Navratri 2024 : विश्व के चार प्रमुख पौराणिक नगरों में से एक उज्जैन नगरी जो माता सत्ती के 51 शक्ति पीठों में से एक है. यहां विश्व का एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर अपने महाकाल रूप में विराजमान है. यह स्थान न केवल महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि सम्राट विक्रमादित्य की नगरी होने के नाते भी इसका ऐतिहासिक महत्व है. यहां स्थित हरसिद्धि मंदिर तांत्रिक साधना के लिए विशेष रूप से विख्यात है.
शारदीय नवरात्र के पवित्र पर्व पर नया इंडिया आपको उज्जैन की हरसिद्धि माता मंदिर के दर्शन करा रहा हैं. यह मंदिर महाकाल मंदिर से महज 500 मीटर की दूरी पर सप्त सागरों में से एक रुद्र सागर के तट पर स्थित है और इसका इतिहास 2000 साल से भी अधिक पुराना है. उज्जैन एकमात्र ऐसा स्थान है जहां ज्योतिर्लिंग और शक्ति पीठ दोनों एक साथ विराजमान हैं, इसे शिव और शक्ति के मिलन के रूप में देखा जाता है.
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब देवी सती का शरीर 51 हिस्सों में विभाजित हुआ, तो उनकी कोहनी इसी पवित्र स्थान पर गिरी थी, जिससे यह शक्ति पीठ स्थापित हुआ. उज्जैन का यह शक्ति पीठ धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक अद्वितीय स्थल है, जहां श्रद्धालु शिव और शक्ति की एक साथ आराधना कर सकते हैं.
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हरसिद्धि माता नाम पड़ने का कारण
चण्ड-मुण्ड नामक जुड़वां राक्षसों का पृथ्वीलोक पर भारी आतंक फैला हुआ था. एक दिन दोनों राक्षस कैलाश पर्वत तक आ पहुंचे, जहां माता पार्वती और भगवान शिव निवास कर रहे थे. जब द्वारपाल और नंदी ने उन्हें अंदर जाने से रोका, तो दोनों राक्षसों ने क्रोध में आकर नंदी पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया. इससे भगवान शिव को अत्यंत क्रोध आया और उन्होंने देवी चण्डी का स्मरण किया. (Navratri 2024)
देवी चण्डी प्रकट हुईं और उन्होंने दोनों राक्षसों का वध कर दिया. उनके इस महान कार्य से भगवान शिव बहुत प्रसन्न हुए और बोले-हे देवी, तुमने इन दुष्टों का वध कर संसार को इनके आतंक से मुक्ति दिलाई है. अब तुम महाकाल वन में हरसिद्धि के नाम से विराजमान हो जाओ और अपने भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करो, हर सिद्धि प्रदान करो, और उनके कष्टों का हरण करो. इसी कारण माता चण्डी को हरसिद्धि के रूप में पूजा जाता है, और वे अपने भक्तों की हर इच्छा को पूर्ण करने के लिए महाकाल वन में विराजमान हैं.
सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य देवी
माना जाता है कि हरसिद्धि माता के मंदिर में किसी समय सम्राट विक्रमादित्य सिद्धि किया करते थे. आज भी कई तांत्रिक यहां सिद्धि प्राप्त करने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं. राजा विक्रमादित्य को यहां श्री यंत्र की सिद्धि मिली थी. राजा विक्रमादित्य ने इसी के बल पर पूरे देश पर राज किया और न्यायप्रिय राजा कहलाए. हर का कार्य सिद्ध करने वाली हर सिद्धि मूलतः मंगल शक्ति चंडी है.
लोक कथाओं के मुताबिक विक्रमादित्य ने देवी को प्रसन्न करने के लिए हर 12वें वर्ष में अपना सिर काटकर चढ़ाया था. उन्होंने 11 बार ऐसा किया. हर बार सिर वापस आ जाता था.लेकिन 12वीं बार सिर काटकर चढ़ाने पर वापस नहीं आया. इसे उनके 144 वर्ष के शासन का अंत माना गया. हरसिद्धि मंदिर में कुछ सिंदूर चढ़े हुए सिर रखे हैं. माना जाता है कि वे विक्रमादित्य के सिर हैं. (Navratri 2024)
शक्ति पीठ बनने के पीछे ये है मान्यता
शास्त्रों के अनुसार, माता सती के पिता राजा दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शिव को आमंत्रण नहीं भेजा गया. जब माता सती यज्ञ में पहुंचीं, तो उन्हें यह अपमानजनक बात पता चली. यह अपमान वे सहन नहीं कर सकीं और दुखी होकर उन्होंने स्वयं को यज्ञ की अग्नि में समर्पित कर दिया.
जब भगवान शिव को माता सती के इस त्याग और मृत्यु का समाचार मिला, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए. शोक में डूबे शिव ने सती के मृत शरीर को उठाकर पूरे पृथ्वी पर विचरण करना शुरू कर दिया. शिव के इस दुखद और क्रोधित रूप को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र का प्रयोग किया और माता सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिए. मान्यता है कि जहाँ-जहाँ सती के शरीर के ये टुकड़े गिरे, वहाँ-वहाँ शक्ति पीठों का निर्माण हुआ.
उज्जैन में जिस स्थान पर सती की कोहनी गिरी, वहाँ हरसिद्धि माता का मंदिर स्थापित किया गया. इसी कारण इस मंदिर को हरसिद्धि नाम से जाना जाता है, और यह शक्ति पीठ के रूप में विख्यात है, जहाँ भक्त देवी से अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने की प्रार्थना करते हैं.