बेबाक विचार

‘उपलब्धियों’ पर वोट मांगे भाजपा!

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‘उपलब्धियों’ पर वोट मांगे भाजपा!
उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी अपनी उपलब्धियों के नाम पर वोट क्यों नहीं मांग रही है? वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के आम बजट पेश करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के नेताओं ने मीडिया के सामने जिन उपलब्धियों का जिक्र किया है, उन्हीं का जिक्र जनसभाओं में क्यों नहीं किया जा रहा है? बेरोजगारी, महंगाई, निजीकरण जैसे मुद्दों पर भाजपा अपनी उपलब्धियां क्यों नहीं लोगों को बता रही है? राज्यों के चुनाव में क्यों भाजपा उत्तर प्रदेश के दो-दो कौड़ी के बाहुबलियों से हिंदुओं के आराध्य बजरंगबली का मुकाबला करा रही है? क्यों 30 साल के बाद भाजपा को याद आया है कि समाजवादी पार्टी की लाल टोपी कारसेवकों के खून से रंगी हुई है? Elections Achievements of BJP अगर प्रधानमंत्री और भाजपा के नेताओं की मानें तो उनकी सात साल की उपलब्धियां बेमिसाल हैं। जो 70 साल में नहीं हुआ वह सात साल में हुआ है। जैसे प्रधानमंत्री ने कहा कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के पूंजीगत खर्च के मुकाबले चार गुना ज्यादा पूंजीगत खर्च उनकी सरकार कर रही है। सोचें, जब यूपीए के मुकाबले चार गुना ज्यादा पूंजीगत खर्च है तो बेरोजगारी की दर 45 साल में सबसे ज्यादा क्यों है? चार गुना खर्च होने पर बुनियादी ढांचे का विकास भी चार गुना होना चाहिए और रोजगार भी चार गुना बढ़ा हुआ होना चाहिए, लेकिन यहां तो देश में 81 करोड़ लोग पांच किलो अनाज पर पल रहे हैं! इस बार सरकार ने पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी करने का हल्ला मचाया है तो यहीं कहा जा रहा है कि इससे रोजगार बढ़ेगा। सोचें, जब सात साल में यह खर्च चार गुना बढ़ गया तो रोजगार कहां है? कायदे से तो चुनाव में मतदाताओं को बताना चाहिए कि रोजगार कितना बढ़ा दिया है! बजट के बाद भाजपा नेताओं ने कहा कि यूपीए के समय महंगाई की दर दहाई में होती थी, जो अब पांच फीसदी है। सवाल है कि महंगाई की दर आधी हो गई तो हर चीज की कीमत दोगुनी या उससे भी ज्यादा कैसे हो गई? यह चमत्कार कैसे हुआ? महंगाई दर आधी हुई है तो वस्तुओं की कीमत भी उस अनुपात में आधी होनी चाहिए। लेकिन पेट्रोल, डीजल से लेकर रसोई गैस और खाने के तेल से लेकर दालों तक की कीमत डेढ़ गुनी, दोगुनी या उससे भी ज्यादा हो गई। खुदरा महंगाई पांच फीसदी है और थोक महंगाई अब तक के रिकार्ड 14 फीसदी की ऊंचाई पर है। यह आंकड़े देख कर लगता है कि भगवान भारत भूमि पर कैसे कैसे चमत्कार दिखा रहे हैं। हैरानी है कि भाजपा के नेता प्रचार में इस चमत्कार का जिक्र नहीं कर रहे हैं। वे प्रचार में कह ही नहीं रहे हैं कि महंगाई कम कर दिया है। कायदे से उन्हें शान से बताना चाहिए कि उन्होंने महंगाई घटा दी है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में और उसके बाद अपनी प्रेस कांफ्रेंस में भी वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी की जम कर तारीफ की। जनवरी के महीने में एक लाख 40 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा जीएसटी वसूली का आंकड़ा पेश करते हुए उन्होंने इसे सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक की तरह पेश किया। लेकिन मजेदार बात यह है कि चुनाव में भाजपा इस पर भी वोट नहीं मांग रही है। कोई नेता प्रचार के दौरान यह नहीं कह रहा है कि उसने जीएसटी लागू किया, जिससे कारोबारियों को बड़ा फायदा हुआ और आम लोगों का जीवन सुधर गया। भाजपा के किसी नेता ने जीएसटी के नाम पर वोट नहीं मांगा है। Read also योगी के चेहरे के कंट्रास्ट में अखिलेश लायक! वित्त मंत्री ने इस बार विनिवेश के जरिए कमाई का लक्ष्य घटा दिया है। अगले वित्त वर्ष में सरकारी संपत्तियों को बेच कर 65 हजार करोड़ रुपए कमाने का लक्ष्य है। चालू वित्त वर्ष का  लक्ष्य एक लाख 75 हजार करोड़ रुपए का था, जिसे घटा कर 78 हजार करोड़ रुपए कर दिया गया है। सरकार निजीकरण और विनिवेश के काम को इस अंदाज में कर रही है, जैसे 70 साल की गलती सुधार रही हो लेकिन इस नाम पर भी वोट नहीं मांगा जा रहा है। कितना अच्छा लगता कि भाजपा का कोई नेता या केंद्रीय मंत्री जनसभा में कहता कि लोग भाजपा को इसलिए वोट दें क्योंकि उसने एयर इंडिया को टाटा के हाथों बेचा है या भारतीय जीवन बीमा निगम में पांच से 10 फीसदी हिस्सेदारी बेचने जा रही है या चार बैंकों का निजीकरण किया जाना है या भारत पेट्रोलियम के लिए ग्राहक खोजा जा रहा है या इतनी ट्रेनें व रेलवे स्टेशन बेच दिए गए और इतने अभी बेचे जाने हैं! जिस तरह से बेरोजगारी, महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी पर वोट नहीं मांगा जा रहा है उसी तरह निजीकरण के नाम पर भी वोट नहीं मांगा जा रहा है। क्या भाजपा को ऐसा लग रहा है कि यह अच्छा काम नहीं है? अगर ऐसा है तो फिर उसकी सरकार यह काम कर क्यों रही है? भाजपा के नेता वैसे तो प्रचार के लिए कोई सलाह नहीं मांग रहे हैं लेकिन उनके लिए बिन मांगी सलाह यह है कि उन्हें अपनी ‘उपलब्धियों’ पर वोट मांगना चाहिए। लोगों के बीच जाकर कहना चाहिए कि यह अमृत महोत्सव का वर्ष है और सरकार ने किसानों की आमदनी दोगुनी कर दी है। सरकार ने दो करोड़ सालाना के हिसाब से 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को नौकरी दे दी है। नोटबंदी की वजह से काला धन सरकार के खजाने में आ गया है। जीएसटी की वजह से कारोबारी खुश हैं और आम लोगों का जीवन बदल रहा है। देश के हर नागरिक के सर पर छत उपलब्ध करा दी गई है, हर घर को शौचालय दे दिया गया है और देश खुले में शौच से मुक्त हो गया है। सरकार की कोशिशों से महंगाई दर और महंगाई दोनों आधे रह गए हैं और पूंजीगत खर्च चार गुना बढ़ाने से रोजगार चार गुना बढ़ गया है। सरकार ने शिक्षा में सुधार के लिए जीडीपी के छह फीसदी के बराबर आवंटन कर दिया है। देश में एक सौ स्मार्ट सिटी बन कर तैयार हैं और मेक इन इंडिया के चलते देश में विनिर्माण सेक्टर की विकास दर 14 फीसदी हो गई है। वित्त मंत्री ने कोरोना काल में 21 लाख करोड़ रुपए का जो राहत पैकेज दिया था, उससे लोग कोरोना की मार से उबर गए हैं और देश जल्दी की पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने वाला है। दुर्भाग्य से इनमें से कोई भी बात सही नहीं है और संभवतः इसलिए भाजपा के नेता वोट मांगने के लिए इनमें से किसी बात का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।
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