जीवन मंत्र

पेट में वायरल संक्रमण

ByNI Desk,
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पेट में वायरल संक्रमण
मेडिकल साइंस में वायरल गैस्ट्रोएंटेराइटिस के नाम से जानी जाने वाली संक्रामक बीमारी को आम बोलचाल की भाषा में पेट फ्लू कहते हैं, इसमें वायरस की वजह से पेट (आमाशय) और आंतों में सूजन आने से तेज दर्द होता है। यह दूषित भोजन, पानी और इससे संक्रमित लोगों से दूसरों में फैलती है। अत्यधिक संक्रामक होने की वजह से तेजी से फैलती है, जिन जगहों पर इसके फैलने के चांस ज्यादा होते हैं उनमें स्कूल, नर्सिंग होम, अस्पताल, चाइल्ड केयर केन्द्र और क्रूज शिप मुख्य हैं। वैसे तो इसके लिये अनेक वायरस जिम्मेदार हैं लेकिन नोरो और रोटा वायरस को इसका मुख्य कारण मानते हैं। हमारे देश में इसके कई करोड़ मामले प्रतिवर्ष सामने आते हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर दो या तीन दिन सावधानी बरतने और दवा लेने से ठीक हो जाते हैं। इसके इलाज में कोताही से डिहाइड्रेशन की स्थिति गम्भीर होने पर जानलेवा दशा बन जाती है। क्यों होता है पेट फ्लू? वायरस से फैलने वाले इसे इंफेक्शन से पांच साल से कम उम्र के बच्चे व अस्पताल या नर्सिंग होम में भर्ती 65 साल से अधिक उम्र के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। कमजोर इम्यून सिस्टम वाले जल्द इसकी चपेट में आ जाते हैं। यदि पीने के पानी में सीवेज मिल जाये तो यह बीमारी तेजी से फैलती है, इसके अलावा खाना बनाने और परोसने वालों के सही ढंग से हाथ न धोने और गंदे पानी से धुली सब्जियों से भी इससे ग्रस्त होने के चांस बढ़ जाते हैं। नोरोवायरस: यह अत्यधिक संक्रामक वायरस है और किसी भी उम्र के लोगों को अपना शिकार बना लेता है। यह दूषित भोजन और पानी के अलावा उन सतहों को छूने से फैलता है जहां नोरोवायरस हो। ज्यादा भीड़-भाड़ वाले स्थानों पर इसके होने की सम्भावना अधिक होती है। जब यह व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता है तो उसे नॉजिया (जी मिचलाना), डॉयरिया (दस्त), बुखार और शरीर में दर्द जैसे लक्षण महसूस होते हैं। रोटावायरस: यह वायरस सबसे ज्यादा नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों को अपना शिकार बनाता है। इससे ग्रस्त बच्चे अन्य लोगों में इसे फैला देते हैं, यह मुंह के माध्यम से फैलता है। इससे संक्रमित होने के दो दिन बाद इसके लक्षण नजर आते हैं। इसकी वजह से उल्टी, भूख न लगना और पानी के दस्त होने लगते हैं। एडिनोवायरस: यह सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है और इसकी वजह से गैस्ट्रोएन्टराइटिस की समस्या हो जाती है। यह छींकने या खांसने पर हवा से फैलता है, इससे संक्रमित व्यक्ति के नजदीक जाने, उससे हाथ मिलाने और उसकी छुयी हुई वस्तुओं या सतह को छूने पर संक्रमित होने के चांस बढ़ जाते हैं। इस वायरस की चपेट में आने पर व्यक्ति के गले में खराश, बुखार, गुलाबी आंखे, खांसी और नाक बहने जैसे लक्षण उभरते हैं। चाइल्ड केयर सेन्टर में रहने वाले 6 माह से 2 साल तक के बच्चों के इससे संक्रमित होने के चांस ज्यादा होते हैं। एस्ट्रोवायरस: इसकी वजह से व्यक्ति गैस्ट्रोएन्टराइटिस से ग्रस्त हो जाता है और मरीज को डायरिया, सिरदर्द, पेट दर्द और डिहाइड्रेशन जैसे लक्षण उभरते हैं। यह किसी भी उम्र के लोगों को अपना शिकार बना सकता है विशेष रूप से कमजोर इम्यून सिस्टम वालों को। क्या लक्षण हैं पेट फ्लू के? पेट फ्लू से डायरिया, जी मिचलाना, उल्टी, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में दर्द, बुखार और ठंड लगना, पेट में मरोड़ उठना, भूख न लगना, अत्यधिक पसीना और स्किन से बदबू आने जैसे लक्षण उभरते हैं। वैसे तो घरेलू इलाज से ये लक्षण 2 दिन से लेकर 10 दिनों में ठीक हो जाते हैं लेकिन तीन दिन से अधिक समय तक दस्त व उल्टी न रूके या दस्त में खून, चक्कर आना और सूखे होठ जैसे लक्षण नजर आयें तो मरीज को तुरन्त अस्पताल ले जायें। पेट फ्लू से ग्रस्त छोटे बच्चों में रोते समय आंसू न आना व आंखें धंसी हुई दिखाई देना मेडिकल इमरजेंसी की दशा है। इन कारणों से भी पेट फ्लू जैसी दशा बनती है- फूड इन्टॉलरेन्स: लैक्टोस, फ्रकटोस और कृत्रिम मिठास वाले खाद्य पदार्थों के खाने से। डाइजेस्टिव डिस्आर्डर: पाचन तंत्र में आयी समस्या जैसेकि क्रोहन रोग, अल्सरेटिव कोलाइटिस, इरीटेबल बाउल सिंड्रोम या सीलियक डिसीस से। मेडीकेशन: कुछ खास दवायें भी व्यक्ति को पेट फ्लू जैसी दशा में ला देती हैं विशेष रूप से मैग्नीशियम के साथ एंटासिड्स और एंटीबॉयोटिक लेने से पेट दर्द होने लगता है। क्या जटिलताएं हो सकती हैं? पेट फ्लू या गैस्ट्रोएन्टराइटिस के कारण डिहाइड्रेशन हो सकता है जिसके बिगड़ने पर नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों के लिये जानलेवा दशा पैदा हो जाती है। इसके अलावा शरीर में पोषक तत्वों की कमी, मांसपेशियों में कमजोरी, भ्रम की स्थिति, दस्त में खून, 8 घंटे या इससे अधिक समय सेपेट फ्लू पेशाब न होना जैसे कॉम्प्लीकेशन होने लगते हैं। यदि डिाहाइड्रेशन की स्थिति ज्यादा समय तक रहे तो दिमाग में सूजन, हाइपोवोलमिक शॉक, सीजर्स, कोमा और किडनी फेल के चांस बढ़ जाते हैं। कैसे पुष्टि होती है पेट फ्लू की? अधिकतर मामलों में फिजिकल जांच से इसकी पुष्टि हो जाती है, गम्भीर मामलों में डाक्टर स्टूल टेस्ट के लिये कहते हैं जिससे वायरस के टाइप के साथ यह पता चल सके कि कहीं ये पैरासाइटिक या बैक्टीरियल इंफेक्शन तो नहीं है। इलाज क्या है इसका? इसके इलाज में सबसे ज्यादा ध्यान डिहाइड्रेशन पर देते हैं और मरीज को ज्यादा से ज्यादा पानी पीने के लिये कहते हैं। गम्भीर स्थिति में इंट्रावीनस से पानी की कमी दूर की जाती है इसके अलावा ओरल डिहाइड्रेशन सॉल्यूशन अर्थात ओआरएस का घोल इसमें बहुत लाभदायक है। यह शरीर में इलेक्ट्रोलाइट्स का सही स्तर बनाये रखता है जिससे अन्य जटिलताएं नहीं हो पाते। यहां यह बात याद रखें कि एंटीबॉयोटिक इस बीमारी में काम नहीं करतीं क्योंकि यह वायरस के कारण होती है। इसलिये खुद एंटीबॉयोटिक लेने के बजाय डाक्टर से मिलें। कौन सी एंटीवायरल दवा काम करेगी यह पूरी तरह से बीमारी की गम्भीरता पर निर्भर है। क्या खायें और क्या न खायें? पेट फ्लू की स्थिति में चावल, दही, आलू और केला खायें क्योंकि ये आसानी से पच जाते हैं। यदि सम्भव हो तो ब्राउन राइस खायें इससे शरीर में पानी की कमी नहीं होती और इलेक्ट्रोलाइट्स भी ठीक रहते हैं। छोटे बच्चों को चावल का पानी पीने को दें। अदरक, पुदीना उबालकर पानी या अदरक वाली चाय पियें। ऐसे में दूध, पनीर, फलों का जूस, तले हुऐ खाद्य पदार्थ, ज्यादा मीठा, कैफीन और शराब इत्यादि से बचें। यदि आप अपनी केयर कर सकते हैं तो जितना सम्भव हो सके पानी (ओआरएस और इलेक्ट्रोलाइट्स घोल) पियें। किसी भी सूरत में फलों का जूस न पियें इससे डायरिया बढ़ता है। गर्मी के मौसम में छोटे बच्चों को आइस क्यूब चूसने को दें। खाने की मात्रा कम करें और खाने को जितना सम्भव हो चबाकर खायें। अधिक से अधिक आराम करें। नजरिया यदि डाक्टर ने पेट फ्लू या वायरल गैस्ट्रोएन्टराइटिस की पुष्टि की है तो अपने आप इलाज न करें, क्योंकि इसमें एंटीबॉयोटिक दवा असर नहीं करेगी, बल्कि स्वास्थ्य के लिये हानिकारक सिद्ध होगी। डाक्टर द्वारा लिखी एंटीवायरल दवा का कोर्स पूरा करें और जितना सम्भव हो सके पानी और ओआरएस का घोल पीते रहें। डिहाइड्रेशन की स्थिति न बनने दें और ऐसा कोई भी लक्षण उभरने पर अस्पताल जायें।
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