Cabinet Expansion 2021 IAS : बुधवार, सात जुलाई की शाम को राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में जब ओड़िशा काडर के 1994 बैच के आईएएस अधिकारी अश्विनी वैष्णव भारत सरकार के कैबिनेट मंत्री पद की शपथ लेने राष्ट्रपति के सामने पहुंचे तो आंखें जुड़ा गईं, मन आह्लादित हो गया और जीवन धन्य हो गया! यह याद करके कि इसी साल 12 फरवरी को संसद के बजट सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के आईएएस अधिकारियों के लिए अपने मनोद्गार व्यक्त किए थे।
उनके शब्द थे- ‘सब कुछ बाबू ही करेंगे। आईएएस बन गए मतलब वो फर्टिलाइजर का कारखाना भी चलाएगा, आईएएस हो गया तो हवाई जहाज जहाज भी चलाएगा, ये कौन सी बड़ी ताकत बना कर रख दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश देकर हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू देश के हैं तो देश का नौजवान भी तो देश का है’! तभी अश्विनी वैष्णव को शपथ लेते देख कर पहले हैरानी हुई लेकिन फिर लगा कि प्रधानमंत्री कितने लचीले हैं, जो पांच महीने पहले कही गई अपनी बात को दिल से निकाल दिया और ‘बाबुओं’ को देश चलाने लायक समझा।
ध्यान रहे आईएएस अधिकारी अपने को ‘बाबू’ कहे जाने से नाराज होते हैं। आईएएस एसोसिएशन ने 2016 में इस शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति की थी और एसोसिएशन के अध्यक्ष सहित कई दूसरे अधिकारियों ने इसे लोक सेवकों के लिए गाली की तरह माना था। लेकिन जब प्रधानमंत्री ‘बाबू’ कहते हैं तो उसकी अलग बात है। उनकी तो गाली भी आशीर्वचन की तरह है!
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बहरहाल, अश्विनी वैष्णव के बाद एक-एक करके अधिकारी शपथ लेते गए। राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ को आतंकवादी संगठन साबित करने में कोई भी कसर नहीं उठा रखने वाले पूर्व गृह सचिव और 1975 बैच के आईएएस राजकुमार सिंह को कैबिनेट पद की शपथ दिलाई गई तो 1974 बैच के आईएफएस अधिकारी हरदीप सिंह पुरी को भी कैबिनेट मंत्री की शपथ दिलाई गई। 1984 बैच के आईएएस रामचंद्र प्रसाद सिंह ने भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली।
एस जयशंकर, सोम प्रकाश जैसे पूर्व अधिकारी पहले से केंद्र सरकार में मंत्री हैं। यह देख कर अच्छा लगा कि प्रधानमंत्री ने पूर्व आईएएस और आईएफएस अधिकारियों की प्रतिभा का पूरा सम्मान किया। हरदीप सिंह पुरी को शहरी विकास के साथ-साथ पेट्रोलियम मंत्रालय का जिम्मा दिया गया तो अश्विनी वैष्णव को रेल जैसा भारी-भरकम विभाग देकर भी प्रधानमंत्री को लगा कि इससे उनकी प्रतिभा के साथ उचित न्याय नहीं होगा तो उनको संचार और सूचना व प्रौद्योगिक मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया।
दूसरी बार सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्री ने अपना मंत्रिमंडल छोटा रखा था। इस वजह से कई मंत्रियों के पास मंत्रालयों का अतिरिक्त प्रभार था। करीब एक दर्जन मंत्री तीन-तीन विभाग संभाल रहे थे। बाद में कुछ मंत्रियों के इस्तीफे हो गए और एक मंत्री का निधन हो गया तो मंत्रियों के ऊपर भार और बढ़ गया। तभी जब मंत्रिमंडल में विस्तार की चर्चा हुई तो उम्मीद की जा रही थी कि अब मंत्रियों के भार कम किए जाएंगे। लेकिन हैरानी की बात है कि अब भी कई मंत्रियों के पास मंत्रालयों का अतिरिक्त प्रभार है।
इनमें से कुछ प्रभार तो तर्कसंगत हैं, जैसे धर्मेंद्र प्रधान को शिक्षा मंत्री बनाया गया है तो उनके पास ही कौशल विकास मंत्रालय भी रहने दिया गया है। शिक्षा और कौशल विभाग एक साथ हों तो अच्छा भी होता है। हालांकि यह समझ नहीं आ रहा है कि सात साल पेट्रोलियम मंत्री रहने के बाद धर्मेंद्र प्रधान में ऐसा क्या गुण दिखा, जिसकी वजह से उनको शिक्षा मंत्री बना दिया गया? वे मोदी सरकार के चौथे शिक्षा मंत्री हैं। स्मृति ईरानी से शुरू हुआ सफर, प्रकाश जावडेकर और रमेश पोखरियाल निशंक से होता हुआ उनके पास पहुंचा है। मंत्री चार बन गए लेकिन नई शिक्षा नीति लागू नहीं हुई!
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बहरहाल, गौरतलब सवाल यह है कि जब केंद्र में 77 मंत्री बनाए गए हैं तब भी ऐसा कैसे हुआ कि कई मंत्रियों के पास एक से ज्यादा मंत्रालय रहे और अगर रहे भी तो उनको कामों में दक्षता लाने के लिए एक-दूसरे से जुड़े मंत्रालयों को साथ क्यों नहीं रखा गया? जैसे जो व्यक्ति किसान और कृषि कल्याण मंत्री है उसी के पास पशुपालन मंत्रालय क्यों नहीं रखा गया? नरेंद्र सिंह तोमर कृषि मंत्री हैं तो पुरुषोत्तम रूपाला डेयरी और फिशरीज के कैबिनेट मंत्री हैं। सोचें, डेयरी और फिशरीज के लिए कैबिनेट मंत्री! इसी तरह ट्रांसपोर्ट विभाग में चार मंत्री बनाए गए हैं सड़क परिवहन के लिए नितिन गडकरी, जल परिवहन के लिए सर्बानंद सोनोवाल, वायु परिवहन के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया और रेल परिवहन के लिए अश्विनी वैष्णव! दिलचस्प यह है कि जो रेल परिवहन संभालेंगे उनके पास अतिरिक्त प्रभार आईटी और कम्युनिकेशन का होगा और जो जल परिवहन संभालेंगे उनके पास अतिरिक्त प्रभार आयुष मंत्रालय का होगा। अगर सरकार चाहती है कि मंत्री पूरी दक्षता के साथ काम करें और मंत्रालयों में बेहतर तालमेल हो तो इस तरह से विभागों के बंटवारे से कैसे काम चलेगा?
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मंत्रियों की नियुक्ति या तरक्की और उनके बीच विभागों के बंटवारे को देख कर कामकाज की निरंतरता का अहसास नहीं हो रहा है, जो सात साल की एक सरकार के कामकाज में होना चाहिए। ऐसा लग रहा है कि यह मंत्रिमंडल अनंतिम है या प्रायोगिक है, प्रधानमंत्री अपने नेताओं को आजमा रहे हैं, उनकी परीक्षा ले रहे हैं ताकि अंतिम तौर पर एक मंत्रिमंडल बनाया जा सके। अन्यथा अगर नीतियों और कामकाज में निरंतरता रखनी थी तो कोई कारण नहीं था कि सात साल में चार शिक्षा मंत्री बनें या सात साल में सूचना व प्रसारण विभाग में चार मंत्री बदले जाएं या स्वास्थ्य विभाग में तीन मंत्रियों को आजमाया जाए या रेल मंत्रालय में देश के अलग अलग हिस्सों से मंत्री लाकर कर प्रयोग किए जाएं! तभी यह विस्तार भी किसी सुविचारित योजना के तहत किया गया नहीं दिख रहा है, बल्कि ऐसा लग रहा है कि ताश के पत्तों की तरह मंत्रियों को फेंटा गया है और बीच में कुछ नए पत्ते लाकर शामिल कर दिए गए हैं। जो नए पत्ते लाए गए हैं उनमें से कुछ तो हो सकता है कि राजनीतिक रूप से तुरुप का पत्ता साबित हों लेकिन प्रशासनिक तौर-तरीकों में तो उनकी योग्यता माशाअल्ला है!
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अब अगर निष्कर्ष पर पहुंचना हो तो दो-तीन बातें कही जा सकती हैं। पहली बात तो यह कि सात साल का अनुभव है कि सरकार में सब कुछ प्रधानमंत्री के विजन और उनके बनाए कायदों से होना है इसलिए इस बात पर बहस करने की जरूरत ही नहीं है कि कौन मंत्री बना और किसे क्या प्रभार मिला या किसको हटा दिया गया। सब एक ईश्वर के विराट स्वरूप के अंग हैं, जैसे कि कुरुक्षेत्र में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं ‘अंबर में कुंतल जाल देख, पद के नीचे पाताल देख, मुट्ठी में तीनों काल देख, मेरा स्वरूप विकराल देख, सब जन्म मुझी से पाते हैं फिर लौट मुझी में आते हैं। जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन, सांसों में पाता जन्म पवन, पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर, हंसने लगती है सृष्टि उधर, मैं जभी मूंदता हूं लोचन, छा जाता चारों और मरण’!
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दूसरी बात, बहुत काबिल या विषय के विशेषज्ञों को ही मंत्री बना दिया गया तो उन्होंने कौन सा तीर मार लिया, जो किसी मंत्री को कोई सा विभाग देने पर सवाल उठाया जाए? कानून मंत्री चाहे जेटली रहे हों या रविशंकर प्रसाद उन्होंने ऐसा क्या कर लिया जो कीरेन रिजीजू नहीं कर पाएंगे? यह सवाल भी क्यों उठाना कि भूपेंद्र यादव वन व पर्यावरण में और रिजीजू कानून मंत्रालय में क्यों रखे गए? तीसरी बात, जब चुनाव जीतना अंतिम लक्ष्य हो तो सरकार के गठन को प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक नजरिए से ही देखना चाहिए और उस नजरिए से तो क्या पता यह ‘मास्टरस्ट्रोक’ ही साबित हो जाए। Cabinet Expansion 2021 IAS Cabinet Expansion 2021 IAS Cabinet Expansion 2021 IAS Cabinet Expansion 2021 IAS Cabinet Expansion 2021 IAS