
भारत में भी अंततः किशोरों को वैक्सीन लगाने का फैसला हुआ और प्री-कॉशन डोज के रूप में बूस्टर डोज लगाने का भी ऐलान हो गया। दुनिया के अनेक देशों में पहले से बच्चों को वैक्सीन लग रही है और बूस्टर डोज भी लगाई जा रही है। हालांकि यह वायरस के संक्रमण को रोकने में पूरी तरह से कामयाब नहीं है। फ्रांस और ब्रिटेन दोनों अपनी बड़ी आबादी को वैक्सीन की दोनों डोज लगा चुके हैं फिर भी वहां इन दिनों इतने केस आ रहे हैं, जितने पहले कभी नहीं आए। जब वैक्सीन की एक भी डोज नहीं लगी थी उस समय जितने अधिकतम केस 24 घंटे में मिलते थे उससे दोगुने केस अब मिल रहे हैं। फ्रांस और ब्रिटेन में पहली बार 24 घंटे में मिले केसेज की संख्या एक लाख से ऊपर पहुंची है। अमेरिका भी अपनी बड़ी आबादी को फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन लगवा चुका है लेकिन अब वहां हर दिन दो लाख केस आ रहे हैं। फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका में लाखों की संख्या में जो केस मिल रहे हैं उनमें नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के केस बहुत कम हैं और ज्यादातर मामले डेल्टा वैरिएंट के ही हैं। Corona Virus and vaccine
सोचें, वैक्सीन की दोनों डोज लगाने वालों को इतनी बड़ी संख्या में डेल्टा वैरिएंट का संक्रमण क्यों हो रहा है? पहले कहा गया था कि वैक्सीन डेल्टा वैरिएंट पर पूरी तरह से कारगर है। यह भी कहा गया था कि दोनों डोज लगाने के बावजूद संक्रमण हो सकता है लेकिन वह बहुत मामूली होगा। उसे ब्रेक थ्रू केस कहा गया था। लेकिन क्या एक दिन में मिल रहे एक-एक लाख केस को ब्रेक थ्रू केस कह सकते हैं? जाहिर है ये ब्रेक थ्रू केस नहीं हैं, बल्कि एक निश्चित समय के बाद वैक्सीन का असर खत्म पूरी तरह से खत्म हो गया और इसलिए लोगों को फिर से संक्रमण होने लगा। अगर ऐसा है तो इसका मतलब है कि बूस्टर डोज का असर भी थोड़े दिन में खत्म हो जाएगा और फिर नई डोज लगवानी होगी। जैसे इजराइल में इन दिनों चौथी डोज लगाई जा रही है। वहां तीन डोज लगने के बाद भी संक्रमण बढ़ रहा है। भारत में अभी इसी वजह से नए मामले तेजी से नहीं बढ़ रहे हैं क्योंकि यहां देर से वैक्सीन लगनी शुरू हुई थी और पहले वैक्सीनेशन की रफ्तार काफी धीमी थी। भारत में जून के आखिरी हफ्ते से वैक्सीनेशन की रफ्तार तेज हुई है।
तभी क्या यह माना जाए कि भारत में प्री-कॉशन डोज का जो फैसला हुआ है वह किसी वैज्ञानिक आंकड़े के आधार पर नहीं हुआ है, बल्कि कैलेंडर देख कर हुआ है? जिन लोगों को जनवरी-फरवरी में वैक्सीन की पहली डोज लगी थी और मार्च-अप्रैल में दूसरी डोज लगी उनका तीसरी डोज लेने का समय पूरा हो गया है। अगर अभी उनको तीसरी डोज नहीं लगेगी तो भारत में भी उसी तरह संक्रमण बढ़ेगा, जैसा अमेरिका, यूरोप और ब्रिटेन में बढ़ रहा है। इससे यह बात प्रमाणित हो रही है कि वैक्सीन का अधिकतम असर आठ से 10 महीने तक रहता है और उसके बाद नई डोज लेनी होगी। एक सवाल यह भी है कि भारत में 10 जनवरी से प्री-कॉशन डोज लगनी शुरू होगी तो क्या वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों ने इसके लिए कोई नई वैक्सीन बनाई है या पुरानी वैक्सीन ही लगाई जाएगी? सरकार और वैक्सीन कंपनियां कह सकती हैं कि उन्होंने बूस्टर डोज में बदलाव किया है लेकिन असल में यह पुरानी वैक्सीन ही है। वायरस के नए नए वैरिएंट्स, उनके व्यवहार और उन पर वैक्सीन के असर का बहुत व्यापक अध्ययन नहीं हुआ है इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि कोई नई वैक्सीन तैयार हो गई है।
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सोचें, वायरस ने रूप बदलना बंद नहीं किया है। उसका म्यूटेशन चल रहा है और पूरी दुनिया हड़बड़ी में बनाए गए आधे-अधूरे वैक्सीन के सहारे उससे लड़ रही है। ऐसे तो यह लड़ाई अनंत काल तक इसी तरह चलती रहेगी। वायरस का नया वैरिएंट आता रहेगा और छह-आठ महीने के अंतराल पर लोग वैक्सीन लगवाते रहेंगे। इसी बीच जैसा कि दुनिया के सबसे बड़े कारोबारियों में से एक बिल गेट्स ने कहा है, दूसरी पीढ़ी की वैक्सीन आ जाएगी और फिर लोगों को वह वैक्सीन लगवानी होगी। वह कितनी असरदार होगी और पहली पीढ़ी की वैक्सीन से कितनी अलग होगी, यह नहीं कहा जा सकता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि दूसरी पीढ़ी की वैक्सीन की भी कई कई डोज लगवानी पड़ सकती है।
भारत या दुनिया के नागरिकों को वायरस और वैक्सीन के इस दुष्चक्र से मुक्ति नहीं मिलने वाली है क्योंकि दुनिया भर में अनिवार्य वैक्सीनेशन की शुरुआत हो गई है। वैक्सीन पासपोर्ट अब रियलिटी है। पहले लग रहा था कि कुछ खास वैक्सीन सर्टिफिकेट को ही वैक्सीन पासपोर्ट माना जाएगा लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि ज्यादातर वैक्सीन को मान्यता मिल जाएगी। सरोकार सिर्फ इतना दिख रहा है कि वैक्सीन लगी होनी चाहिए। वास्तव में किसी को इस पर भरोसा नहीं है। तभी वैक्सीन की दोनों या तीन डोज लगी होने के बावजूद हवाईअड्डों पर आरटी-पीसीआर टेस्ट कराए जा रहे हैं। इसके बावजूद वैक्सीन को किस तरह से अनिवार्य बनाया जा रहा है यह भारत के कई राज्यों में दिख रहा है। पंजाब सरकार ने कहा है कि दोनों डोज नहीं लगवाने वाले सरकारी कर्मचारियों को वेतन नहीं मिलेगा। चंडीगढ़ तो इससे एक कदम आगे निकल गया। वहां के प्रशासन ने वैक्सीन की दोनों डोज नहीं लगवाने वालों पर पांच सौ रुपए का जुर्माना लगाने का नियम बना दिया है। यह नई विश्व व्यवस्था बनने की शुरुआत है।
सबसे हैरानी की बात है कि सारी दुनिया में इस वायरस को रोकने की वैक्सीन बन गई, बूस्टर डोज भी तैयार हो गए, बच्चों और किशोरों के लिए भी वैक्सीन बन गई और दूसरी पीढ़ी की वैक्सीन भी बन रही है लेकिन दवा अभी तक नहीं बनी। कितनी बार यह वैज्ञानिक तथ्य बताया गया है कि किसी भी बीमारी की पहले दवा आती है और उसके कई बरस के बाद वैक्सीन आती है। कोरोना के मामले में उलटा हुआ है। दो साल पुराने इस वायरस की वैक्सीन आठ-नौ महीने में आ गई लेकिन दवा अभी तक नहीं आई। वैक्सीन की बजाय अगर कंपनियां और बिल गेट्स जैसे उद्योगपति दवा तैयार करने पर ध्यान केंद्रित करें तो लोगों का ज्यादा भला हो सकता है। और तभी वायरस व वैक्सीन के दुष्चक्र से मुक्ति मिलेगी।