बेबाक विचार

सावधान! जनहित के काम जारी हैं!

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सावधान! जनहित के काम जारी हैं!
प्राचीन हिंदू मान्यता है कि ‘जो होता है, अच्छे के लिए होता है’। अमिताभ बच्चन इसको ऐसे कहते हैं ‘मेरे बाबूजी कहा करते थे कि मन का हो तो अच्छा है और मन का न हो तो और भी अच्छा है, क्योंकि अपने मन का नहीं होगा तो वह भगवान के मन का होगा’। जाहिर है जब भगवान के मन का होगा तो अच्छा ही होगा। उसी तरह क्या हुआ, जो जनता के मन लायक काम नहीं हो पा रहा है? सरकार अपने मन का जो कर रही है वहीं असली जनहित का काम है। वह जनता के लिए अच्छा कर रही है पर जनता इस बात को समझ ही नहीं रही है। तुच्छ इंसान इस बात को समझ नहीं पा रहा है कि जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है। सरकार पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा रही है तो वह अच्छा कर रही है, उससे अंततः जनता का भला होना है। सरकार रेलवे का निजीकरण कर रही है और निजी ट्रेनों में किराया ज्यादा लिया जा रहा है तो वह जनता के भले के लिए हो रहा है। सैनिटाइजर पर 18 फीसदी जीएसटी लगा दिया गया तो इससे भी जनता का नुकसान नहीं होगा, उलटे उसका भला ही होगा। सरकार ने लॉकडाउन किया तो क्या वह अपने लिए किया था, वह भी तो जनता के लिए किया था और उससे कितना फायदा हुआ! नोटबंदी से क्या कम लोग खुश हुए थे! असल में लोग ‘ग्रैंड डिजाइन’ को, ‘मास्टरस्ट्रोक’ को समझ ही नहीं पा रहे हैं। तभी केंद्र सरकार के मंत्रियों ने अपने अपने हिसाब से समझाया है। अब शायद लोगों को समझ में आए। अनेक नासमझ लोग कह रहे हैं कि रेलवे को निजी हाथों में दिया जा रहा है, यह अनर्थ हो रहा है। आम आदमी कैसे यात्रा करेगा। हर दिन तीन करोड़ लोग भारतीय रेल से यात्रा करते हैं, जिनमें ज्यादातर गरीब या मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग के लोग होते हैं। इन लोगों को लगा कि रेलवे को निजी हाथों में दे दिया जाएगा तो उनको नुकसान होगा। तभी स्वंय रेल मंत्री प्रकट हुए और उन्होंने आकाशवाणी करते हुए कहा- पीपीपी (सीधे निजीकरण तो तुच्छ इंसान कहते हैं) द्वारा रेलवे में आधुनिक तकनीक आएगी, जिससे विश्वस्तरीय सुविधा, सुरक्षा और आरामदेह और सुगम सफर मिलेगा। इससे यात्रियों को सीटों की उपलब्धता भी बढ़ेगी और रोजगार का सृजन भी होगा। सोचें, सरकार के एक कदम से लोगों को कितना फायदा होने वाला है और लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं। वे इस चिंता में पड़े हैं कि जैसे दिल्ली-लखनऊ रूट पर जो निजी ट्रेन चलाई गई है वह ज्यादा किराया लेती है। अगर उसी तरह सारी निजी ट्रेनें ज्यादा किराया लेंगी तो आम लोग ट्रेन से कैसे चलेंगे। आम लोग नहीं चढ़ेंगे तो क्या हो गया, सुविधा तो देखिए कितनी मिल रही है। और वैसे भी आम लोगों को जाना कहां हैं? अगर जाना ही है तो हवाई जहाज से जाएं,  प्रधानमंत्री ने कहा हुआ है कि वे हवाई चप्पल वालों को हवाई जहाज से यात्रा कराएंगे, उनको ट्रेनों से क्या मतलब है, वे हवाई जहाज से जाएं। क्या कहा, पहले कह रहे थे कि रेलवे का निजीकरण नहीं होगा और अब फायदा गिना रहे हैं? हां, तो क्या हो गया, पहले की बात पहले थी, अब जो कह रहे हैं उसे  सुनो! इन दिनों लगातार पेट्रोल-डीजल के दाम रोज बढ़ रहे हैं, दिल्ली में पेट्रोल की कीमत ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई है और देश के इतिहास में पहली बार डीजल के दाम पेट्रोल से ज्यादा हो गए है तो तुच्छ इंसानों ने हल्ला मचाना शुरू किया कि यह जुल्म हो रहा है, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल सस्ता हुआ है तो भारत में क्यों महंगा किया जा रहा है। तब दूसरे अवतार प्रकट हुए। पेट्रोलियम मंत्री ने आकाशवाणी करते हुए कहा- पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमत से आम लोगों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है। उन्होंने तो फिर भी रेल मंत्री के मुकाबले काफी संकोच किया और यह नहीं बताया कि लोगों को इससे कितना फायदा हो रहा है। सोचें, महंगाई होने से, विकास कार्य ठप्प होने से और लॉकडाउन आदि की वजह से पेट्रोल-डीजल की खपत कितनी कम हो गई है और इसी वजह से पर्यावरण कितना साफ हो गया है! लोग सरकार के मास्टर स्ट्रोक को समझ ही नहीं रहे हैं कि सरकार महंगाई बढ़ा कर पेट्रोल-डीजल की बिक्री कम कराना चाह रही है ताकि तेल आपूर्ति करने वाले अरब देशों की कमर तोड़ी जा सके और देश की हवा शुद्ध की जा सके। वैसे भी सरकार बेचने जा रही है पेट्रोलियम कंपनियों को तो जो निजी कंपनी पेट्रोल-डीजल बेचेगी उसको नफा-नुकसान होगा, उसकी चिंता सरकार क्यों करे! ऐसे ही सरकार ने कोरोना वायरस के संक्रमण के बीच सैनिटाइजर पर 18 फीसदी जीएसटी लगा दिया तो लोग चीखने-चिल्लाने लगे कि ऐसा नहीं करना चाहिए, यह अत्याचार है। तब इस फैसले से होने वाली भलाई की जानकारी देने के लिए इस बार निराकार ब्रह्म प्रकट हुए। वित्त मंत्रालय की ओर से कहा गया- अगर इसे घटाया गया तो इससे सरकार के आत्मनिर्भर भारत अभियान को चोट पहुंचेगी और उपभोक्ताओं का भी इससे खास फायदा नहीं होगा। सोचें, लोग अपना ही फायदा नहीं समझते हैं, वह भी सरकार को समझाना होता है। एक तो लोग समझ ही नहीं रहे हैं कि आत्मनिर्भर होना कितना जरूरी है। कब तक लोग सरकार पर निर्भर रहेंगे? सरकार पर निर्भर रहना अच्छी बात नहीं है। जो लोग आत्मनिर्भर हुए और पैदल ही अपने गांव को चले गए, वे गिरते-पड़ते, मरते-खपते घर तो पहुंच गए। बाकी जो सरकार के भरोसे रहे, उन्हें कितना ज्यादा पैसा देना पड़ा, घर पहुंचने के लिए। रेलवे ने उसी में 428 करोड़ रुपए की कमाई भी कर ली। सो, आत्मनिर्भर होना ठीक है या रेलवे की कमाई कराना ठीक है, वह भी तब, जब सरकार रेलवे को निजी हाथों में देने जा रही है? लोग पूछ रहे हैं कि चीन को ‘लाल आंख’ क्यों नहीं दिखा रहे, जीडीपी क्यों गिरती जा रही है, भारतीय मुद्रा की कीमत क्यों गिर रही है, रोजगार और नौकरियां क्यों खत्म हो रही हैं? अब क्या समझाएं, यह सब मास्टरस्ट्रोक का हिस्सा है, जिसे तुच्छ इंसान नहीं समझ सकते हैं। सब उनके भले के लिए ही हो रहा है। समय आने पर उनको इसका असर दिखेग। तब तक सब्र रखें। सब्र का फल मीठा होता है। इतना सब होने के बाद भी कुछ लोग कंफ्यूज हैं कि पहले की सरकारें जब ऐसा करती थीं, तब तो उनको जनहित का काम नहीं माना जाता था। तब पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ना जन विरोधी काम था। निजीकरण और टैक्स बढ़ाना भी जन विरोधी काम था। अब ऐसा कैसे हो गया कि पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ना भी अच्छा है, निजीकरण भी अच्छा है, जीएसटी बढ़ना भी अच्छा है? अरे, यह क्या बात हुई! यह फर्क भी तो देखो कि आपने किसे चुना है! अब आपने ‘बोलने वाला प्रधानमंत्री’ चुना है तो उन्होंने भाषण में कोई कमी रखी है? आपने प्रधान सेवक चुना है तो क्या उन्होंने सेवा में कोई कसर छोड़ी है? आपने चौकीदार चुना है तो आपकी चौकीदारी में कोई कसर रह गई है? क्या कहा, सीमा की चौकीदारी? वह तो इतना खराब बना कर गए हैं नेहरू की उसकी क्या चौकीदारी हो सकती है! बाकी और कोई कमी हो तो बताइए!
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