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गपशप

चमका रहेगा चांदी का अदानी जूता!

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क्या हिंडनबर्ग रिसर्च से अदानी ग्रुप के बाजे बजेंगे? कतई नहीं। इसलिए क्योंकि पहली बात भारत लूटने के लिए है। हजार साल से हिंदू लगातार लूटे जाते रहे हैं तो आजाद भारत का समय भला कैसे अलग होगा? पहले नेहरू ने समाजवाद के नाम पर अफसरशाही की लूट के मंदिर याकि सार्वजनिक कारखाने-कंपनियां बनाईं। फिर गरीबी हटाओ के इंदिरा राज में बैंकों के राष्ट्रीयकरण, लाइसेंस-कोटा से धीरूभाई अंबानी का अंबानी एंपायर बना। नरसिंह राव के उदारवाद में शेयर बाजार-बैंकों से लूट के नए कीर्तिमान बने तो नरेंद्र मोदी के राज में हिंदूशाही ने गौतम अदानी को कुबेर बनाया है। कोई हिसाब लगाए तो 75 वर्षों की आजादी ने भारत के लोगों को जितना लूटा गया है उसका ब्योरा अकल्पनीय होगा। मैं भी पत्रकारिता के अपने चालीस वर्षों से हर सरकार के साथ उसके नए-नए जगत सेठों, इनके कॉरपोरेट वॉर को देखता आया हूं। एक वक्त अदानी की तरह अंबानी तेजी से बढ़ते हुए थे। तो पुराने कॉरपोरेट उनसे जलते थे। धीरूभाई बनाम नुस्ली वाडिया में तब अंबानी के साथ कांग्रेसी हुआ करते थे तो नुस्ली के साथ भाजपाई, जसवंत सिंह, वाजपेयी, गुरूमूर्ति, जेतली जैसे दसियों लोग थे जो उन दिनों अंबानी के खिलाफ अखबारों में लिखते थे, बयान छपवाते थे।

उस नाते गौतम अदानी को नरेंद्र मोदी ने आठ सालों में विश्व रत्न, विश्वधनपति बनाया है तो यह न केवल हिंदू लूट अनुभव, माईबाप सत्ता आश्रित हिंदू चरित्र-पुरुषार्थ की परंपरा में है, बल्कि गारंटी है कि जब तक सूरज-चांद रहेगा अदानी तेरा नाम रहेगा। (ऐसे नारे अंबानी के लिए भी लगे हैं) कई लोग मानते हैं कि जैसे अंबानी के नंबर एक बनते वक्त दूसरे खरबपति चिढ़े, उन्होंने रोकने की कोशिश की तो वैसे ही अदानी का विश्वसेठ बनना अंबानियों को पसंद नहीं है। इसलिए यह संयोग गंभीर है कि अदानी ग्रुप के सबसे बड़े आईपीओ से ठीक पहले हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट छपी। सो, न केवल ग्रुप की कंपनियों के शेयर लुढ़कते हुए हैं, बल्कि बीस हजार करोड़ रुपए का आईपीओ कही फेल न हो जाए।

मैं ऐसा नहीं मानता। यह कॉलम में सुबह लिख रहा हूं। संभव है सोमवार-मंगलवार तक ग्रुप के शेयर भी वापिस चढ़ने लग जाएं। इसलिए क्योंकि अदानी ग्रुप तोता है आज की सरकार का। अगले सप्ताह एलआईसी, सरकारी बैंक अदानी ग्रुप में तेजी लिवाने के लिए जान लड़ा देंगे। आखिर गुजराती प्रधानमंत्री के रहते हुए एशिया के सबसे बड़े अमीर गौतम अदानी डाउन हो गए तब गुजराती उद्यमिता क्या कहलाएगी? भारत के नए जगत सेठों का क्या होगा? तब भारत कैसे विश्व की तीसरी या दूसरी इकोनॉमी बनेगा?

इसलिए ऐसा सोचना-मानना बेवकूफी होगी कि अदानी, नीरव मोदी जैसे भागेंगे या सत्यम ग्रुप जैसा हस्र होगा! हां, यह संभव है कि अदानी बनाम अंबानी के परस्पर रिश्तों में आगे कुछ गुल खिलें। भारत के जगत सेठों के इतिहास को ध्यान में रखें तो टाटा के एक अपवाद को छोड़ कर दो-तीन पीढ़ी से अधिक कोई हिंदू सेठ एवरेस्ट पर बना नहीं रहा। हालांकि टाटा पर भी गुजरातियों की नजर लग गई है। संभव है कि नरेंद्र मोदी के सन् 2029 तक रहते-रहते टाटा ग्रुप किसी गुजराती के कब्जे में चला जाए। कुछ जानकार इसका रोडमैप बना हुआ बतलाते हैं।

कुल मिलाकर सारा खेल गुजराती जगत सेठों की चांदी की जूतियों का है। ये दिल्ली दरबार के चरित्र में हर तरह, हर वक्त फिट होते हैं। इसलिए संभव नहीं कि भारत की इक्कीसवीं सदी की खरीदने-बेचने की राजनीति के चलते कोई अदानी या अंबानी फेल हो जाए। भारत लूटने के लिए है और चीन फिलहाल बाजार का क्योंकि मास्टर लूटेरा है तो बतौर उसकी डीलरशीप वाले सेठों, चीनी मैन्यूफैक्चरिंग, चीनी प्रोडक्ट से इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण, आयात-निर्यात की चक्रवर्ती रफ्तार के धंधों वाले अदानी ग्रुप का कुबेर खजाना बढ़ता जाना है। उसकी सुरसा रफ्तार की वैश्विक छानबीन बेअसर होनी है। जानने वाले सब समझते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चक्रवर्ती राज, सत्ता वैभव तथा गौतम अदानी का धनधान्य शिखर परस्पर बंधे हुए हैं। दोनों एक-दूजे के लिए और एक-दूसरे के साझे से ही भारत को विश्व गुरू बना रहे हैं!

बावजूद इसके यह संभव है कि अदानी ग्रुप की वैश्विक साख के संकट से भारत के सरकारी बैंकों की दुर्दशा और बढ़े। पांच-दस साल में कभी शेयर बाजार ऐसा क्रैश हो जो 75 साला इतिहास में कभी नहीं हुआ। बैंकों के लिए लोन देना और वसूलना इतना मुश्किल हो जाए कि 140 करोड़ की भीड़ का जीना आगे और बिना संभावनाओं के हो। उस नाते चाहें तो सोच सकते हैं कि भारत की मौजूदा महाकाल दशा में हिंडनबर्ग रिसर्च मोदी सरकार के खराब समय का प्रतीक है। नंबर एक अमीर का कम-ज्यादा लुढ़कना निश्चित ही इकोनॉमी को और जर्जर बनाएगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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