बेबाक विचार

निजीकरण को घर वापसी बताने की साजिश

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निजीकरण को घर वापसी बताने की साजिश
भारत सरकार ने सरकारी विमानन कंपनी एयर इंडिया को लगभग मुफ्त में अपने चहेते उद्योग समूह टाटा संस को बेच दिया और अब इस बात का प्रचार किया जा रहा है कि सात दशक बाद एयर इंडिया की घर वापसी हुई है। लोगों की आंखों में धूल झोंकने के लिए यह नैरेटिव बनाया जा रहा है। हकीकत यह है कि सरकार ने करदाताओं के पैसे से बनी एक विशालकाय सरकारी कंपनी को एक निजी कंपनी के हाथों बेच दिया है। लोग इस बारे में सवाल न करें कि क्यों इतनी बड़ी कंपनी और इतना बड़ा ब्रांड कौड़ी के मोल बेचा गया, इसके लिए यह प्रचार किया जा रहा है कि नेहरू की सरकार ने टाटा से जबरदस्ती एयर इंडिया छीन ली थी, जो कि एक बड़ी गलती थी और अब उस ऐतिहासिक गलती को सुधारा गया है। privatization to return home इस प्रचार में कंपनी का हित छिपा हुआ है। इसलिए वह प्रचार करे तो समझ में आता है लेकिन हैरानी की बात है कि सरकार भी इसी बात का प्रचार कर रही है और तमाम देशभक्त लोग भी इसी का प्रचार कर रहे हैं। सोचें, उनके लिए सरकार से बड़ा देशभक्त टाटा समूह हो गया, तभी तो वे देश की संपत्ति टाटा को दिए जाने का जश्न मना रहे हैं! सबसे पहले तो यह समझने की जरूरत है कि देश के विकास और बड़ी आबादी के हित में अगर सरकार किसी की संपत्ति का अधिग्रहण करती है तो उसे संपत्ति छीनना नहीं कहते हैं। यह बात जितनी टाटा समूह से एयर इंडिया लिए जाने के बारे में सही है उतनी ही किसानों से जमीनें लेने के बारे में भी सही है। आज पूरे देश में हाईवे, एयरपोर्ट, फ्लाईओवर बन रहे हैं, रेल लाइनों का जाल बिछ रहा है तो उसके लिए किसकी जमीनें ली गई हैं? क्या यह सोचा जा सकता है कि सरकार किसानों की जमीन ले, उसे करदाताओं के पैसे से विकसित करे और फिर किसानों को लौटा दे? एयर इंडिया के साथ यहीं तो हुआ है। एयर इंडिया के पास गिने-चुने जहाज थे और चुनिंदा रूट्स पर उसके जहाज उड़ते थे। उसे भारत सरकार ने लिया और लाखों करोड़ रुपए के निवेश से उसे एक अंतरराष्ट्रीय ब्रांड बना दिया। आज पूरी दुनिया में एयर इंडिया के पास सबसे अच्छे रूटस हैं, उड़ानों की सबसे अच्छी टाइमिंग है, सबसे अच्छा पार्किंग स्लॉट्स है, सबसे अच्छी जगह पर हैंगर्स मिले हुए हैं, हवाईअड्डों पर ग्राउंड सर्विस के लिए प्राथमिकता वाली जगह मिली हुई है और उसे कौड़ी के मोल सरकार ने अपनी पसंदीदा निजी कंपनी को दे दिया। इस पर दुखी होने की बजाय पूरा देश जश्न मना रहा है कि एयर इंडिया की घर वापसी हो गई! क्या इसी रूप में एयर इंडिया को टाटा समूह से लिया गया था? एयर इंडिया को ब्रांड बनाने में जो खर्च हुआ क्या उसकी कोई कीमत नहीं है? टाटा समूह से सरकार को बदले में कुछ नहीं मिला, उलटे भारतीय स्टेट बैंक के नेतृत्व वाला सरकारी बैंकों का कंसोर्शियम टाटा समूह को कर्ज दे रहा है इस विमानन सेवा को चलाने के लिए! क्या इस तरह से टाटा समूह को सरकारी विमानन कंपनी सौंप कर सरकार ने विमानन सेक्टर में एकाधिकार बनने का रास्ता नहीं बनाया है? टाटा समूह पहले से सिंगापुर और मलेशिया की दो विमानन कंपनियों के साथ मिल कर भारत में दो विमानन कंपनी- विस्तारा और एयर एशिया चला रहा है। tata group air india Read also काला-अंधा वर्ष 2040… और वजह? असल में घर वापसी का नैरेटिव एक बड़ी साजिश का हिस्सा है, जिसमें सरकार और टाटा समूह दोनों शामिल हैं। दोनों लोगों के दिमाग के खेल रहे हैं। लोगों के दिमाग में यह बात बैठा रहे हैं कि टाटा के हाथ में एयर इंडिया देने से देश का कल्याण होगा। हकीकत यह है कि इससे सिर्फ टाटा समूह का कल्याण होगा। उसने इस सरकार में निवेश किया है, जिसके बदले में उसे एक सरकारी कंपनी बिना किसी कीमत के सौंप दी गई। ध्यान रहे टाटा समूह ने एक प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट बनाया है, जो राजनीतिक दलों को चंदा देता है। इस ट्रस्ट ने सबसे ज्यादा चंदा पिछले कुछ सालों में भाजपा को दिया है। कम से कम एक साल 2018-19 में भाजपा को मिले चंदे में सबसे बड़ा हिस्सा इसी इलेक्टोरल ट्रस्ट के चंदे का था। यह मिलीभगत है, जिसे अंग्रेजी में ‘क्विड प्रो को’ बोलते हैं। टाटा समूह की ईमानदारी और वर्क इथिक्स आदि की कसमें खाने वालों को हकीकत का पता नहीं है। झारखंड इसकी मिसाल है, जहां की खनिज संपदा से पिछले करीब सवा सौ साल में टाटा समूह खड़ा हुआ और बड़ा हुआ। उस राज्य की और वहां के लोगों की जो हालत है, उसके लिए यह समूह भी काफी हद तक जिम्मेदार है। सोचें, जिस समय पंडित नेहरू ने एयर इंडिया का अधिग्रहण किया था उसी समय उन्होंने लोगों को चूना लगा रही दर्जनों बीमा कंपनियों का भी अधिग्रहण किया था और सबको मिला कर एक जीवन बीमा निगम बनाया था, जो आज भारत की सबसे मूल्यवान कंपनी है। तो क्या अब उस समय अधिग्रहित बीमा कंपनियों के मालिकों के वारिसों को खोज कर एलआईसी की घर वापसी करा दी जाए? इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, खदानों का राष्ट्रीयकरण किया गया तो क्या बैंकों और खदानों के पुराने मालिकों को खोज कर सरकारी बैंक और खदान उनके वारिसों को सौंप दिए जाएं? पिछले 75 साल में सरकारों ने आदिवासियों को उजाड़ कर उनकी हजारों एकड़ जमीन हथिया तो क्यों नहीं उनकी जमीनें वापस कर दी जा रही हैं? उन आदिवासियों की जमीनों की घर वापसी कराई जाए तो आज संभ्रांत लोगों के न जाने कितने शहर, कितनी फैक्टरियां, कितने मॉल उजड़ जाएंगे! सड़क, एक्सप्रेस वे, फ्लाईओवर, रेल लाइन के लिए किसानों की जमीन छीनी जा रही है। विकास के नाम पर आदिवासियों को जंगल से उजाड़ा जा रहा है। खनन के लिए पहाड़ और जंगल छीने जा रहे हैं। लेकिन यह सब देश को मजबूत बनाने के लिए हो रहा है। लेकिन टाटा समूह की एयरलाइन सरकार ने ले ली थी तो वह देश के विकास के लिए नहीं था, बल्कि छीनी गई थी और अब उसकी घर वापसी हुई है! शर्म आती है देख कर कि एक कॉरपोरेट घराना खुद को देश और सरकार से ऊपर दिखा रहा है और लोग तालियां बजा रहे हैं। ध्यान रहे जिस तरह से आजादी के बाद बीमा कंपनियां, बैंक, खदान आदि का राष्ट्रीयकरण किया गया ताकि देश के अधिकतम नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाया जा सके उसी तरह एयर इंडिया का भी अधिग्रहण किया गया था ताकि एक राष्ट्रीय विमानन कंपनी बनाई जा सके। उस प्रयोग का विफल होना गर्व की नहीं, शर्म की बात होनी चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य, जो यह देश एक राष्ट्रीय शर्म का उत्सव मना रहा है। एक तरफ देश के युवा रेलवे में चपरासी की नौकरी के लिए लड़ रहे हैं और पुलिस की लाठियां खा रहे हैं तो दूसरी ओर सरकार ने नेशनल कैरियर को कौड़ी के मोल अपने चहेते उद्योग समूह के हाथों बेच दिया। इसी तरह से रेलवे भी बिक रहा है, सड़कों की बिक्री शुरू हो गई हैं और जलमार्ग पर तो एक दूसरे चहेते उद्योग समूह का कब्जा हो ही गया है।
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