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Jammu Kashmir Modi Meeting : कश्मीर में उम्मीद की खिड़की!

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Jammu Kashmir Modi Meeting : कश्मीर में उम्मीद की खिड़की!

अगर कश्मीर की पार्टियां इतिहास की धारा मोड़ने का प्रयास करेंगी तो इससे न तो देश का भला होना है और न प्रदेश का। इसलिए जरूरी है कि पार्टियां अनुच्छेद 370 की बहाली की जिद छोड़ें। उन्हें इस बात को समझना चाहिए कि कश्मीरियत की रक्षा अनुच्छेद 370 की मोहताज नहीं है। जैसे देश के अनेक राज्यों की अपनी विशिष्ट पहचान है, अलग भाषा-संस्कृति, खान-पान, रस्म-रिवाज हैं और बिना किसी खास संवैधानिक प्रावधान के उन राज्यों की विशिष्ट अस्मिता बची हुई है।

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Jammu Kashmir Modi Meeting : राजनीति में कुछ भी संभव है। अभी थोड़े दिन पहले तक जम्मू कश्मीर के जो नेता जेल में बंद रखे गए थे या जिनको उनके घरों में नजरबंद रखा गया था वे सब 24 जून को प्रधानमंत्री के साथ बैठ कर वार्ता करेंगे। जिन नेताओं को शांति के लिए खतरा मान कर जेल में बंद किया गया था उनके साथ प्रधानमंत्री लोकतंत्र की बहाली और स्थायी शांति जैसे मसलों पर बातचीत करेंगे। ऐसी उलटबांसी भारतीय राजनीति में होती रहती है। फिर भी भारत सरकार की ओर से की गई पहल उम्मीद की एक खिड़की खुलने जैसी है। पिछले करीब ढाई साल से जम्मू कश्मीर में विधानसभा नहीं है। करीब दो साल पहले राज्य का विशेष दर्जा खत्म कर दिया गया था और इसे दो हिस्सों में बांट कर दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए गए थे। तभी से केंद्र सरकार कह रही है कि वह जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने और लोककंत्र की बहाली के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री के साथ होने वाली बैठक उस प्रतिबद्धता को पूरा करने की दिशा में उठा पहला कदम साबित हो सकता है।

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इसके लिए दोनों पक्षों को बिल्कुल खुले दिल और दिमाग से बातचीत करनी होगी। इस बात को ध्यान में रखना होगा कि अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो की सेना लौट रही है और उनकी वापसी से पहले ही तालिबान की गतिविधियां तेज हो गई हैं। अमेरिका तालिबान के साथ वार्ता करके उसे सरकार में हिस्सेदारी दिलाने का प्रयास कर रहा है और उम्मीद कर रहा है कि इससे शांति बहाल होगी। यह अमेरिका की गलतफहमी है। यह मांस की रखवाली गिद्ध को सौंपने जैसा है। तालिबान ने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। उसने कहा है कि उसका मकसद अफगानिस्तान में इस्लामी कानून बहाल करना है। यह महिलाओं, बच्चों और दूसरे नागरिकों के मानवाधिकार पर बड़े हमले की तरह है। लेकिन उससे ज्यादा भारत को इस बात की चिंता होनी चाहिए कि अफगानिस्तान में तालिबान के बेलगाम होने का बड़ा असर जम्मू कश्मीर पर पड़ेगा। राज्य में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ सकती हैं। ऐसे में जम्मू कश्मीर के लोगों का भरोसा बढ़ाने के लिए लोकतंत्र की बहाली अनिवार्य है। केंद्र सरकार इस बात को समझ रही है। लेकिन राज्यों की पार्टियों को इसे केंद्र की मजबूरी नहीं मानना चाहिए।  Jammu Kashmir Modi Meeting : अगर प्रदेश की पार्टियां यह मान रही हैं कि भारत के ऊपर किसी किस्म का अंतरराष्ट्रीय दबाव है या अफगानिस्तान के घटनाक्रम की वजह से भारत सरकार चिंता में है और इसलिए वह प्रादेशिक पार्टियों की हर उलटी-सीधी मांग को मान कर कोई समझौता करेगी, तो यह उनकी गलतफहमी है। उन्हें भारत सरकार को आजमाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। उन्हें इस मौके का अधिकतम फायदा उठाने का प्रयास करना चाहिए। अधिकतम फायदे का मतलब यह है कि बिना किसी टकराव के परिसीमन का काम पूरा हो, विधानसभा के चुनाव हों, लोकतांत्रिक सरकार बहाल हो और विकास कार्यों की निरंतरता बनी रहे। अगर कश्मीर की पार्टियां इतिहास की धारा मोड़ने का प्रयास करेंगी तो इससे न तो देश का भला होना है और न प्रदेश का। इसलिए जरूरी है कि पार्टियां अनुच्छेद 370 की बहाली की जिद छोड़ें। उन्हें इस बात को समझना चाहिए कि कश्मीरियत की रक्षा अनुच्छेद 370 की मोहताज नहीं है। जैसे देश के अनेक राज्यों की अपनी विशिष्ट पहचान है, अलग भाषा-संस्कृति, खान-पान, रस्म-रिवाज हैं और बिना किसी खास संवैधानिक प्रावधान के उन राज्यों की विशिष्ट अस्मिता बची हुई है। Jammu kashmir election

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प्रधानमंत्री की बुलाई बैठक में शामिल होने के लिए पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकर डिक्लेरेशन यानी गुपकर एलायंस की बैठक के बाद पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा कि भारत ने तालिबान से वार्ता की है तो पाकिस्तान से बात क्यों नहीं हो सकती है? सवाल है कि महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान से क्या वार्ता चाहती हैं? उन्हें भारत सरकार से बातचीत से पहले पाकिस्तान से वार्ता बहाली का ख्याल क्यों आया? पाकिस्तान से भारत को इतनी ही बात करनी है कि वह सीमा पार से भारत के खिलाफ चलने वाली आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगाए और 2003 की संघर्षविराम संधि का पूर्णता के साथ पालन करे। इसके अलावा अगर कोई बात होनी है तो वह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर की आजादी की बात है। इसके अलावा तो पाकिस्तान से और कोई बात नहीं होनी है! महबूबा मुफ्ती की इसमें से किस मुद्दे पर पाकिस्तान से बातचीत में दिलचस्पी है? या उनके दिमाग में कोई और बात है, जिस पर वे पाकिस्तान से बात करना चाहती हैं? उनकी ज्यादा से ज्यादा स्वायत्तता की मांग हो सकती है लेकिन उसमें भी पाकिस्तान की क्या भूमिका है? स्वायत्तता की मांग भी उनको भारत सरकार से ही करनी है, फिर वे पाकिस्तान से भारत की वार्ता कराने में क्यों दिलचस्पी ले रही हैं? वे तो अपनी बात करें, परिसीमन की बात करें, चुनाव की बात करें, लोकतंत्र और सरकार बहाली की बात करें, बाकी कूटनीति और सीमा विवाद को सुलझाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर छोड़ें। 

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जिस तरह से केंद्र सरकार की इस पहल को सफल बनाने के लिए राज्यों की पार्टियों से लचीला और खुला रुख अख्तियार करने की उम्मीद की जा रही है वैसी ही उम्मीद केंद्र सरकार से भी है। केंद्र सरकार को भी सब कुछ नियंत्रित करने और अपनी लाठी से घाटी को हांकने का अंदाज छोड़ना होगा। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ( Jammu Kashmir Modi Meeting  ) ने जम्मू कश्मीर में अपनी पार्टी के राजनीतिक फायदे के लिए जितने प्रयोग करने थे उतने कर लिए हैं। पहले नेशनल कांफ्रेंस के साथ गठबंधन में रही भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन करके भी सरकार बनाई। जब अपनी सरकार गिर गई तो किसी दूसरी पार्टी को सरकार नहीं बनाने दी। केंद्र शासित प्रदेश बना कर सीधे दिल्ली से शासन का संचालन किया। नए दल बनवा कर राजनीति को नियंत्रित करने का प्रयास किया। जिला विकास परिषद यानी डीडीसी के चुनाव करा कर भी प्रदेश की राजनीति को बदलने का प्रयास किया। अब परिसीमन के जरिए विधानसभा सीटों की मौजूदा संरचना को बदलने का काम चल रहा है। यह काम कानून सम्मत तरीके से और पूरी निष्पक्षता के साथ होना चाहिए। इसमें जरा सी भी गड़बड़ी ऐसे संदेह को जन्म देगी, जिससे चुनाव की पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े होंगे। अस्सी-नब्बे के दशक में कश्मीर में चुनाव के कई तमाशे हुए, जिनसे बात और बिगड़ती चली गई।

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सो, केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी होगी कि चुनाव प्रक्रिया तमाशा नहीं बने। वस्तुनिष्ठ तरीके से परिसीमन का काम हो, सरकार के हर फैसले में पारदर्शिता हो और जम्मू कश्मीर की पार्टियों के साथ सर्वदलीय बैठक में ईमानदारी और खुलापन हो। लोकतांत्रिक प्रक्रिया को जितना नुकसान पहुंचाना था, केंद्र सरकार उतना पहुंचा चुकी है। विधानसभा भंग करने से लेकर राज्य के बंटवारे तक सब काम केंद्र ने मनमाने तरीके से किया है। इसमें न तो राज्यों की पार्टियों को भरोसे में लेने का प्रयास हुआ और न अवाम को भरोसे में लिया गया। जिन पार्टियों के साथ भाजपा ने अतीत में तालमेल करके सरकारें बनाईं, उन्हीं के नेताओं को बदनाम करने का प्रयास किया गया। नरेंद्र मोदी की कमान वाली भाजपा ने अनुरोध करके महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री बनाया था। और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ फारूक अब्दुल्ला राज्य में मुख्यमंत्री बने थे और वाजपेयी की केंद्र सरकार में उमर अब्दुल्ला मंत्री बने थे। लेकिन भाजपा के नेता फारूक की अध्यक्षता वाले गुपकर एलायंस को गुपकर गैंग कह कर पूरे समूह को अपमानित करते रहे। ऐसी बातों से छोटे राजनीतिक लाभ मिल सकते हैं लेकिन जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र और स्थायी शांति बहाली के प्रयासों को सफलता नहीं मिलेगी।
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