अगले साल लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले 2023 का साल उस चुनाव की तैयारियों और उसकी प्रतीक्षा का साल होगा। इस साल देश में जो कुछ भी होगा वह अगले साल की चुनावी राजनीति की प्रत्याशा में होगा। राजनीतिक दल जो कुछ भी करेंगे वह अगले साल की तैयारियों से जुड़ा होगा। सरकारें जो भी फैसले करेंगी वह इस पर आधारित होगा कि अगले साल के चुनाव में उससे क्या हासिल हो सकता है। इस साल 10 राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और सारे चुनाव अपने आप में बहुत अहम हैं लेकिन उनका महत्व इस नाते ज्यादा होगा क्योंकि उनके नतीजों से अगले साल की राजनीति का अनुमान लगाया जाएगा। हालांकि राज्यों के चुनाव नतीजे लोकसभा चुनाव का आकलन करने का आधार नहीं हो सकते हैं लेकिन इस साल होने वाले 10 राज्यों के चुनावों को सेमीफाइनल मान कर उनका विश्लेषण होगा। तभी भाजपा चाहेगी कि वह इन चुनावों से अगले साल के लोकसभा चुनाव में जीत की गारंटी की तस्वीर पेश करे तो कांग्रेस के लिए ये चुनाव इसलिए अहम हैं क्योंकि इनके नतीजों से तय होगा कि वह विपक्ष की राजनीति की धुरी बनती है या नहीं।
वर्ष 2023 इस नाते भी 2024 की तैयारियों और प्रतीक्षा का साल है क्योंकि यह नेतृत्व के संघर्ष का भी साल होने वाला है। इस साल यह तय होना है कि अगले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले नेता कौन होगा? कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी संभवतः 30 जनवरी को यानी महात्मा गांधी की पुण्य तिथि के दिन श्रीनगर में अपनी भारत जोड़ो यात्रा का समापन करेंगे। इस यात्रा ने उनको भारतीय राजनीति में वह महत्व और वह स्थान दिलाया है, जिसकी वे और कांग्रेस पार्टी 2004 से इंतजार कर रहे थे। वे एक गंभीर राजनेता के तौर पर स्थापित हुए हैं और जैसा कि नए साल के मौके पर उद्धव ठाकरे गुट के शिव सेना के नेता संजय राउत ने ‘सामना’ में लिखा कि अगर राहुल का ‘प्रभामंडल’ इसी तरह से बढ़ता है तो राजनीति का ‘पावर बैलेंस’ बदल सकता है। सो, सभी पार्टियों की नजर राहुल गांधी पर रहेगी। राहुल के अलावा दूसरे नेता, जिन पर देश भर की नजर होगी वो अरविंद केजरीवाल हैं। पिछले साल उन्होंने भारत की राजनीति को दूसरे किसी भी नेता से ज्यादा प्रभावित किया है और इस साल वे जो कुछ भी करेंगे या जो कुछ भी हासिल करेंगे उससे 2024 की राजनीति प्रभावित होगी।
भारत में पिछले आठ साल से एक नेता और एक पार्टी के प्रभुत्व की राजनीति हुई है। एकतरफा राजनीति हुई है और समूचा राजनीतिक नैरेटिव एकतरफा रहा है। यह धारणा बनी है कि कोई भी पार्टी भाजपा से नहीं लड़ सकती है और नरेंद्र मोदी से मुकाबले का नेता किसी पार्टी के पास नहीं है। राज्यों में जरूर भाजपा के सामने प्रादेशिक क्षत्रपों की चुनौती है क्योंकि प्रदेशों में भाजपा के पास करिश्माई नेताओं की कमी हुई है और ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि भाजपा ने नगर निगम से लेकर लोकसभा चुनाव तक सिर्फ एक चेहरे को दांव पर लगाया। इस साल जिन राज्यों में चुनाव होना वाले हैं, उनमें से कम से कम तीन राज्य- राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक ऐसे हैं, जहां भाजपा के पास बड़े क्षत्रप नेता रहे हैं।
वसुंधरा राजे, शिवराज सिंह चौहान और बीएस येदियुरप्पा देश की राजनीति में नरेंद्र मोदी के धूमकेतु की तरह उभरने से पहले के नेता हैं। मोदी के करिश्मे से पहले इन तीनों नेताओं के करिश्मे से भाजपा कई चुनाव जीती है। सो, यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा इन राज्यों के चुनाव क्षत्रपों के चेहरे पर और उनके नेतृत्व में लड़ती है या नरेंद्र मोदी के नाम पर ही इन राज्यों के चुनाव लड़े जाते हैं। इन राज्यों के चुनाव इस नाते भी अहम होंगे क्योंकि इनके नतीजे से एक पार्टी का प्रभुत्व और मजबूत हो सकता है या उसका प्रभुत्व टूट सकता है। एकतरफा नैरेटिव का समय समाप्त भी हो सकता है। ऐसा हुआ तो यह 2024 के चुनाव के लिए टर्निंग प्वाइंट हो सकता है।
इस साल जी-20 देशों का सम्मेलन भारत में होने वाला है, जो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज से भारत का कद ऊंचा करेगा पर उसका आयोजन ऐसे इवेंट के तौर पर होगा, जिससे अगले साल के चुनावों का माहौल बने और यह संदेश जाए कि भारत पिछले आठ साल में विश्वगुरू बना है इसलिए सारी दुनिया के नेता भारत की धरती पर उतरे हैं। जी-20 से जुड़ी कोई दो सौ बैठकें देश के अलग अलग हिस्सों में होने वाली हैं और उसकी तैयारियां चल रही हैं। हर राज्य अपनी तैयारी कर रहा है और केंद्र ने सबको इसके लिए अलग से फंड उपलब्ध कराया है। राजधानी दिल्ली में सड़कों से लेकर हर तरह के इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने का काम हो रहा है। शहर की साज सज्जा हो रही है। झुग्गियां हटाई जाएंगी या ढकी जाएंगी और सड़क के किनारे फुटपाथ पर सोने वालों को मुख्य शहर से कहीं दूर ले जाया जाएगा।
सितंबर में मुख्य इवेंट होना है और उससे पहले यह सुनिश्चित किया जाएगा कि दुनिया के सारे बड़े नेता दिल्ली आएं। जी-20 के पिछले मेजबान इंडोनेशिया में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से लेकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग सब पहुंचे थे। सो, बाइडेन, जिनफिंग, पुतिन सहित तमाम विश्व नेता दिल्ली में भी जुटें इसके प्रयास किए जाएंगे। तभी इस नजर रखने की जरूरत है कि अगले छह-सात महीने में किस देश के साथ क्या कारोबारी संधि होती है और किस देश को भारत की ओर से क्या बड़ा ऑर्डर दिया जाता है।
इस साल दुनिया में आर्थिक मंदी आने वाली है लेकिन केंद्र सरकार भारत को उससे हर हाल में बचाने की कोशिश करेगी क्योंकि अगले साल चुनाव होने वाले हैं। सरकार के लिए अच्छी बात यह है कि पिछले साल के अंत में स्थितियां सुधरने लगी थीं। थोक और खुदरा महंगाई दहाई से कम होकर एक अंक में आ गई है। विदेशी मुद्रा भंडार जो 642 अरब डॉलर से गिर कर अक्टूबर 2022 में 524 अरब डॉलर तक आ गया था उसमें सुधार हुआ है और साल खत्म होने तक वह 562 अरब डॉलर पहुंच गया। डॉलर की कीमत 82 से 83 रुपए के बीच रूकी हुई है। पिछले साल के आखिरी महीने यानी दिसंबर में लगातार 10वें महीने जीएसटी का संग्रह 1.40 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रहा। सरकार ने बहुत होशियारी से मुफ्त और सस्ते अनाज की योजना को मिला दिया है, जिससे सरकारी खर्च में बड़ी कमी आएगी। मंदी और महंगाई के साल में अगर सरकार वित्तीय अनुशासन बनाए रखती है तो आर्थिक स्थिरता आएगी, जिसका इस्तेमाल अगले साल के चुनाव पर असर डालने के लिए किया जा सकता है। सो, राजनीति से लेकर आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर ऐसा घटनाक्रम होगा, जो 2024 की तैयारियों और उसकी प्रतीक्षा से जुड़ा होगा।