बेबाक विचार

चीन अकेले भारत का ही संकट नहीं

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चीन अकेले भारत का ही संकट नहीं
पूर्वी लद्दाख और खास कर गलवान घाटी और पैंगोंग झील चीन की प्रयोगशाला है। वह अपनी विस्तारवादी नीतियों का प्रयोग कर रहा है। ड्रैगन के खूनी पंजों की ताकत आजमा रहा है। ड्रैगन के नाखून और दांतों पर सान चढ़ा रहा है। विश्व इतिहास और चीन की विस्तारवादी नीतियों से अनभिज्ञ कोई व्यक्ति ही इसे सिर्फ भारत का संकट मानने की भूल कर सकता है। यह अलग बात है कि भारत के हुक्मरान खुद ही इसे कोई संकट नहीं मान रहे हैं पर हकीकत यह है कि चीन का आक्रामक रवैया पूरी दुनिया के लिए खतरा है और समय रहते इसे नहीं रोका गया तो निकट भविष्य में ही दुनिया इसका खामियाजा भुगतेगी। चीन आज जो कर रहा वहीं काम पिछली सदी के तीसरे दशक में जर्मनी के नाजी तानाशाह हिटलर ने किया था, जिसकी वजह से दूसरे विश्व युद्ध की शुरुआत हुई थी। हिटलर ने 1938 में ऑस्ट्रिया पर कब्जा किया था और उसके बाद चेकोस्लोवाकिया पर हमला किया था। तब विंस्टन चर्चिल ने कहा था- यह सिर्फ चेकोस्लोवाकिया का खतरा नहीं है, बल्कि दुनिया के सारे देशों की आजादी और लोकतंत्र के लिए खतरा है। यह विश्वास कि एक छोटे से देश को भेड़िए के सामने फेंक कर सुरक्षा हासिल की जा सकती है, एक घातक भ्रम है। किसी ने चर्चिल की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया और चैंबरलिन ने 1938 में ही हिटलर के साथ ‘म्यूनिख समझौता’किया, जिसे चर्चिल ने‘बिना लड़े हार’करार दिया था। उसके आगे चर्चिल ने जो बात कही थी उसे भारत के प्रधानमंत्री और दुनिया के सभी देशों को ध्यान से सुनना चाहिए। चर्चिल ने कहा- अगर आप उस समय लड़ने का साहस नहीं कर पाते हैं, जब आप अपेक्षाकृत आसानी से जीत सकते हैं तो फिर आप बाद में ज्यादा बड़ी कीमत चुका कर वहीं लड़ाई लड़ने को बाध्य होते हैं। उसके बाद क्या हुआ वह कहानी सबको पता है। वह कहानी नहीं दोहराई जाए, शी जिनफिंग के रूप में कोई दूसरा हिटलर दुनिया के लिए खतरा पैदा नहीं करे, लोगों की आजादी, देशों की संप्रभुता और लोकतंत्र खतरे में न पड़े इसके लिए जरूरी है कि दुनिया इस संकट को समझे और जितनी जल्दी हो उतनी जल्दी इसे सुलझाने का प्रयास करे। इसकी पहल भारत को करनी होगी। भारत को दुनिया के सामने हकीकत बतानी होगी। शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन गाड़ से लेने से भारत अपनी आजादी, लोकतंत्र, संप्रभुता, सीमा की सुरक्षा और अपने नागरिकों का जीवन तो खतरे में डाल ही रहा है साथ ही दुनिया की शांति, आजादी और तमाम मानवीय मूल्यों को भी संकट में डाल रहा है। प्रधानमंत्री ने कह दिया कि भारत की सीमा में न कोई घुस आया है, न कोई घुसा हुआ है और न किसी ने भारत की किसी पोस्ट पर कब्जा किया है। सरकार की ओर से सफाई के बावजूद चीन इस कहे का जश्न मना रहा है। वह दुनिया को बता रहा है कि उसने भारत की सीमा का कोई अतिक्रमण नहीं किया है, बल्कि भारत आक्रांता है, जिसने उसकी सीमा में घुसपैठ की है। प्रधानमंत्री का यह बयान हो सकता है कि उनकी मजबूत नेता की गढ़ी हुई छवि और राजनीतिक पूंजी को कुछ हद तक बचा ले परंतु इससे देश और दुनिया का बड़ा नुकसान होगा। सो, भारत आगे बढ़ कर देश के नागरिकों को और दुनिया को भी हकीकत बताए। उन्हें चीन के खतरे के बारे में समझाए। यकीन मानिए, दुनिया को इसका अंदाजा है। अमेरिका से लेकर तमाम यूरोपीय देश चीन से खार खाए बैठे हैं। कोरोना वायरस फैलाने से लेकर दुनिया भर के देशों में आर्थिक साम्राज्यवाद फैलाने की सोच और दुनिया के देशों को सस्ती व घटिया चीजों की आपूर्ति ने चीन के प्रति गुस्सा पैदा किया है। दुनिया के देश चीन की विस्तारवादी नीतियों के बारे में भी जानते हैं। लेकिन यह तय मानें कि वे पहल करने नहीं आएंगे और हो सकता है कि वे साथ देने भी नहीं आएं, जैसा कि मौजूदा संकट में दिख रहा है। ध्यान रहे यूरोप के किसी देश ने चीन के विरोध में बयान नहीं दिया है। इस हकीकत को समझते हुए भारत पहल करे। यह‘घातक भ्रम’ छोड़े कि चीन अब कुछ नहीं करेगा। अगर भारत इस भ्रम में रहा कि एक गलवान घाटी का कुछ हिस्सा या पैंगोंग लेक का कुछ हिस्सा लेकर चीन चुप बैठ जाएगा और भारत शांति हासिल कर लेगा, तो वह बहुत घातक साबित होगा। चीन की नजर सिर्फ लद्दाख पर नहीं है। वह उन तमाम इलाकों पर अपनी दावेदारी करेगा, जिसको उसने अपनी विस्तारवादी आकांक्षा को पूरा करने के लिए विवादित बताया है। उसने भारत के दो राज्यों सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र बताया हुआ है। उसकी नजर भूटान पर है। यह नहीं सोचना चाहिए कि वह भारत, भूटान व अपनी सीमा के ट्राइ जंक्शन पर स्थित डोकलाम के कुछ हिस्सों पर कब्जा करके शांत बैठ जाएगा। वह उससे आगे बढ़ेगा। उसकी महत्वाकांक्षा दुनिया की एकमात्र महाशक्ति बनने की है। इसके लिए उसे सबसे पहले एशिया में अपना वर्चस्व स्थापित करना है। इस रास्ते में भारत अकेला देश है, जो उसके लिए बाधा बन सकता है। बाकी देश अपने तमाम झग़डे के बावजूद चीन के साथ जा सकते हैं। सैमुएल पी हटिंगटन ने सभ्यताओं के संघर्ष का जो सिद्धांत दिया है उसमें उन्होंने चीन के उभार को बहुत बारीकी से विश्लेषित किया है। उन्होंने सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली कुआन यू का उद्धरण देते हुए कहा है- इस धारणा को मानना संभव नहीं है कि चीन दूसरे किसी बड़े प्लेयर की तरह एक और बड़ा प्लेयर है, हकीकत यह है कि वह मानव इतिहास का सबसे बड़ा प्लेयर है। इसके आगे हटिंगटन का कहना है कि जापान और दक्षिण कोरिया को छोड़ कर समूचे एशिया की आर्थिकी असल में चीन की आर्थिकी है। उसके बैंबू नेटवर्क का विस्तार मेनलैंड चीन से लेकर थाईलैंड से मलेशिया और सिंगापुर से इंडोनेशिया तक है। हटिंगटन मानते हैं कि चीन और ताइवान की लड़ाई संभव ही नहीं है क्योंकि दोनों में जबरदस्त सांस्कृतिक रिश्तेदारी है। वे मौजूदा एशिया को वैसे ही देखते हैं, जैसे किसी समय यूरोप था, जब सारे यूरोपीय देश आपस में लड़ते थे। उनको लग रहा है कि आगे चल कर एशिया की स्थिति भी यूरोप जैसी हो जाएगी और जापान सहित सारे एशियाई देश अंततः चीन के सामने झुकेंगे, अमेरिका के सामने नहीं। समूचे एशिया पर चीन का एकाधिकार अमेरिका और पूरे यूरोप के लिए खतरे की घंटी है। चीन ने अपना खेल शुरू कर दिया है। उसे भारत के मौजूदा नेतृत्व में अपने लिए मौका दिख रहा है। उसे लग रहा है कि भारत का बड़बोला नेतृत्व देश और दुनिया को सच नहीं बताएगा और इससे उसे इतना समय मिल जाएगा कि वह भारत की उत्तर और पूर्वी सीमा के आसपास के सारे विवादित और यहां तक कि गैर विवादित क्षेत्रों पर भी कब्जा जमा सके। तभी भारत को सच बताना चाहिए और दुनिया के देशों के साथ तालमेल बनाते हुए चीन के विस्तारवाद को रोकना होगा। अगर समय रहते ऐसा नहीं किया गया तो चीन को रोकने के लिए दुनिया को ज्यादा बड़ी लड़ाई लड़नी होगी और ज्यादा बड़ी कीमत चुकानी होगी।
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