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पटाखे चला कर धर्म की रक्षा!

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पटाखे चला कर धर्म की रक्षा!
धर्म के सामने आया एक बड़ा खतरा टल गया है। दिवाली के दिन तक यह खतरा बना हुआ था। बहुसंख्यक हिंदुओं का दम घुट रहा था कि पता नहीं इस खतरे पर विजय प्राप्त की जा सकेगी या नहीं। लेकिन रात होते ही पटाखे चलने शुरू हुए और अगले दिन सुबह तक पता चल गया कि हिंदुओं ने अपने धर्म के ऊपर आए बड़े खतरे के ऊपर अपनी एकजुटता से विजय हासिल कर ली है। दिवाली की रात जम कर पटाखे चले। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और एनसीआर का इलाका धुआं धुआं हो गया और अगली सुबह जब खबर आई कि दिल्ली की हवा पांच साल में सबसे ज्यादा प्रदूषित हुई है, दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स 531 हो गया, दिल्ली से सटे नोएडा में 862 और इंदिरापुरम में 903 हो गया, तब जाकर देश की बहुसंख्यक आबादी की सांस में सांस आई और हिंदुत्व पर आए दम घोंटू खतरे से मुक्ति का अहसास हुआ। सुप्रीम कोर्ट के माननीय जजों के घरों के आसपास भी जम कर पटाखे फूटे। उनको भी पता चल गया कि वे हिंदुत्व को खतरे में डालने वाले फैसले नहीं कर सकते हैं। fireworks cracked in delhi सवाल है कि माननीय जज लोग यह बात समझते क्यों नहीं हैं कि उनको ऐसे फैसले नहीं करने चाहिए, जिन्हें लागू नहीं किया जा सकता हो? जब सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मसले पर यह बात बहुत साफ साफ और हिंदी भाषा में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समझा चुके हैं कि अदालतों को ऐसे फैसले नहीं करने चाहिए, जिन्हें लागू करने में मुश्किल आए, फिर भी जज लोग ऐसे फैसले देते हैं! उन्होंने पटाखों पर पाबंदी लगा दी। उन्होंने सोचा ही नहीं कि इस फैसले पर अमल कौन कराएगा। जिनके ऊपर अमल कराने की जिम्मेदारी थी वे खुद पटाखे बांट रहे थे या हिंदुओं से धर्म रक्षा के लिए पटाखे चलाने की अपील कर रहे थे। इसलिए माननीय अदालतों को हिंदुत्व को खतरे में डालने वाले फैसले देने की बजाय हिंदुत्व की रक्षा के अभियान में शामिल होना चाहिए। जैसे मंदिर निर्माण के फैसले सुनाने चाहिए, मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के अपने ही फैसले को बड़ी बेंच में भेज कर उसे अटकाना चाहिए और तीन गुनी कीमत पर लड़ाकू विमानों की खरीद के खिलाफ उठने वाली आवाजों की अनसुनी करना चाहिए। इसकी बजाय वे पटाखों पर पाबंदी लगा कर हिंदुत्व के सामने खतरा पैदा कर रहे हैं!

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वह तो अच्छा हुआ, जो हिंदुत्व की रक्षा को लेकर सजग लोगों की संख्या सरकार ने और सोशल मीडिया ने बहुत बढ़ा दी है। ऐसे सजग और सुधी लोग उठ खड़े हुए। उन्होंने सोशल मीडिया पर लोगों से हिंदुत्व को बचाने की अपील की। आम आदमी पार्टी से भाजपा में जाकर हिंदुत्व के नए नए रक्षक बने कपिल मिश्रा ने दिवाली की रात ट्विट किया ‘इतने पटाखे तो पिछले कई सालों में नहीं चले दिल्ली में। तुगलकी फरमानों, अवैज्ञानिक आदेशों की धज्जियां जनता उड़ा रही है। जिन्होंने पटाखे चलाने छोड़ दिए थे वो भी चले रहे हैं कि हमारे त्योहारों में दखलअंदाजी बंद करो। थैक्यू दिल्ली’। यह एक प्रतिनिधि ट्विट है। सोशल मीडिया में हिंदुत्व के ऐसे सैकड़ों, हजारों रक्षक कई दिन से लोगों से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाने की अपील कर रहे थे और जब दिल्ली के लोगों ने आदेश की धज्जियां उड़ा दीं तो उस पर जश्न भी मनाया। तभी यह न्यायपालिका के लिए आत्मचिंतन करने का समय है। उसने एक आदेश दिया, जिसका पालन नहीं करने की खुलेआम अपील की गई, उसे तुगलकी और अवैज्ञानिक कहा गया और अंत में उस आदेश का पालन नहीं किया गया। क्या यह सर्वोच्च अदालत की मानहानि का मामला नहीं बनता है? क्या सर्वोच्च अदालत को स्वतः संज्ञान लेकर केंद्र और दिल्ली की सरकारों के ऊपर मानहानि का मामला नहीं चलाना चाहिए? आखिर न्यायपालिका के आदेशों पर अमल कराने की जिम्मेदारी कार्यपालिका की ही तो है! अगर न्यायपालिका के आदेशों पर अमल नहीं होता है तो इससे लोकतंत्र के दो मुख्य स्तंभों की साख खतरे में आती है और इसलिए यह दोनों के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। अगर सरकार और सत्तारूढ़ दल जान बूझकर न्यायपालिका की साख खराब करना चाहते हों तो अलग बात है। सर्वोच्च अदालत ने पटाखों पर पाबंदी का जो आदेश दिया था उसके गुण-दोष का मामला अपनी जगह है। लेकिन जब आदेश दे दिया तो उसका पालन निश्चित रूप से होना चाहिए था। अब रही बात फैसले के गुण-दोष की तो यह एक बड़ा मामला है। न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों को सोचना चाहिए कि पाबंदी किसी समस्या का समाधान नहीं है। उलटे पाबंदी लगाने से लोगों में प्रतिरोध की भावना पैदा होती है, जिससे कई नई तरह की समस्याएं सामने आती हैं। जैसे बिहार में शराब पर पाबंदी है लेकिन दिवाली के दौरान ही एक हफ्ते में जहरीली शराब पीने से 40 लोगों की मौत हो गई। उसी तरह से पटाखों पर पाबंदी का मामला है। पाबंदी की बजाय अगर ग्रीन पटाखों का उत्पादन बढ़वाने के उपाय होते, पटाखे बनाने वालों को आर्थिक मदद देकर उन्हें ग्रीन पटाखे बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता, ग्रीन पटाखों की सरकारी दुकानें खुलवाई जातीं, नुकसानदेह पटाखे जब्त किए जाते, आम लोगों को जागरूक किया जाता तो इस तरह के उपायों से थोड़े समय में पटाखों की समस्या से निजात पाई जा सकती थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों वैक्सीनेशन अभियान में धर्मगुरुओं की मदद लेने की सलाह दी थी। पटाखों पर रोक या उनका इस्तेमाल कम करने में भी धर्मगुरुओं की मदद लेनी चाहिए। धर्मगुरू हिंदुओं को समझा सकते हैं कि पटाखों का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। भगवान राम जब लंका से अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने दीये जला कर उनका स्वागत किया था, पटाखे चला कर नहीं। पटाखे तो भारत में मुगलों के साथ आए। बाबर जब भारत आया तो बारूद और तोपची लेकर आया था, जिसके दम पर उसने सिर्फ पांच सौ घुड़सवारों के सहारे भारत पर कब्जा कर लिया। बाद में उसके लोगों ने बारूदों से पटाखे बनाने शुरू किए। सोचें, कैसी विडंबना है कि हिंदुत्व के रक्षकों ने उर्दू को मुसलमान बना रखा है और दिवाली के त्योहार को जश्न कहे जाने पर आपत्ति जता रहे हैं लेकिन मुगलों के साथ आए पटाखे चला कर हिंदुत्व की रक्षा का दम भर रहे हैं!
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