बेबाक विचार

पेगासस जांच की चुनौतियां

Share
पेगासस जांच की चुनौतियां
इजराइली सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिए देश के नागरिकों की जासूसी कराने की जांच के सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी तारीफ हो रही है। अति उत्साही लोग इस फैसले को न्यायपालिका की साख, शक्ति और गरिमा की बहाली बता रहे हैं। लेकिन क्या सचमुच यह इतना खुश होने या उत्साहित होने की बात है? क्या तीन सदस्यों की विशेषज्ञ समिति की जांच से पेगासस की जासूसी का सच सामने आ पाएगा? यह सवाल इसलिए है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले कई तरह की बाधाएं सामने आ चुकी हैं। कई विशेषज्ञों ने इस जांच कमेटी का हिस्सा बनने में हिचक दिखाई, जिसकी वजह से विशेषज्ञों के नाम तय करने में लंबा समय लगा और फैसला भी अटका रहा। केंद्र सरकार ने पहले कहा था कि वह विशेषज्ञों की एक तकनीकी समिति बना देगी, जो इस मामले की सुप्रीम कोर्ट की देख-रेख में जांच करेगी। लेकिन चूंकि उसकी कमेटी की बजाय सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कमेटी बनाई है इसलिए यह देखना होगा कि सरकार इस कमेटी के साथ कितना सहयोग करती है। Pegasus case supreme court ध्यान रहे केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इस मामले में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने से इनकार कर दिया था। अगर केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सुप्रीम कोर्ट के सामने हलफनामा देने को तैयार नहीं हुई तो वह तीन अलग अलग संस्थाओं के विशेषज्ञों, जिसमें निजी संस्थाओं के विशेषज्ञ भी शामिल हैं, के सामने कितना डाटा डिसक्लोज करेगी? अगर केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठा कर रक्षा मंत्रालय या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय या मिलिट्री इंटेलीजेंस या डोमेस्टिक इंटेलीजेंस एजेंसियों के दस्तावेज जांच कमेटी को नहीं दिखाए तो क्या जांच होगी? यह सही है कि सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस आरवी रविंद्रन इस मामले की निगरानी कर रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल पर वे भी क्या कर सकते हैं। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच जब राष्ट्रीय सुरक्षा के तर्क के सामने कुछ नहीं कर सकी तो रिटायर जज सरकार को कितना बाध्य कर पाएंगे? सो, जहां तक घरेलू स्तर पर जांच का मामला है तो यह पूरी तरह से सरकार के सद्भाव पर निर्भर करता है कि वह जांच कमेटी के सामने कितने तथ्यों का खुलासा करती है। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस की बेंच ने एक बहुत मार्के की बात कही, जिसका ध्यान रखना जरूरी है। अदालत ने कहा कि सरकार ने पेगासस से नागरिकों की निगरानी करने के आरोपों पर खुल कर कुछ नहीं कहा है यानी सरकार ने न तो इन आरोपों को स्वीकार किया है और न इनसे इनकार किया है। इसलिए अदालत के सामने इसकी स्वतंत्र जांच कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। सरकार अगर आरोपों का खंडन नहीं कर रही है तो इसका मतलब है कि उसने पेगासस का इस्तेमाल किया है। ध्यान रहे संसद में भी सिर्फ रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उसने इजराइल की संस्था एनएसओ से कोई लेन-देन नहीं किया है यानी उसने जासूसी का सॉफ्टवेयर नहीं खरीदा है। इस तरह का स्पष्ट जवाब किसी और विभाग की ओर से नहीं दिया गया। इससे भी संदेह होता है कि जासूसी का उपकरण किसी और विभाग ने खरीदा हो सकता है। यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि अगर रक्षा मंत्रालय ने जासूसी उपकरण नहीं खरीदा है तो ज्यादा संभावना किसी सिविलयन एजेंसी द्वारा खरीद की है। अगर ऐसा है तो यह और भी गंभीर मामला है। क्योंकि तब आम नागरिकों की जासूसी होने का संदेह और पुख्ता होता है।

Read also हिंदुत्व के रक्षकों से कौन बचाएगा?

आंतरिक खतरे के नाम पर घरेलू एजेंसियों ने अगर इसका इस्तेमाल किया है तो उसका सच सामने आना और भी मुश्किल है। सच सामने आने के लिए जरूरी है कि सरकार सारे तथ्य जांच एजेंसी के सामने रखे। जांच एजेंसी, जो भी दस्तावेज मांगे वह उसे दिखाया जाए। इसमें विदेशी सौदों से जुड़े दस्तावेज सबसे अहम हैं। ध्यान रहे इजराइल ने पहले भी कहा हुआ है और जांच कमेटी बनने के बाद भारत में इजराइल के राजदूत ने दोहराया भी कि उनका देश संप्रभु सरकारों के अलावा किसी को यह सॉफ्टवेयर नहीं बेचता है। सो, अगर दो सरकारों के बीच सौदा हुआ है तो आसानी से उसका पता चल सकता है। लेकिन यह भी तभी होगा, जब सरकार इजराइल के साथ हुए हर सौदे की जानकारी ईमानदारी के साथ जांच कमेटी को दे। अगर सरकार हर सौदे की जानकारी ईमानदारी से नहीं देती है तो जांच कमेटी के सामने सच पता लगाने का कोई जरिया नहीं होगा। यह तय मानें कि तीन अकादमिक विशेषज्ञों की कमेटी भारत सरकार की हर एजेंसी के इलेक्ट्रोनिक सर्विलांस के डाटा की जांच नहीं कर सकती है। इसके लिए बहुत अधिक विशेषज्ञता की जरूरत है और असीमित समय भी चाहिए होगा। इस मामले का सच सामने लाने का दूसरा तरीका यह है कि इजराइल ने जो जांच शुरू की है वह किसी नतीजे पर पहुंचे। पेगासस से दुनिया के कई देशों में आम लोगों की जासूसी किए जाने का खुलासा होने के बाद इजराइल ने कहा था कि वह इस सॉफ्टवेयर के दुरुपयोग की जांच करेगा। लेकिन पेगासस जांच के मामले में इजराइल का रिकार्ड भी बहुत खराब है। इजराइल न खुद वस्तुनिष्ठ तरीके से जांच करता है और न दूसरे देशों की जांच में सहयोग करता है। मेक्सिको में इस सॉफ्टवेयर के दुरुपयोग की जांच 2016 से चल रही है लेकिन इजराइल ने कभी जांच में सहयोग नहीं किया। इस जासूसी सॉफ्टवेयर के दुरुपयोग की जांच के लिए इजराइल की शीर्ष अदालत में 2017 और 2018 में दो याचिकाएं दायर की गई थीं लेकिन दोनों को खारिज कर दिया गया। फ्रांस ने भी बड़े जोर-शोर से जांच शुरू की थी लेकिन उसका भी कुछ अता-पता नहीं है। ध्यान रहे पेगासस बनाने वाली संस्था एनएसओ के ऊपर इजराइल का रक्षा मंत्रालय निगरानी रखता है और वह राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कोई भी डाटा जारी नहीं करता है। हकीकत यह है कि इजराइल आज तक सिर्फ एक बार विदेशी जांच में सहयोगी बना है और वह भी अस्सी के दशक में अमेरिका के साथ। सो, इजराइल से किसी तरह की उम्मीद बेमानी है। सोचें, इजराइल किसी तरह का डाटा उपलब्ध नहीं कराता है और भारत सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सीमित डाटा जांच कमेटी के सामने उपलब्ध कराती है तो उस जांच से क्या निकलेगा? जाहिर है कुछ नहीं निकलेगा। सो, जांच को लेकर बहुत उत्साह वाली कोई बात नहीं है। सिर्फ इतनी उम्मीद की जा सकती है कि जांच कमेटी यह बात सार्वजनिक कर दे कि सरकार ने उसे कौन कौन से दस्तावेज उपलब्ध कराए और कौन कौन से दस्तावेज कमेटी ने मांगे थे, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार ने उसे उपलब्ध नहीं कराए। इससे सरकार की मंशा समझ में आएगी और जासूसी की सचाई का भी ठोस अंदाजा लगेगा।
Published

और पढ़ें