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तो माने तीसरी लहर नहीं आएगी?

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तो माने तीसरी लहर नहीं आएगी?
कोरोना वायरस की दूसरी लहर का पीक चार मई 2021 को था, जिस दिन देश में चार लाख 14 हजार 188 नए केसेज मिले थे। उसके अगले दिन यानी पांच मई से दूसरी लहर कम होनी शुरू हुई। संक्रमण के नए केसेज और संक्रमण की दर दोनों में पांच मई से कमी आने लगी। पांच से 12 मई के बीच एक हफ्ते के संक्रमण का औसत तीन लाख 75 हजार 179 केसेज का था। इसके पांच महीने बाद 12 अक्टूबर को देश में 14,313 नए केसेज मिले और सात दिन के संक्रमण का औसत 18,982 था। कोरोना की दूसरी लहर के पीक के समय मई के पहले हफ्ते में देश में संक्रमण की दर 35 फीसदी थी यानी एक सौ सैंपल टेस्ट होते थे तो उसमें से 35 लोग संक्रमित मिल रहे थे। पांच महीने बाद अक्टूबर के पहले हफ्ते में संक्रमण की साप्ताहिक दर 1.75 फीसदी है यानी सौ में से पौने दो आदमी संक्रमित मिल रहे हैं। यह दर भी देश के करीब तीन दर्जन ऐसे जिलों की वजह से है, जहां संक्रमण की दर पांच फीसदी से ऊपर है। corona crisis third wave

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इस लिहाज से कह सकते हैं कि देश के ज्यादातर हिस्सों में कोरोना का संक्रमण कम हो गया है या लगभग खत्म हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन, डब्लुएचओ ने भी मान लिया है कि भारत में यह एंडेमिक स्टेज में है यानी खत्म हो रहा है। इसके बावजूद देश बहुत आश्वस्त नहीं है। लोग अब भी चिंता और आशंका में हैं। सरकारें भी बहुत भरोसे के साथ यह कहने की स्थिति में नहीं हैं कि कोरोना खत्म हो गया। ऐसा लग रहा है कि सरकारें और 140 करोड़ लोग कोरोना की तीसरी लहर की प्रतीक्षा कर रहे हैं और इस वजह से आशंका में जी रहे हैं। असल में यह कोरोना वायरस की बेहद भयावह दूसरी लहर की वजह से है। दूसरी लहर इतनी भयावह थी कि उसका भय अभी तक खत्म नहीं हुआ है। इस लहर में शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिसने अपने किसी परिजन या प्रियजन को नहीं खोया। उस लहर के दौरान कम से कम दो महीनों तक सरकार और उसकी स्वास्थ्य व्यवस्था की विफलता ने लोगों को और आशंकित बना दिया। लेकिन इसी भयावह लहर में कोरोना के खत्म होने या कमजोर होने के बीज छिपे हैं। वह लहर इतनी बड़ी थी और उसने इतने ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लिया कि देश की बड़ी आबादी के अंदर हर्ड इम्युनिटी विकसित हो गई। पहली लहर के दौरान जिसे असंभव माना जा रहा था और तमाम विशेषज्ञ कह रहे थे कि इतनी बड़ी आबादी में हर्ड इम्युनिटी विकसित ही नहीं हो सकती है, वे सब गलत साबित हुए। दूसरी लहर ने देश की बड़ी आबादी को कोरोना प्रूफ कर दिया, कम से कम वायरस के डेल्टा और उससे पहले मिले दूसरे वैरिएंट्स से! इसका प्रमाण राष्ट्रीय सेरोलॉजिकल सर्वे से भी मिला। जुलाई में हुए सर्वेक्षण के मुताबिक देश के कम से कम 18 राज्यों में 60 फीसदी से ज्यादा लोगों में एंटीबॉडी मिली। इनमें से आठ राज्य ऐसे हैं, जहां 70 फीसदी से ज्यादा आबादी में एंटीबॉडी मिली है। पिछले महीने सितंबर में महाराष्ट्र में सीरो सर्वे हुआ था, जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी मुंबई में 95 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी मिली है। Delta Variant 185 countries

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इतनी बड़ी आबादी में एंटीबॉडी मिलने के साथ साथ भारत के लिए अच्छी बात यह है कि वैक्सीनेशन का अभियान तेजी से चला है। देश में वैक्सीन की 95 करोड़ से ज्यादा डोज लगाई जा चुकी है और एक अनुमान के मुताबिक एक-दो दिन में ही यह आंकड़ा एक सौ करोड़ से ऊपर जाने वाला है। ध्यान रहे भारत में 94 करोड़ व्यस्क आबादी है, जिसमें से करीब 70 करोड़ लोगों को पहली डोज लग चुकी है और 27 करोड़ से ज्यादा लोगों को दोनों डोज लग चुकी है। यह बहुत प्रभावशाली आंकड़ा है। इस बीच भारत में बच्चों की वैक्सीन का परीक्षण भी सफल हो चुका है और इस मामले की विशेषज्ञ समिति ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को दो से 18 साल के बच्चों और किशोरों को लगाने की सिफारिश की है। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की मंजूरी के बाद बच्चों को भी वैक्सीन लगने लगेगी। सो, एक तरफ 70 फीसदी आबादी में एंटीबॉडी और 80 फीसदी व्यस्क आबादी को पहली डोज लग जाना कई तरह से आश्वस्त करता है कि भारत में कोरोना अब खत्म होने की ओर बढ़ रहा है। इसलिए कहा जा सकता है कि भारत के लोगों को आशंका में जीना बंद करके तीसरी लहर की प्रतीक्षा समाप्त कर देनी चाहिए। हालांकि इसका यह मतलब नहीं है कि लोगों को लापरवाही बरतनी चाहिए या कोरोना के लिए बनाए गए प्रोटोकॉल का पालन नहीं करना चाहिए। लोगों को कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन करते हुए इस बचे-खुचे संक्रमण के साथ रहने की आदत डालनी होगी। प्रोटोकॉल का पालन इसलिए जरूरी है क्योंकि इस समय दुनिया खुल रही है। आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक गतिविधियों में तेजी आ रही है और किसी नए वैरिएंट के निकल आने का अंदेशा भी बराबर बना हुआ है। ऐसे में जरा सी भी लापरवाही एक बार फिर संकट पैदा कर सकती है। कई देशों में ऐसा देखने को मिला है कि वैक्सीनेशन में ढिलाई या कोविड-19 प्रोटोकॉल के प्रति लापरवाही से बनते बनते बात बिगड़ गई। रूस इसकी मिसाल है, जहां सबसे पहले वैक्सीन आई लेकिन आज एक दिन में सबसे ज्यादा मौतें वहां हो रही हैं। अमेरिका में भी लोगों की लापरवाही और कई जगह राजनीतिक कारणों से वैक्सीन के विरोध की वजह से हालात सुधरने में देरी हुई है। ब्राजील में वैक्सीन और वायरस दोनों के प्रति राष्ट्रपति के रुख ने लोगों का जीवन खतरे में डाला है। corona care center इन थोड़े से देशों को छोड़ दें तो लगभग समूचे यूरोप और एशिया के ज्यादातर देशों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि में हालात काबू में आ गए हैं। दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौट आई हैं। भारत में भी अर्थव्यवस्था में रिकवरी साफ दिखाई दे रही है और धीरे धीरे सामान्य जनजीवन पटरी पर लौट रहा है। संक्रामक बीमारियों के विशेषज्ञों ने तीसरी लहर आने की जो भी टाइमलाइन बताई थी उसमें से एक को छोड़ कर बाकी सब बीत चुकी है। एक आशंका त्योहारों के बाद नवंबर में तीसरी लहर आने की जताई गई थी। लेकिन उसका भी इंतजार करना कोई बहुत समझदारी की बात नहीं होगी। वैसे भी एंटीबॉडी का स्तर और वैक्सीनेशन का आंकड़ा उम्मीद जगाता है कि शायद यह डेडलाइन भी फेल हो जाए। इसलिए उसका इंतजार करना छोड़ कर जनजीवन को सामान्य बनाना समझदारी की बात होगी। देश में शैक्षणिक गतिविधियों को छोड़ कर लगभग सारी चीजें सामान्य हो गई हैं। शैक्षणिक गतिविधियां भी शुरू हो गई हैं लेकिन उसे पहले की तरह सामान्य बनाने की जरूरत है।
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