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गाय क्यों भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण?

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गाय क्यों भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण?
गोदुग्ध ने जन समाज को विशिष्ट शक्ति, बल व सात्विक बुद्धि प्रदान की। गोबर गोमूत्र ने खेती को पोषण दिया, बैल उर्जा ने कृषि, भारवाहन, परिवहन तथा ग्रामोद्योग के लिए सम्पूर्ण तकनीकी विकसित करने में मदद की। इसीलिए गौ सेवा व गोचर भारतीय जीवन शैली व अर्थव्यवस्था के सदैव केन्द्र बिन्दु रहे हैं। ग्राम्य प्रधान व कृषि प्रधान जैसी विशिष्टताओं वाले अपने राष्ट्र के लिए इसका कोई विकल्प नही है। गाय की या  गोबरधन की बात को कई लोग हल्के में लेते है। गाय-भैंस का मजाक उड़ाने वाले लोग भूल जाते हैं कि देश के 8 करोड़ परिवारों की आजीविका ऐसे ही पशुधन से चलती है। भारत के डेयरी सेक्टर को मजबूत करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है। 6-7 वर्ष पहले की तुलना में देश में दूध उत्पादन लगभग 45 प्रतिशत बढ़ा है। आज भारत दुनिया का लगभग 22 प्रतिशत दूध उत्पादन करता है । मुझे खुशी है कि यूपी आज देश का सबसे अधिक दूध उत्पादक राज्य है। मेरा अटूट विश्वास है कि देश का डेयरी सेक्टर, पशुपालन, श्वेत क्रांति में नई ऊर्जा, किसानों की स्थिति को बदलने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है। उपरोक्त बाते प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किसान दिवस के अवसर पर सर्वमान्य किसान नेता चौधरी चरणसिंह को नमन करते हुए कही थी। इसके कुछ दिन पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने गौ हत्या के एक मामले में आरोपी जावेद की जमानत अर्जी नामंजूर कर महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा था कि गाय का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। गाय को भारत देश में मां के रूप में जाना जाता है और देवताओं की तरह उसकी पूजा होती है। भारतीय शास्त्रों, पुराणों व धर्मग्रंथ में गाय के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और भारत में विभिन्न धर्मों के नेताओं और शासकों ने भी हमेशा गो संरक्षण की बात की है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में भी गाय के नस्ल को संरक्षित करने और दुधारू व भूखे जानवरों सहित गौ हत्या पर रोक लगाने की बात कही गई है। भारत के 29 राज्यों में से 24 राज्यों में गौ हत्या पर प्रतिबंध है। इसलिए सरकार को संसद में बिल लाकर गाय को मौलिक अधिकार में शामिल करते हुए गौमाता को राष्ट्रीय पशु घोषित करने और  गायों को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों के विरुद्ध कड़े कानून बनाने चाहिए। जब गाय का कल्याण होगा, तभी इस देश का कल्याण होगा। गाय के संरक्षण, संवर्धन का कार्य मात्र किसी एक मत, धर्म या संप्रदाय का नहीं है, बल्कि गाय भारत की संस्कृति है और संस्कृति को बचाने का काम देश में रहने वाले हर एक नागरिक, चाहे वह किसी भी धर्म की उपासना करने वाला हो, की जिम्मेदारी है। हमारे सामने ऐसे कई उदाहरण हैं जब - जब हम अपनी संस्कृति को भूले हैं तब- तब विदेशियों ने हम पर आक्रमण कर हमें गुलाम बनाया है। आज भी हम न चेते तो अफगानिस्तान पर निरंकुश तालिबानियों का आक्रमण और कब्जे को हमें भूलना नहीं चाहिए। उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने इसके पूर्व भी सरकार को गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने का सुझाव दिया है। राजस्थान उच्च न्यायालय भी गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के सुझाव दे चुका है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह केंद्र सरकार के साथ समन्वय में गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करने के लिए आवश्यक कदम उठाए। उल्लेखनीय है कि आदि काल से ही माता के समान मानी व पूजी जाने वाली गाय को भारतीय संस्कृति में मां समझ कर उसकी सेवा किये जाने की परिपाटी प्रचलित है। गाय सम्पूर्ण जगत की माता है। शास्त्रों में कहा गया है- मातरः सर्व भूतानाम गावः सर्व फल प्रदाम । अर्थात-  वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के साथ-साथ और भी कोई फल है तो भी प्रदान करती है। भारतीय मान्यतानुसार गौमाता पृथ्वी, प्रकृति और परमात्मा का प्रगट स्वरूप है। स्वयं भगवान विष्णु ने मनुष्य अवतार धारण कर गौ सेवा की एवं गोपाल कृष्ण कहलाए, रामावतार में गौमाता का रूप पृथ्वी ने धारण किया, भगवान राम के पूर्वज महाराजा दिलीप ने नन्दनी गौ की सेवा की और इसी से रघुवंश चला । भगवान शिव का वाहन नन्दी है। आदि तीर्थंकर ऋषभ देव का चिह्न बैल है । गौमाता में तैंतीस कोटि देवताओं का वास है। गौमाता की सेवा ही सच्ची राम-कृष्ण की सेवा है। जिस घर में गौमाता का निवास है उस घर -परिवार को मन्दिर या तीर्थ गमन की आवश्यकता नहीं, क्योंकि प्रभु के स्वयं चौबीस घण्टे में एक बार अवश्य उस घर में अवश्य पधारने के कारण वह घर स्वयं मन्दिर हो जाता है। गोबर में लक्ष्मी व गौमूत्र में गंगा का वास होता है, भगवान बुद्ध को बुद्धतत्व की प्राप्ति सुजाता द्वारा प्रदत गौ दूध की खीर से हुई। बाईबल व कुरान में भी गौमाता की महिमा गान की गई है। और सम्पूर्ण गौवंश को मानव के अस्तित्व, रक्षण, पोषण, विकास और संवर्द्धन के लिए अनिवार्य माना गया है। Read also मायावती का मैसेज कितना काम आएगा? गोदुग्ध ने जन समाज को विशिष्ट शक्ति, बल व सात्विक बुद्धि प्रदान की। गोबर गोमूत्र ने खेती को पोषण दिया, बैल उर्जा ने कृषि, भारवाहन, परिवहन तथा ग्रामोद्योग के लिए सम्पूर्ण तकनीकी विकसित करने में मदद की। इसीलिए गौ सेवा व गोचर भारतीय जीवन शैली व अर्थव्यवस्था के सदैव केन्द्र बिन्दु रहे हैं। ग्राम्य प्रधान व कृषि प्रधान जैसी विशिष्टताओं वाले अपने राष्ट्र के लिए इसका कोई विकल्प नही है। यही कारण है कि गाय भारत में हमेशा से ही पूजनीय, माता सदृश्य और सेवा के योग्य मानी गई है। गाय की संरक्षण, संवर्द्धन, परिवर्द्धन पुण्य की बात कही गई है, लेकिन आज गाय की संरक्षण, संवर्द्धन और परिवर्द्धन के कार्य को मात्र दिखावे की बात मान ली गई है और दिखावे के लिए विज्ञापन अर्थात अपनी शौहरत के लिए की जाने कार्य मात्र बनकर रह गई है। यही कारण है कि माननीय न्यायमूर्ति को अपने फैसले में यह कहने के लिए विवश होना पड़ा कि कुछ लोग गाय के साथ एक -दो फोटो खिंचाकर सोचते हैं कि गो संवर्धन का काम हो गया। उनका गाय की सुरक्षा से कोई सरोकार नहीं होता है। उनका एकमात्र उद्देश्य गाय की सुरक्षा के नाम पर पैसे कमाना होता है। दरअसल सनातन वैदिक धर्म में गाय को माता के समान सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। गाय सदैव कल्याणकारिणी तथा पुरुषार्थ-चतुष्टय की सिद्धि प्रदान करने वाली है। मानव जाति की समृद्धि गाय की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। गौ की अपार महिमा और दैवी गुणों, गौ के प्रभाव और उसकी श्रेष्ठता का वृहत वर्णन भारतीय पुरातन ग्रन्थों में किया गया है। पुरातन ग्रन्थों में प्राप्त वर्णनों से स्पष्ट होता है कि आदिकाल से ही भारतीय गौ के महान भक्त रहे हैं और गौ रक्षा व गौ संवर्द्धन में अपनी प्राण तक न्योच्छावर कर देना अपना परम धरम समझते रहे हैं। गौ-रक्षा में सहर्ष प्राण अर्पण कर देना भारतीयों के लिए आदिकाल से ही बड़े पुण्य की बात रही है, और उसका पालन करना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती रही है। भारतीय संस्कृति में गौ के शरीर में तैंतीस करोड़ देवी देवताओं का वास होने की मान्यता है और उसकी उत्पत्ति समुद्र मंथन में  अमृत,लक्ष्मी आदि चौदह रत्नों के अंतर्गत मानी गई । गौ के भीतर बड़े-बड़े आध्यात्मिक तथा कल्याणकारी तत्त्व भरे हैं, फिर भी कुछ विधर्मी इसे मारकर इसका मांस सेवन खुल्लेआम करते हैं और यह घोषणा करते हैं कि यह हमारा मजहबीय अधिकार है। गो मांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं है। जीभ के स्वाद के लिए जीवन का अधिकार नहीं छीना जा सकता। बूढ़ी बीमार गाय भी कृषि के लिए उपयोगी है। इसकी हत्या की इजाजत देना ठीक नहीं। यह भारतीय कृषि की रीढ़ है। एक गाय जीवन काल में 410 से 440 लोगों का भोजन जुटाती है और गोमांस से केवल 80 लोगों का पेट भरता है। महाराजा रणजीत सिंह ने गो हत्या पर मृत्यु दण्ड देने का आदेश दिया था। कई मुस्लिम व हिंदू राजाओं ने गोवध पर रोक लगाई। मल, मूत्र असाध्य रोगों में लाभकारी है। गाय की महिमा का वेदों, पुराणों में बखान किया गया है। रसखान ने कहा जन्म मिले तो नंद के गायों के बीच मिले। गाय की चर्बी को लेकर मंगल पाण्डेय ने क्रांति की। संविधान में भी गो संरक्षण पर बल दिया गया है। गौहत्या पाप है और गाय को मारने वाले को छोड़ने से उसकी फिर अपराध करने की प्रवृति नहीं छूटेगी।
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