आदित्यों और देवों की जननी देवमाता अदिति का वेदों में भूमिमाता के रूप में चित्रण हुआ है। ऋग्वेद में अनेकशः अदिति का अर्थ पृथ्वी, भूमि का वाचक है। जहाँ सार्वभौमिक सत्ता के प्रतिनिधि के रूप में अदिति का उल्लेख हुआ है, वहाँ अदिति को भूमि माता माना गया है। गौतम ऋषि द्यौ, अन्तरिक्ष, माता-पिता, पुत्र, विश्वेदेवा, पञ्चजन तथा वह सब जिसने जन्म लिया है और जन्म लेगा, को अदिति मानते हैं।
शक्तिधारा की आराध्य ब्रह्ममयी महाशक्ति का आदि श्रौतस्वरुप अखण्ड सत्तास्वरूपा विश्वमयी चेतना अदिति है। यही काली, दुर्गा सर्वदेवीस्वरूपिणी है। ऋग्वेद के मन्त्रों में बहुतायत से स्त्री देवता अदिति की कथा अंकित है। अथर्ववेद में तंत्र में वर्णित महाशक्ति की धारणा, आराधना के मूल का वर्णन है। शक्त्याचार समन्वित तंत्राचार अथर्ववेद की ही भूमिका है। वैदिक देवमण्डल में कालक्रम से महान परिवर्तन हुआ है। इस परिवर्तन के परिणाम स्वरूप ही अदिति और वाक अभिन्न हो जाती हैं और वे सरस्वती के स्वरुप में प्रतिष्ठा लाभ करती हैं। वैदिक सोम केनोपनिषद की हेमवती उमा हो जाती है और वह रणदेवी के रूप में महादेवी का स्वरुप धारण करती है। आदित्यों और देवों की जननी देवमाता अदिति का वेदों में भूमिमाता के रूप में चित्रण हुआ है। ऋग्वेद में अनेकशः अदिति का अर्थ पृथ्वी, भूमि का वाचक है। जहाँ सार्वभौमिक सत्ता के प्रतिनिधि के रूप में अदिति का उल्लेख हुआ है, वहाँ अदिति को भूमि माता माना गया है। गौतम ऋषि द्यौ, अन्तरिक्ष, माता-पिता, पुत्र, विश्वेदेवा, पञ्चजन तथा वह सब जिसने जन्म लिया है और जन्म लेगा, को अदिति मानते हैं। यहाँ सायण की दृष्टि में अदिति का अर्थ पृथ्वी है, अर्थात पृथ्वी ही द्यौ, अन्तरिक्ष, माता-पिता, पुत्र इत्यादि है। ब्राह्मण-ग्रन्थों से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है। आचार्य यास्क ने अवश्याय रसप्रदान करने वाली मध्यस्थानी देवता मानते हुए अदिति का अर्थ अग्नि स्वीकार किया है। निघण्टुकोष में पृथ्वी अर्थ के अतिरिक्त अदिति वाक्, द्यावापृथ्वी, गो अर्थ में और पठित है। पर इन अर्थों में अदिति का प्रयोग विरल हुआ है। इसलिए यह माना जाना चाहिये कि आदित्यों और देवों की माता अदिति, जिसका रूप ऋग्वेद में मूर्त नहीं हो पाया है, को भूमाता का प्रतीक मानकर और उसमें पृथ्वी की तरह मातृत्व का समावेश करके अथर्ववेद, ब्राह्मण-ग्रन्थ और पुराण-साहित्य में उसका चित्रण हुआ है।
वेद संहिताओं में अदिति, शचि, ऊषा, पृथ्वी, वाक्, सरस्वती, रात्रि, धिषणा, इला, सिनीवाली, मही, भारती, अरण्यानी, निर्ऋति, मेघा, पृश्नि, सरण्यू, राका, सीता, श्री, आदि देवियों के नाम मिलते हैं। ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक एवं उपनिषदों में अम्बिका, इन्द्राणी, रूद्राणी, शर्वाणी, भवानी, कात्यायनी, कन्याकुमारी, उमा, हैमवती आदि का उल्लेख मिलता है, किन्तु स्वातंत्र्य एवं गौरव की दृष्टि से मातृ प्रधान शक्ति अदिति ही है। यह ऋग्वेद के दशम मंडल के 72वें सूक्त की द्रष्टा ऋषिका भी है। ऋग्वेद में अदिति का अस्सी बार उल्लेख प्राप्त होता है । ऋग्वेद 1/89/10 में अखण्ड, बन्धनरहित, सर्वव्यापिनी द्यौरन्तरिक्षरूपा जननात्मिका आद्याशक्ति का चिन्मय ज्योति के रूप में निर्देश मिलता है। ऋग्वेद में अदिति, विशेषरूप से, सार्वभौम सत्ता के प्रतिनिधि के रूप में चित्रित हुई है। अथर्ववेद में अदिति पुत्रकामना से ब्रह्मौदन पकाती हुई चित्रित की गयी है। अथर्ववेद के एक अन्य स्थान पर प्रजापति भी ब्रह्मप्राप्ति के लिये ओदन पकाते हुए दिखाये गये हैं। विद्वानों के अनुसार अथर्ववेद से स्पष्ट रूप से प्रभावित ब्राह्मण-ग्रन्थों में अदिति पुत्रकामना से साध्य देवों से बचे हुए ब्रह्मौदन को खाने से गर्भ धारण करती है तथा उससे मित्र, वरुण, अंश, भग, इन्द्र, विवस्वान् आदि देव जन्म लेते हैं। एक अन्य ब्राह्मण-ग्रन्थ में प्रजा-कामना से पकाये गये उच्छिष्ट ओदन का भक्षण करने से उसके गर्भ से आदित्यों के जन्म लेने का उल्लेख मिलता है।
पौराणिक ग्रन्थ स्पष्ट रूप से कश्यप का अदिति के पति के रूप में उल्लेख करते हैं, परन्तु ऐसा कोई संकेत वैदिक साहित्य में उपलब्ध नहीं होता है। पौराणिक आख्यान के अनुसार ब्रह्मा के छः मानस पुत्रों में से ज्येष्ठ पुत्र मरीचि की पत्नी कर्दम ऋषि की पुत्री कला से कश्यप और पूर्णिमा नाम के दो पुत्र हुए। दूसरी और मनु की तीसरी पुत्री प्रसूति का ब्रह्मा के पुत्र दक्ष प्रजापति से विवाह हुआ। इनकी सोलह कन्यायें थीं। इनमें से दक्ष ने तेरह धर्म, एक अग्नि, एक पितरों और एक शंकर को प्रदान की। दक्ष प्रजापति की दूसरी पत्नी असिक्मनी के गर्भ से साठ कन्यायें उत्पन्न हुईं। दक्ष प्रजापति ने उनमें से तेरह कन्याओं का विवाह कश्यप, सताईस का चन्द्रमा, दस का धर्म, भूत, अंगिरा और कृशाश्व के साथ दो-दो पुत्रियों का तथा शेष चार का विवाह तार्क्ष्य नामक कश्यप के साथ किया। कश्यप के साथ दक्ष प्रजापति की तेरह कन्याओं -अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सरमा और तिमि का विवाह हुआ। भिन्न-भिन्न पुराणों में इनके नामों में भेद पाया जाता है, लेकिन इन सभी का विवाह कश्यप के साथ ही हुआ है। इनसे ही समस्त प्राणि-समुदाय आविर्भूत हुआ है। भागवत पुराण के अनुसार अदिति से बारह पुत्र उत्पन्न हुए - विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इन्द्र और त्रिविक्रम, जो द्वादशादित्य नाम से जाने जाते हैं । लेकिन महाभारत आदिपर्व के अनुसार अदिति के तैंतीस पुत्र हुए, उनमें से बारह आदित्य, ग्यारह रुद्र तथा आठ वसु हैं। भागवत पुराण में परिगणित द्वादशादित्य के कुछ नाम भी महाभारत से मेल नहीं खाते हैं। भागवत के विधाता, इन्द्र और त्रिविक्रम के स्थान पर महाभारत में अंश, शक्र और विष्णु नामों का परिगणन किया है। इनमें से इन्द्र और त्रिविक्रम के पर्यायवाची क्रमशः शक्र और विष्णु हैं। अदिति से उत्पन्न होने वाले पुत्र दो-दो के युगलों में हुए, ऐसी ब्राह्मण-ग्रन्थों की मान्यता है, जैसे-धाता और अर्यमा, इन्द्र और विवस्वान्, अंश और भग। भागवत पुराण में भग का युग्म विधाता के साथ बनाया है।अदिति के सम्बन्ध में पुराणों में वर्णित सन्दर्भों में दक्ष प्रजापति, कश्यप, अदिति, आदित्य आदि का वर्णन होने से वैदिकरूप के साथ इनका पर्याप्त साम्य दृष्टिगोचर होता है, परन्तु सत्य इसके विपरीत है ।
उल्लेखनीय है कि ऋग्वेद के अनुसार दक्ष अदिति के पिता भी हैं और पुत्र भी। एक सूक्त की ऋषिका अपने को अदिति दाक्षायणी बतलाती है। इसी सूक्त के एक अन्य मन्त्र में अदिति को दक्ष की दुहिता बताया गया है। ऋग्वेद के एक अन्य स्थल पर असत् (अव्यक्त) और सत् (व्यक्त) को परमव्योम (आकाश) में स्थित बताते हुए दक्ष का जन्म अदिति की गोद से होने का उल्लेख है। एक दूसरे स्थान पर यह कहा गया है कि अदिति और दक्ष के जन्म (उदय) के समय उनसे मित्रावरुण नामक राजा प्रकट होते हैं। ऋग्वेद के विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि अदिति और दक्ष एक-दूसरे जनक हैं। ऋग्वेद 10-72 के अनुसार उत्तानपाद नामक राजा से भू जन्म लेती है, उस भू से आशायें उत्पन्न होती हैं, उसके बाद दक्ष से अदिति और अदिति से दक्ष का जन्म होता है। यह इतरेतर विरुद्ध जन्म सम्भव प्रतीत नहीं होता है। इससे स्पष्ट है कि यह मानवी इतिहास नहीं है, परन्तु बाद में इन्ही वैदिक शब्दों के आधार पर मानवों ने अपने संतानों के नाम रख लिए। जिससे लोगों में विभ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई । यास्क इसको स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि ये समानजन्मा हैं अर्थात एक-दूसरे के तत्काल पश्चात जन्म लेने वाले देवता हैं। एक अन्य स्थान पर देवता-स्वरूप विषयक विवेचन करते हुए आचार्य यास्क कहते हैं कि मनुष्यधर्म से देवताधर्म विपरीत होता है, देवता ऐश्वर्यशाली होते हैं, जबकि मनुष्य ऐश्वर्य से रहित। मनुष्यों में पिता से पुत्र उत्पन्न होता है और किसी भी अवस्था में पुत्र अपने पिता का जनक नहीं हो सकता। जबकि वेद में पुत्र भी अपने पिता का जनक हो सकता है। निरुक्त के अनुसार प्रस्तुत प्रकरण में अवश्याय रसप्रदान करने के कारण अदिति मध्यस्थानी देवता है तथा दक्ष का अर्थ आदित्य है। प्रातःकाल की सन्धिवेला में अवश्याय रसप्रदान करने के कारण अदिति पहले से ही विद्यमान है, इसलिए अदिति माता है और दक्ष पुत्र है। सायंकाल की सन्धिवेला का जनक दक्ष है, अतः, उस समय दक्ष पिता और अदिति पुत्री है। इस व्यवस्था के मूल में निहित सिद्धान्त की स्थापना करते हुए आचार्य यास्क कहते हैं कि ये कर्मजन्मा हैं अर्थात जिस क्षण कर्म आरम्भ होता है, वह उस देवता का जन्मकाल है। कहने का आशय यह है कि कर्म का प्रारम्भ ही जन्म है। ब्राह्मण-ग्रन्थ दक्ष को पिता प्रजापति के रूप में चित्रित करते हैं। शतपथ-ब्राह्मण सूर्य को प्रजापति बतलाता है। ऋग्वेद द्युलोक को पिता तथा पृथ्वी को माता के रूप में उल्लेख करते हुए कहता है कि पिता प्रजापति ने दुहिता के गर्भ स्थापित किया। आदित्यरूप पिता प्रजापति दक्ष है तथा महनीय अखण्ड पृथ्वी माता अदिति है। निघण्टु में पृथ्वी वाचक नामपदों में अदिति परिगणित है। एक अन्य मन्त्र में पृथ्वी को दुहिता कहा है तथा दूसरी ओर ऋग्वेद अदिति को दक्ष की दुहिता बतलाता है। यास्काचार्य के अनुसार दुहिता का निर्वचन है- दूरे हिता अर्थात - जिसका दूर रहने में हित है या जो दूर स्थित है। इस प्रकार पृथ्वी दूर स्थित तथा सूर्य का अंश होने से दक्ष की पुत्री है। वह सूर्य ही वृष्टि के माध्यम से पृथ्वी से औषधि आदि रूप वनस्पतियों को जन्म देता है। अतः ऋग्वेद में पिता प्रजापति को दुहिता के गर्भ स्थापित करने वाले के रूप में चित्रित किया है।
पुराणों में अदिति को देवमाता, विशेषरूप से, आदित्यों की माता के रूप में चित्रित किया गया है। भागवत पुराण में कश्यप पत्नियों को लोकमाता शब्द से अभिहित किया है। आचार्य यास्क भी अदिति को देवमाता नाम से पुकारते हैं। कुछ विद्वान देवमाता सम्बोधन को ऐतिहासिक-पक्ष का अभिधेय मानते हैं। अदिति के चरित्र की उक्त विशेषताओं का दर्शन ऋग्वेद में भी होता है। अदिति के चरित्र की सर्वाधिक प्रमुख विशेषता उसका मातृत्व ही है। आदित्यों की माता के रूप में उसका अनेकशः उल्लेख हुआ है। ऋग्वेद में उसे कहीं पुत्रों को धारण करने वाली माता बताया गया है तो कहीं उससे अपने पुत्र आदित्यों के साथ आकर सुखप्रदान करने की प्रार्थना की गयी है, तो कहीं उसको अश्व के समान बलवान मित्रावरुण पुत्रों को गर्भ में धारण करने वाला बताया गया है, कहीं मित्रावरुण, अर्यमा- इन राजपुत्रों की माता के रूप में उसका उल्लेख किया गया है। इसी प्रकार कहीं अदितेः पुत्रासः कहकर आदित्यों की माता बताया गया है, कहीं अदिति के पुत्र आदित्यों को मनुष्यों की जीवनज्योति की रक्षा करने वाले के रूप में प्रतिपादित किया गया है। वरुण के क्रोध से रक्षा करने के लिये भी इसका आह्वान किया गया है। एक स्थान पर भग को अदिति का पुत्र बताया गया है। एक अन्य स्थान पर अदिति को अष्टौ पुत्रासः कहकर पुकारा गया है। इनमें सात पुत्र अदिति के समीप रहने वाले हैं, एक पुत्र जिसका नाम मार्तण्ड है, को प्रजा का विनाश करने वाले के रूप में निरूपित किया गया है। इससे स्पष्ट है कि अदिति के आठ पुत्र हैं। जिसमें से पाँच पुत्रों -मित्र, वरुण, भग, अर्यमा, मार्तण्ड- का नाम सहित उल्लेख मिलता है। शेष कौन से तीन अदितिपुत्र वैदिक ऋषियों को अभिप्रेत हैं, यह अस्पष्ट है। पुराण तथा महाभारत में सामान्यरूप से अदिति के बारह पुत्रों का नाम सहित उल्लेख है, परन्तु हैरतनाक बात है कि वेदों में उल्लिखित अदिति के आठ पुत्र पुराणों में बारह हो गये। अंत में ऐसी आदि श्रौतस्वरुप अखण्ड सत्तास्वरूपा विश्वमयी चेतना अदिति को शक्ति उपासना काल में सादर नमन।
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