
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी अभिनेता और उनकी पार्टी के पूर्व सांसद परेश रावल का एक फिल्म में संवाद था कि ‘धर्म इंसान को कायर बनाता है या फिर आतंकवादी’! क्या सचमुच ऐसा है? यह वाक्य बुनियादी रूप से अपनी प्रस्थापना में ही गलत है क्योंकि कायर का विपरीतार्थक शब्द आतंकवादी नहीं होता है, बल्कि दोनों समानार्थी शब्द हैं। कायर का विपरीतार्थक शब्द साहसी होता है और आतंकवादी साहसी नहीं होते हैं। वे भी डरे हुए लोग होते हैं, जिनके पीछे कोई अदृश्य ताकत काम करती है। वह अदृश्य ताकत धर्म की हो सकती है, राजसत्ता की हो सकती है या किसी और व्यक्ति या वस्तु की हो सकती है। दूसरे, जरूरी नहीं है कि धर्म हमेशा इंसान को कायर बनाए। धर्म साहसी भी बना सकता है। स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद को उनके धर्म ने निर्भय बनाया था। महात्मा गांधी को भी उनके धर्म ने साहसी बनाया था और वे हमेशा मानते रहे कि हिंसा भी एक किस्म की कायरता ही है। डरा हुआ आदमी ही हिंसा करता है।
इसलिए यह कहना गलत है कि धर्म किसी को कायर या आतंकवादी बनाता है। हां, यह सही है कि धर्म का इस्तेमाल करने वाली ताकतें लोगों को कायर या हिंसक बनाती हैं। महात्मा गांधी ने धर्म के आचरण के आधार पर राजनीति की थी इसलिए उन्होंने लोगों को निर्भय बनाया और दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य के सामने खड़े होने की हिम्मत दी। लेकिन आज की सत्ता धर्म का इस्तेमाल लोगों को डराने के लिए कर रही है और इसलिए डरे हुए लोग हिंसक हो रहे हैं। देश के अलग अलग हिस्सों में हो रही हिंसा या हिंसा को उकसावा देने वाले भाषण इसलिए हो रहे हैं क्योंकि राजसत्ता ने लोगों में डर पैदा कर दिया है।
राजसत्ता के बहकावे में आकर लोग इस सनातन सत्य को भूल गए हैं कि हिंदू धर्म तलवार के दम पर पैदा हुआ और फला-फूला धर्म नहीं है और न तलवार के दम पर इसे झुकाया, मिटाया जा सका है। यह सत्य, अहिंसा, सद्भाव, प्रेम, दया, त्याग जैसे बुनियादी मानवीय गुणों के आधार पर फला-फूला और बचा रहा है। सहस्त्राब्दियों से अगर भारतीय सभ्यता की निरंतरता कायम है तो वह हिंदू धर्म के बुनियादी गुणों के कारण ही संभव हो सका है। इन बुनियादी गुणों को खत्म करके हिंदू धर्म और इसे मानने वालों को ताकतवर बनाने का जो अभियान अभी चल रहा है वह अंततः इस महान और सनातन धर्म की बुनियाद को खोखला कर रहा है।
पिछले दिनों हुई हरिद्वार की कथित धर्म संसद में दिया गया भाषण हर इंसान, हर भारतीय और हर हिंदू को शर्मिंदा करने वाला है। किसी प्रबोधानंद गिरि ने हिंदू रक्षा सेना बनाई है। सोचें, कैसी विडंबना है कि महान हिंदू हृदय सम्राट के शासनकाल में एक सौ करोड़ हिंदुओं को अपने ही देश में किसी रक्षा की जरूरत है! उस प्रबोधानंद गिरि ने मुसलमानों के जातीय सफाए की अपील की है। गिरि ने कहा कि ‘म्यांमार की तरह हमारी पुलिस, हमारे राजनेताओं, सैनिकों और हर हिंदू को हथियार उठा कर सफाई अभियान चलाना चाहिए, इसके अलावा कोई और रास्ता नहीं है’। इसी कथित धर्म संसद में किसी साध्वी अन्नपूर्ण ने कहा कि ‘अगर आप उन्हें खत्म करना चाहते हैं तो मार डालिए, हमें एक सौ ऐसे योद्धा चाहिए, जो उनके 20 लाख लोगों को मार सकें’।
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हिंदुओं को अपना धर्म बचाने के लिए मरने या मारने की शपथ लेने का एक कार्यक्रम दिल्ली में भी हुआ, जिसमें एक चैनल का मालिक-संपादक भी शामिल था। इतना ही नहीं 25 दिसंबर को क्रिसमस के मौके पर कई जगह हिंदुवादी संगठनों के लोगों ने चर्च में जाकर ईसाइयों के इस पवित्र, धार्मिक त्योहार में बाधा डाली। उन्हें त्योहार मनाने से रोका और उन पर धर्मांतरण का आरोप लगाया। इसका एक हास्यास्पद वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है, जिसमें कुछ लोग ‘सैंटा क्लॉज मुर्दाबाद’, ‘सैंटा क्लॉज हाय, हाय’ और ‘सैंटा क्लॉज वापस जाओ’ के नारे लगाते दिख रहे हैं। क्या किसी सभ्य कौम से ऐसी जहालत की उम्मीद की जा सकती है?
मुसलमानों के नरसंहार की अपील और ईसाइयों के त्योहार में बाधा डालने की घटनाओं को पूरी दुनिया ने देखा है। इसके वीडियो वायरल हुए हैं और दुनिया की दो सबसे बड़ी आबादी वाले समूहों- मुस्लिम व ईसाई, देशों में पहुंचे हैं।
सोचें, इससे हिंदू धर्म या भारत राष्ट्र राज्य की कैसी छवि दुनिया में बन रही होगी? इस देश के बारे में क्या सोचा जा रहा होगा? क्या किसी ने सोचा है कि अगर उन देशों में भी हिंदुओं के साथ इसी तरह का बरताव होने लगे तो क्या होगा? अगर अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में दिवाली-छठ मना रहे हिंदुओं के बीच घुस कर गोरे ईसाई ऐसी ही तोड़-फोड़ और हिंसा करें तो क्या होगा? हैरानी की बात यह है कि इन घटनाओं की कोई आलोचना केंद्र या संबंधित राज्य सरकारों की ओर से नहीं की गई है और न केंद्र व उत्तराखंड में सरकार चला रही पार्टियों के नेताओं ने इनकी आलोचना की है। तो क्या माना जाए कि ऐसी घटनाओं को सबका मौन समर्थन हासिल है? क्या अलग अलग धार्मिक समुदायों के लिए हिंदुओं के मन में नफरत पैदा करने की इन कोशिशों से धर्म और देश का भला हो रहा है या इनसे पहले से मौजूद फॉल्टलाइंस यानी दरारें और चौड़ी हो रही हैं? थोड़े समय के लिए तो इसका राजनीतिक लाभ लिया जा सकता है लेकिन दीर्घावधि में यह देश और हिंदू धर्म दोनों के लिए बहुत खतरनाक होगा।
इसलिए जितनी जल्दी हो हिंदू धर्म के मर्म को समझने वाले धर्मगुरुओं और आम नागरिकों को इसके खिलाफ उठ खड़ा होना होगा। इससे पहले कि देर हो जाए, यह बताना होगा कि इस तरह की ताकतें न हिंदू धर्म की प्रतिनिधि हैं और न इस देश की महान सांस्कृतिक और सभ्यतागत मान्यताओं का प्रतिनिधित्व करती है। इस तरह की ताकतें भारत की विविधता और एकता को खत्म करने का काम कर रही हैं। देश और धर्म दोनों को बचाने के लिए उनके खिलाफ एकजुट होना होगा। नेता अपने राजनीतिक फायदे के लिए पहनावे से लोगों को पहचानने और भेद करने की बात करते रहेंगे, श्मशान-कब्रिस्तान और अली-बजरंग बली के नाम पर विभाजन की कोशिश करते रहेंगे, धर्मांतरण और लव जिहाद रोकने के गैरजरूरी कानून बना कर हिंदुओं के अंदर भरोसे का छद्म भाव पैदा करने की कोशिशें भी करते रहेंगे लेकिन आम धर्मपरायण हिंदू को इस भुलावे में नहीं फंसना है। उसे इस तरह की बातों और प्रयासों के असली मकसद को समझना होगा और अपने देश, समाज व धर्म को बचाना होगा।