बेबाक विचार

लगता है चुनाव आने वाले हैं!

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लगता है चुनाव आने वाले हैं!
मतदाता मालिकों’ को मूर्ख बनाने की मुहिम शुरू हो गई है। जहां चुनाव हैं वहां हजारों हजार करोड़ रुपए की योजनाएं घोषित हो रही हैं। एक मुख्यमंत्री चुनावी राज्यों में घूम घूम कर मुफ्त बिजली देने की घोषणा कर रहे हैं। उनकी प्रतिस्पर्धा में दूसरी पार्टियों के नेता भी मुफ्त बिजली, पानी की घोषणा करें तो हैरानी नहीं होगी। पेट्रोल-डीजल के दाम घटाए जाने का भरोसा दिया जा रहा है। उत्तर भारत में आतंकवादी हमला होने की धड़ाधड़ खुफिया सूचनाएं आ रही हैं। अशोक चक्रधर की एक हास्य कविता है, जिसमें उन्होंने लिखा है कैसे जंगल का राजा शेर बकरी के मेमने को आयुष्मन भव का आशीर्वाद देता है और बकरी मैया को नमस्ते करता है। इसके बाद कविता की पंक्तियां हैं- बकरी हैरान, बेटा ताज्जुब है, भला ये शेर किसी पर रहम खानेवाला है, लगता है जंगल में चुनाव आनेवाला है! इसी से मिलती-जुलती एक नज्म राहत इंदौरी ने कही थी। उन्होंने लिखा था- सरहदों पर बहुत तनाव है क्या, कुछ पता तो करो चुनाव है क्या! और खौफ बिखरा है दोनों समतों में, तीसरी समत का दबाव है क्या! bjp असल में भारत में चुनाव आने वाले हैं, इसका पता लगाना इतना ही आसान होता है। जंगल का राजा अगर मेमने को आयुष्मान भव का आशीर्वाद दे, बकरी को मैया बता कर नमस्ते करे, सरहदों पर तनाव दिखने लगे तो इसका मतलब होता है कि चुनाव है। इसमें कुछ और बातें जोड़ी जा सकती हैं। जैसे अचानक पेट्रोल-डीजल के दामों में बढ़ोतरी थम जाए, मंत्री कहने लगें कि आने वाले महीनों में पेट्रोल-डीजल के दामों से राहत मिलेगी, किसानों की फसलों की कीमतों में बढ़ोतरी होने लगे और मुकदमे वापस होने लगें, अचानक हजारों हजार करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा होने लगे, सरकारी कर्मचारियों का डीए बढ़ने लगे, मंदिर-मस्जिद की बातें और वहां मत्था टेकने का दौर तेज हो जाए, खुफिया एजेंसियां आतंकवादी हमलों की चेतावनी देने लगें, जांच एजेंसियां विपक्षियों को नोटिस थमाने लगें तो समझ जाना चाहिए कि चुनाव आने वाले हैं। इन सारे पैमानों को देखें तो कह सकते हैं कि भारत में चुनाव आने वाले हैं। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, पीएनजी, सीएनजी आदि ईंधनों की कीमत बढ़ने के दस तरह के तर्क देने और कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराने के बाद अब सरकार ने कहा है कि जल्दी ही लोगों को इससे राहत मिलेगी। नए पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि आने वाले महीनों में लोगों को ईंधन की बढ़ती कीमत से राहत मिलेगी। अभी क्यों नहीं मिल रही है या पहले जब कच्चे तेल के दाम कम हुए थे तब क्यों नहीं मिली थी, वह बात छोड़ दीजिए, आने वाले महीनों में राहत मिलेगी क्योंकि आने वाले महीनों में चुनाव होने वाले हैं। सो, इस बात का मतलब नहीं है कि उस समय अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कम रहेगी या ज्यादा रहेगी, उस समय राहत जरूर मिलेगी। जैसे इस साल फरवरी के आखिरी हफ्ते में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढ़ाने के बाद बढ़ोतरी रोक दी गई थी क्योंकि चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा कर दी थी। उसके बाद मार्च और अप्रैल के महीने में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। congress free india Read also काबुल में भारत की भूमिका शून्य क्यों ? दो मई को चुनाव नतीजे आने के दो दिन बाद चार मई से पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगीं। लगातार तीन महीने तक केंद्र सरकार की पेट्रोलियम कंपनियों ने कीमतों में जम कर बढ़ोतरी की। चुनाव की वजह से दो महीने तक बढ़ोतरी रोके रखने से जो नुकसान हुआ था उन सबकी वसूली कर ली गई। अब एक बार फिर कीमतों में थोड़ी-थोड़ी कटौती शुरू कर दी गई और मंत्रीजी ने कह दिया है कि अगले कुछ महीने में लोगों को राहत मिल जाएगी। लेकिन यह उसी तरह की राहत होगी, जैसे चुनाव के समय शेर का मेमने को आयुष्मन भव का आशीर्वाद देना है। चुनाव खत्म होते ही फिर कीमतें बढ़ेंगी और जितने समय तक कीमतें नहीं बढ़ी रहेंगी उतने समय की पूरी वसूली कर ली जाएगी। डीजल की कीमतों में अंधाधुंध बढ़ोतरी से वैसे तो देश भर का किसान परेशान है और केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में देश भर का किसान शामिल है लेकिन चूंकि चुनाव सिर्फ पांच ही राज्यों में हैं इसलिए उन राज्यों में किसानों को राहत मिलनी शुरू हो गई है। उत्तर प्रदेश की सरकार ने इसमें बाजी मारी है। किसानों को आतंकवादी और मवाली बताने वाली पार्टी की राज्य सरकार ने उनको अन्नदाता मानते हुए उनके लिए कई घोषणाएं की हैं। उत्तर प्रदेश में पराली जलाने के आरोप में किसानों पर जितने भी मुकदमे हुए हैं वो सब वापस लिए जाएंगे। सोचें, जब सरकार ने पराली जलाने की कोई व्यवस्था नहीं की है तो किसानों के ऊपर मुकदमा करने की ही क्या तुक थी? और क्या सरकार इस बात की गारंटी दे रही है कि अब किसानों पर पराली जलाने का मुकदमा नहीं दर्ज होगा? इसी तरह राज्य सरकार ने ऐलान किया है कि बिजली बिल बकाया होने की वजह से किसी का कनेक्शन नहीं कटेगा और बकाया बिल पर ब्याज माफ करने की एक वन टाइम स्कीम यानी ओटीएस लाई जाएगी। किसानों को यह राहत भी चुनाव तक ही है उसके बाद बिजली बिल बकाया होने पर कनेक्शन जरूर कटेगा। उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने की कीमतों में बढ़ोतरी का भरोसा दिलाया है। कहा गया है कि सभी संबंधित पक्षों से बात करके इसकी घोषणा की जाएगी। तय मानें कि इस बार की बढ़ोतरी हर बार से बड़ी होगी। इसके साथ ही किसानों को बकाया भुगतान का भी भरोसा दिलाया गया है। हालांकि गन्ने की कीमतों के मामले में पंजाब सरकार ने बाजी मारी है। ध्यान रहे वहां भी चुनाव होने वाले हैं और वहां कांग्रेस की सरकार ने गन्ने की कीमत 360 रुपए प्रति क्विंटल कर दी है। उत्तर प्रदेश में अभी कीमत 310 से 325 रुपए क्विंटल है और पिछले चार साल से राज्य सरकार ने इसमें कोई बदलाव नहीं किया है। भाजपा से पहले राज्य की सपा सरकार ने भी 2012 से 2016 तक कोई बढ़ोतरी नहीं की थी पर चुनावी साल के पेराई सीजन यानी 2016-17 में सीधे 35 रुपए की बढ़ोतरी की थी। सो, मौजूदा सरकार भी चार साल तक कीमतों में बढ़ोतरी नहीं करने के बाद सीधे चुनावी साल के पेराई सीजन यानी 2021-22 के लिए बड़ी बढ़ोतरी करेगी। सोचें, कितनी आसानी से सरकारें मान लेती हैं कि चार साल तक कीमत नहीं बढ़ाएंगे और चुनावी साल में कीमत बढ़ा कर किसानों का वोट ले लेंगे? चार साल मुकदमे करते रहेंगे और चुनावी साल में मुकदमे वापस लेकर किसानों को ठग लेंगे? चार साल तक बिजली के बिल पर अनाप-शनाप ब्याज लगाते रहेंगे और कनेक्शन काटते रहेंगे लेकिन चुनावी साल में कनेक्शन काटना बंद कर देंगे और ब्याज माफ कर देंगे तो किसान वोट दे देंगे? कुल मिला कर ‘मतदाता मालिकों’ को मूर्ख बनाने की मुहिम शुरू हो गई है। जहां चुनाव हैं वहां हजारों हजार करोड़ रुपए की योजनाएं घोषित हो रही हैं। एक मुख्यमंत्री चुनावी राज्यों में घूम घूम कर मुफ्त बिजली देने की घोषणा कर रहे हैं। उनकी प्रतिस्पर्धा में दूसरी पार्टियों के नेता भी मुफ्त बिजली, पानी की घोषणा करें तो हैरानी नहीं होगी। पेट्रोल-डीजल के दाम घटाए जाने का भरोसा दिया जा रहा है। उत्तर भारत में आतंकवादी हमला होने की धड़ाधड़ खुफिया सूचनाएं आ रही हैं। चुनावी राज्यों में बंपर बहाली का ऐलान हो गया है या होने वाला है। याद करें अप्रैल-मई 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले जनवरी 2019 में भारतीय रेलवे ने ग्रुप डी में एक लाख नियुक्तियों का शॉर्ट नोटिस जारी किया था। इसके लिए करीब सवा करोड़ लोगों ने आवेदन किया है। आवेदन करने वाले अभ्यर्थी ढाई साल बाद भी परीक्षा होने का इंतजार कर रहे हैं। यह एक मिसाल है। सारी चुनावी घोषणाएं ऐसी ही होती हैं। फिर भी पार्टियां भरोसा करती हैं वे इन घोषणाओं से लोगों को ठग लेंगी और लोग उनके भरोसे पर खरा भी उतरते हैं!
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