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दिमाग में फैले ब्लैक फंगस को समाप्त करने के लिये देश में पहली बार बिना चीर-फाड़ ब्रेन सर्जरी!

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दिमाग में फैले ब्लैक फंगस को समाप्त करने के लिये देश में पहली बार बिना चीर-फाड़ ब्रेन सर्जरी!

देश में पहली बार दिमाग में फैले ब्लैक फंगस को समाप्त करने के लिये न्यूरोइंटरवेंशन रेडियोलॉजी तकनीक का प्रयोग डा. गौरव गोयल की देखरेख में हुआ।.. इस तकनीक से ब्रेन सर्जरी के क्षेत्र में ऐसी क्रांति आयी है कि पहले जो ऑपरेशन 8 से 10 घंटे में सफलता की 30 प्रतिशत उम्मीद से किये जाते थे अब उन्हें 99 प्रतिशत सफलता के साथ 1 घंटे में किया जाता है वह भी बिना चीर-फाड़ के।

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treatment brain stroke : दिमाग में क्लॉट हो, नस फट जाये (हेमरेज) या ब्रेन ट्यूमर हो  तो  क्या आप सोच सकते हैं कि बिना चीर-फाड़ किये इन्हें ठीक किया जा सकता है? लेकिन अब ये सम्भव है और ऐसा हुआ है ब्रेन सर्जरी की नयी तकनीक न्यूरोइंटरवेंशन रेडियोलॉजी से। इस तकनीक से ब्रेन सर्जरी के क्षेत्र में ऐसी क्रांति आयी है कि पहले जो ऑपरेशन 8 से 10 घंटे में सफलता की 30 प्रतिशत उम्मीद से किये जाते थे अब उन्हें 99 प्रतिशत सफलता के साथ 1 घंटे में किया जाता है वह भी बिना चीर-फाड़ के। इस तकनीक से ब्रेन सर्जरी करने वाले देश के चोटी के डाक्टरों में शुमार डा. गौरव गोयल (डायरेक्टर एंव हैड इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस में न्यूरोइंटरवेंशनल सर्जरी, मेदान्ता-द मेडीसिटी, गुरूग्राम (हरियाणा)) ने अभी हाल में ब्लैक फंगस से ग्रस्त दो मरीजों की सफल ब्रेन सर्जरी करके उन्हें नयी जिंदगी दी। अपने देश में पहली बार दिमाग में फैले ब्लैक फंगस को समाप्त करने के लिये न्यूरोइंटरवेंशन रेडियोलॉजी तकनीक का प्रयोग डा. गौरव गोयल की देखरेख में हुआ। विश्व के प्रतिष्ठित मॉन्ट्रियल न्यूरोलॉजिकल इंस्टीट्यूट (कनाडा) से इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद सन् 2011 से आप मेदान्ता-द मेडीसिटी में कार्यरत हैं और अभी तक इस तकनीक से 35000 से ज्यादा सफल ब्रेन व स्पाइनल सर्जरी (5 हजार बड़ी और 30 हजार सामान्य) कर चुके हैं। नया इंडिया के पाठकों को इस तकनीक से परिचित कराने के लिये मैंने डा. गोयल से बातचीत की और उनसे जो जानकारी मिली वह आज के कॉलम में प्रस्तुत है-

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दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड (रीढ़ की हड्डी) शरीर के सबसे जटिल-संवेदनशील अंग हैं, यदि ये  स्ट्रोक, ब्लॉकेज, हैमरेज, ट्यूमर, एवीएम-आर्टिरियोवेनस मलफार्मेशन या एक्सीडेंट का शिकार हो जायें और मरीज को समय पर सही इलाज न मिले तो परिणाम अपंगता (पैरालिसिस), कोमा या मृत्यु के रूप में सामने आता है। मेडिकल साइंस में हुयी तरक्की से आज अपने देश में इनके इलाज के लिये परम्परागत शल्य चिकित्सा के अलावा इंटरवेंशनल न्यूरोरेडियोलॉजी नामक ऐसी एडवांस तकनीक उपलब्ध है जिसमें न चीर-फाड़ की जरूरत पड़ती है, न ज्यादा दिन अस्पताल में रहने की और इसका सक्सेस रेट भी 99 प्रतिशत है। डा. गोयल ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक से या तो दिमाग की नसों में क्लॉटिंग (ब्लॉकेज) होगी या नस फटने से दिमाग में खून रिसने लगेगा। क्लाटिंग में दिमाग की नस में कोलोस्ट्रॉल और कैल्शियम से बने पदार्थ का थक्का जमने से रक्त प्रवाह बहुत धीमा हो जाता है या पूरी तरह से बंद। रक्त प्रवाह रूकने या धीमा होने से शरीर के अंग सुन्न पड़ने लगते हैं या लकवा मार जाता है। कुछ मामलों में दिमाग की नस फटने से खून रिसता है, इसे ब्रेन हैमरेज कहते हैं। डा. गोयल के मुताबिक न्यूरोइंटरवेंशनल सर्जरी इन दोनों स्थितियों में रामबाण है, लेकिन इसके लिये मरीज को 6 घंटे में इलाज मिलना चाहिये। यदि ऐसा होता है तो वह पूरी तरह ठीक हो जायेगा। यदि 6 से लेकर 24 घंटे में सही इलाज मिल जाये तो भी वह ठीक हो जाता है लेकिन रिकवरी में ज्यादा समय लगता है।

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ब्लॉकेज और ब्रेन हैमरेज का इलाज कैसे? ( treatment brain stroke )  इस तकनीक से पहले स्ट्रोक से हुयी ब्लॉकेज हटाने के लिये मरीज को एक विशेष इंजेक्शन लगाते थे  जिसमें सफलता की उम्मीद 10 प्रतिशत होती है जबकि न्यूरोइंटरवेन्शनल तकनीक से ब्लॉकेज हटाने में ठीक होने के चांस 95 प्रतिशत से ज्यादा होते हैं और यह पूरा प्रोसीजर मरीज के अस्पताल पहुंचने के एक घंटे में हो जाता है। इस एक घंटे में मरीज की फिजिकल जांच, एमआरआई स्केनिंग और ब्लॉकेज दूर करने के लिये दिमाग की नस में स्टेन्ट डालने की प्रक्रिया शामिल है। प्रोसीजर के बाद मरीज को एक दिन आईसीयू और एक दिन वार्ड में रखने के बाद छुट्टी मिल जाती है। बिना चीर-फाड़ वाले इस प्रोसीजर में खून चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती। जहां तक  खर्चे की बात है तो शल्य चिकित्सा वाली ब्रेन सर्जरी का खर्च मेदान्ता जैसे अस्पताल में करीब 4.5 लाख और न्यूरोइंटरवेन्शनल सर्जरी का करीब 6 लाख होता है। ब्रेन हैमरेज: इसमें दिमाग की नस से बहता खून रोकने के लिये न्यूरोइंटरवेन्शन तकनीक हमें क्वाइलिंग, बैलून-असिस्ट क्वाइंलिंग, स्टेन्ट असिस्टेड क्वाइंलिंग, सोल स्टेन्टिंग और फ्लो डायवर्टर जैसे समाधान देती है। क्वाइलिंग प्रोसीजर में नस के फूले या रक्त रिसाव कर रहे भाग से खून बहना रोकने के लिये विशेष मेडीकेटेड प्लेटिनम धातु की क्वाइल या स्टेन्ट या दोनों को ही फिट किया जाता है। क्वाइलिंग और सोल स्टेन्टिंग से आगे की तकनीक के रूप में आजकल फ्लो डॉयवर्टर से खून बहना रोकते हैं। इन सभी प्रोसीजरों में लगभग एक घंटे का समय लगता है लेकिन अंतर खर्चे का है, जहां क्वाइलिंग और सोल स्टेन्टिंग का खर्चा 6-8 लाख है वहीं फ्लो डॉयवर्टर का खर्चा करीब दस लाख पड़ता है।

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ब्रेन ट्यूमर और एवीएम का सफल इलाज  न्यूरोइंटरवेंशन तकनीक से पहले ब्रेन ट्यूमर का मतलब था मौत, यदि बच गये तो पैरालिसिस या कोमा। लेकिन इस तकनीक ने ब्रेन ट्यूमर का इलाज इतना आसान कर दिया है जिसकी कुछ साल पहले तक कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। डा. गोयल बताते हैं कि इस तकनीक से ब्रेन ट्यूमर के ऑपरेशन में मौत या कोमा का रिस्क 90 प्रतिशत तक कम हो गया है, हालांकि ट्यूमर को दिमाग से निकालने के लिये आज भी शल्य चिकित्सा ही करनी पड़ती है लेकिन इसमें पहले जैसा ब्लड लॉस नहीं होता और ऑपरेशन के समय सर्जन को दिमाग का ट्यूमर वाला भाग स्पष्ट रूप से नजर आता है। ( treatment brain stroke ) जब मैने पूछा कि ऐसा कैसे सम्भव है तो उन्होंने बताया कि न्यूरोइंटरवेंशन तकनीक से दिमाग के ट्यूमर वाले भाग तक पहुंचते हैं, इस प्रक्रिया में जांघ के पास वाली नस से एक कैमरा डालकर ट्यूमर का अवलोकन करने के बाद ट्यूमर को ब्लड सप्लाई करने वाली नस में विशेष कैमिकल इंजेक्ट करके रक्त आपूर्ति बंद करते हैं जिससे कुछ दिनों में ट्यूमर सूख जाता है। इसके पूरी तरह सूखने के बाद बहुत से ट्यूमरों का आकार कम हो जाता है और यदि दिमाग में इसकी लोकेशन खतरनाक नहीं है तो सर्जरी की जरूरत भी नहीं पड़ती। यदि ट्यूमर निकालना जरूरी है तो सामान्य सर्जरी से इसे काटकर निकाल देते हैं, चूंकि अब यह सूख चुका है इसलिये दिमाग में लगने वाला चीरा छोटा और ब्लड लॉस कम होता है। इसके अलावा मरीज का अस्पताल स्टे भी घट जाता है।

treatment brain stroke 

एवीएम-आर्टिरियोवेनस मलफार्मेशन: ब्रेन की यह जन्मजात बीमारी ट्यूमर जितनी घातक है, ज्यादातर मामलों में इसका पता वयस्क होने पर चलता है। इसमें दिमाग में रक्त आपूर्ति करने वाली नसों का गुच्छा बनने से वेन्स और आर्टिरी के मध्य गलत कनेक्शन बनते हैं जिससे पीड़ित में दौरे पड़ने, सिरदर्द, दृष्टि धुंधलाना, आंखे बाहर निकल आना और भ्रमित रहने जैसे लक्षण उभरते हैं। यदि इस तरह का गुच्छा स्पाइनल कॉर्ड में है तो मांसपेशियों में कमजोरी, अंगों के मूवमेंट में कठिनाई और क्वार्डीनेशन में कमी जैसे लक्षण महसूस होते हैं। यदि नसों का गुच्छा किसी अंग, छाती या पेट में है तो पेट दर्द, पीठ दर्द, छाती में दर्द या कानों में सीटियां गूंजने जैसी आवाजें सुनाई देती है। डा. गोयल ने बताया कि न्यूरोइंटरवेन्शन तकनीक से पहले ऐसी समस्याओं के समाधान के लिये बड़े ऑपरेशन किये जाते थे जिनकी सफलता शरीर में नसों के गुच्छे की लोकेशन पर निर्भर थी और ठीक होने के चांस केवल 30 प्रतिशत थे। इस तकनीक के आने से ऑपरेशन की जरूरत न के बराबर रह गयी है क्योंकि इसमें यह पता चल जाता है कि नसों के गुच्छे में कौन सी नस सही ढंग से काम नहीं कर रही, इसका पता चलने पर विशेष कैमिकलों से गुच्छे की अनावश्यक मूवमेंट रोककर खराब नस सुखा देते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में न तो चीरफाड़ होती है और न ही ब्लड लॉस।   treatment brain stroke neuroradiology

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ब्लैक फंगस के इलाज में भी उपयोग डा. गौरव गोयल ने बताया कि इसी वर्ष मई में कोरोना से फैले ब्लैक फंगस के इलाज में इस तकनीक ने अहम भूमिका निभायी। कोरोना के दो मरीज जिनके दिमाग में ब्लैक फंगस का संक्रमण फैल गया था उनकी सर्जरी इसी तकनीक की मदद से की गयी और आज की तारीख में वे पूरी तरह से ठीक हैं। अपने देश में ब्लैक फंगस के इलाज में इस तकनीक के प्रयोग की शुरूआत डा. गोयल ने ही की। साइड इफेक्ट क्या-क्या? किडनी के मरीजों को इस तकनीक से दिक्कत होती है क्योंकि इसमें इमेजिंग के लिये रेडियोएक्टिव डाइ का प्रयोग होता है, ऐसे में यदि किडनी खराब है यानी उसका क्रियेटीनाइन बढ़ा हुआ है तो यह और बढ़ जाता है। इसके अलावा रेडियोएक्टीविटी की वजह से कुछ मरीजों के बाल झड़ जाते हैं लेकिन ये कुछ दिनों में वापस आ जाते हैं।

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इन बातों पर ध्यान देना जरूरी डा. गोयल का कहना है कि ब्रेन में हो रही गड़बड़ी के संकेत कुछ साल पहले पता चलने लगते हैं, यदि इन पर ध्यान दिया जाये तो ब्रेन स्ट्रोक और हैमरेज जैसी स्थितियों से बचा जा सकता है। उदाहरण के लिये उंगलियों, हाथों या पैरो में सुन्नता अनुभव होना या फिर कुछ क्षणों के लिये इनकी शक्ति समाप्त हो जाना। यदि ऐसा बार-बार हो रहा है तो इसे गम्भीरता से लेना चाहिये लेकिन ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि हाथ या पैर सो गया है। इसी तरह से सिरदर्द, आंखों में दर्द और कानों में सीटियां या झनझनाहट महसूस होना भी ब्रेन स्ट्रोक के शुरूआती संकेत हैं। ऐसे में न्यूरो के किसी अनुभवी डाक्टर से मिलें और जांच करायें ताकि स्ट्रोक आने से पहले कैरोटिड स्टेन्टिग के जरिये सिकुड रहीं या ब्लॉक हो रही नसों को खोला जा सके ताकि कोई बड़ी दुर्घटना न हो। यदि शरीर के किसी अंग में लकवा मार गया है तो झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़ें बल्कि मरीज को सीधे अस्पताल ले जायें, वह जितनी जल्दी अस्पताल पहुंचेगा उसके ठीक होने के चांस उतने ज्यादा होंगे। treatment brain stroke neuroradiology

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द़ष्टिकोण - नजरिया इस तकनीक से सफल इलाज के कुछ खुशियों भरे पलों को याद करते हुए डा. गोयल ने बताया कि कुछ वर्ष पहले पटना में एक आई सर्जन को ब्रेन स्ट्रोक हुआ  और उनकी पत्नी जोकि खुद डॉक्टर हैं उन्हें इलाज के लिये मेदान्ता लायीं। यहां न्यूरो के लगभग सभी डाक्टरों यहां तक कि डा. गोयल का भी यही मत था कि ये अब बच नहीं सकते क्योंकि लाने में देर हो गयी थी लेकिन उनकी पत्नी की जिद पर डा. गोयल ने इस तकनीक से उनका इलाज किया और वे हैरत में पड़ गये जब मरीज पूरी तरह ठीक हो गया और आज एक सफल आई सर्जन के रूप में अपना क्लीनिक चला रहा है। इसी तरह की एक अन्य घटना का जिक्र करते हुए डा. गोयल ने समाज में फैली भ्रान्तियों से क्षुब्ध  होकर बताया कि हमारे समाज में अभी ब्रेन सर्जरी के बारे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है क्योंकि बहुत से लोगों में यह धारणा बनी हुई है कि ब्रेन सर्जरी के बाद व्यक्ति दिमागी तौर पर कमजोर या अस्वस्थ हो जाता है। जबकि असलियत यह है कि सफल ब्रेन सजरी के बाद व्यक्ति पहले जैसा ही रहता है, उसकी सोचने समझने की क्षमता पर कोई असर नहीं पड़ता। इस सम्बन्ध में उन्होंने बताया कि कई साल पहले एक 28 वर्षीय शादीशुदा युवती ब्रेन स्ट्रोक के बाद उनके पास इलाज के लिये आयी और इलाज के बाद पूरी तरह से स्वस्थ हो गयी, लेकिन ऐसी गलत धारणाओं की वजह से पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद उसके पति ने तलाक दे दिया। इस घटना से आहत होकर युवती ने अपना कैरियर फिर शुरू किया और आज वह एक सफल फैशन डिजाइनर है।
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