ीं से माली ही पूजा करते आ रहे है.  माली इस मंदिर में सुबह ध्यान के बाद मंदिर के पट खोलते है.  मंदिर की साफ-सफाई के बाद माता का पूजन करना रोज का काम है.  माता के भक्त की मनोंकामना पूर्ण होने के बाद मंदिर में हवन-पाठ करवाते हैं.

माता ने चरवाहे को दर्शन दे बताया...

आज से हजार साल पहले  घाटमपुर तहसील जंगलों से घिरा हुआ था. वहां गांव का एक ग्वाला कूढ़हा गाय चराने के लिए आता था. शाम को जब वह घर जाकर गाय से दूध निकालता तब गाय से एक भी बूंद दूध की नहीं निकलती थी.  ग्वाले  को शक हुआ और वह गाय को लेकर शाम चरने गया तो गाय के आंचल से एक दूध की धारा निकली और समय वहीं पर माता ने प्रकट होकर कहा- मैं माता सती का चौथा अंश हूं.  ग्वाले ने सभी गांव वालों को यह बात बताई तो वहीं पर खुदाई की गई और माता कुष्मांडा की पिंडी निकली .  गांव वालों ने माता की वहीं स्थापना कर दी और माता से मिकलने वाले जल के प्रसाद के रूप में ग्रहण करने लगे।

माता सती को चौथा अंश गिरा था यहां

शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। इसमें सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया था। लेकिन शंकर भगवान को निमंत्रण नहीं दिया गया था। माता सती भगवान शंकर की मर्जी के खिलाफ उस यज्ञ में शामिल हो गईं। माता सती के पिता ने भगवान शंकर को भला-बुरा कहा था, जिससे अक्रोसित होकर माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। माता सती के अलग-अलग स्थानों में नौ अंश गिरे थे। माना जाता है कि चौथा अंश घाटमपुर में गिरा था। तब से ही यहां माता कुष्मांडा विराजमान हैं।

मंदिर का तालाब कभी सूखता नहीं है

मान्यता के अनुसार यदि सूर्योदय से पहले नहा कर छह महीने तक इस नीर का इस्तेमाल किसी भी बीमारी में करे तो उसकी बीमारी शत फीसदी ठीक हो जाती है।मंदिर पास बने तलाब में कभी पानी नहीं सूखता है। बुजुर्ग राम सिंह के मुताबिक बारिश हो या नहीं इस बात का तालाब पर कोई असर नहीं पड़ता। सूखा भी पड़ जाए तो इसमें पानी कम नहीं होता। माता को प्रसाद के रूप में गुढ़,तना और पुआ चढ़ाए जाते है। इसे भी पढ़ें चैत्र नवरात्र 2021 : मां कुष्मांडा ने देत्यों के विनाश करने के लिए लिया अवतार
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