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राष्ट्रीय शगल है विपक्ष को कोसना

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राष्ट्रीय शगल है विपक्ष को कोसना
अगर यह पूछा जाए कि भारत के लोगों का राष्ट्रीय शगल क्या है तो उसका जवाब होगा विपक्ष को कोसना। सरकार विपक्ष को कोस रही है। न्यूज चैनलों पर एंकर विपक्ष को कोस रहे हैं। आम आदमी विपक्ष को कोस रहा है और अधिकारी व उद्योगपति, जो खुलेआम टिप्पणी करने से बचते हैं वे भी आपसी बातचीत में विपक्ष को कोस रहे हैं। यहां तक कि सरकार के कामकाज से नाराज लोग भी विपक्ष को ही कोस रहे हैं। विपक्ष को कोसने वाला एक वर्ग वह है, जो वैचारिक रूप से विपक्ष यानी गैर भाजपा पार्टियों का विरोधी है। उसे लगता है कि कांग्रेस और दूसरी भाजपा विरोधी पार्टियों ने 70 साल में कुछ नहीं किया, बल्कि सिर्फ देश को लूटा। opposition democracy Modi government यह वर्ग हर हाल में भाजपा या नरेंद्र मोदी का समर्थक है। सरकार के हर काम के बारे में उसकी धारणा है कि वह देश को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है। दूसरा वर्ग वह है, जो सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी के साथ वैचारिक रूप से नहीं बंधा है और अपनी प्रतिबद्धता बदल सकता है, लेकिन वह भी विपक्ष को कोसता मिलेगा क्योंकि उसके मन में यह धारणा बैठा दी गई है कि विपक्ष बहुत कमजोर है और उससे कुछ नहीं होगा। एक छोटा सा वर्ग जरूर है, जिसको विपक्ष से उम्मीद है लेकिन वह चुनावी राजनीति में बहुत महत्व नहीं रखता है। चुनावी राजनीति के लिहाज से जो बड़ा समूह महत्व रखता है, उसके अंदर यह धारणा बैठा दी गई है कि नरेंद्र मोदी सिर्फ देश के लिए काम करते हैं, वे राजनीति नहीं करते हैं, बल्कि राष्ट्रनीति करते हैं और उनका कोई विकल्प नहीं है। इसके बरक्स विपक्ष के बारे में यह धारणा बनाई गई है कि विपक्ष की पार्टियां सिर्फ टुच्ची किस्म की राजनीति करती हैं, टुकड़े टुकड़े गैंग का समर्थन करती हैं, देश विरोधी हैं, इनको जनता ने खारिज कर दिया है और इनको जब भी मौका मिला तब इन्होंने देश या राज्य को लूटा है। विपक्ष के बारे में एक धारणा यह भी बनाई गई है कि वह विकास या राष्ट्रहित में होने वाले हर काम में बाधा डालता है। हालांकि यह समझ में नहीं आने वाली बात है कि जो विपक्ष इतना कमजोर है और जिसे देश की जनता पूरी तरह से खारिज कर चुकी है वह कैसे सरकार के हर काम में बाधा डाल देता है! असल में यह प्रयोगशाला में बनाई गई धारणा का विरोधाभास है, लेकिन इस पर तार्किक ढंग से सोचने की जरूरत किसको है!

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दोनों तरह की धारणाएं बनाने के लिए सतत प्रचार और मीडिया का सहारा लिया गया है। प्रधानमंत्री अपने हर भाषण में कहते हैं कि 70 साल में जितना काम नहीं हुआ उतना सात साल में कर दिया। कई जगह तो उन्होंने यह भी कहा है कि 70 साल में जितना काम नहीं हुआ उतना तीन साल में कर दिया। इसके पक्ष में आंकड़े भी दिए जाते हैं, जैसे 70 साल में कितने घरों में नल का पानी पहुंचा था और पिछले तीन साल में कितने घरों में पहुंच गया। लेकिन यह आंकड़ा वैसे ही जैसे कोई कहे कि जन्म के बाद 25 साल तक उसने कोई कमाई नहीं की लेकिन दो साल में वह लाखों कमा रहा है या कोई यह कहे कि आजादी के बाद 50 साल तक देश में एक भी आदमी के पास मोबाइल फोन नहीं था, लेकिन अब देश में एक अरब मोबाइल फोन हैं। दुर्भाग्य से इस तरह के बेसिरपैर के दावों का सतत प्रचार होता है और लोग इस पर आंख बंद कर यकीन करते हैं। इस तरह की झूठी धारणा बनवाने के लिए मीडिया का बेहद प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया गया है। मजबूरी में या लालच में या एक खास किस्म की वैचारिक कंडीशनिंग के तहत वह सरकार से सवाल पूछने की बजाय विपक्ष से सवाल पूछता है और सरकार की आलोचना करने की बजाय विपक्ष की आलोचना करता है। यह भी आजाद भारत का एक सत्य है कि आज तक विपक्ष की इतनी आलोचना पहले कभी नहीं हुई। जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों ने तांडव मचाया हुआ है। उन्होंने अक्टूबर के महीने में 11 आम नागरिकों की हत्या की है, जिसमें चार लोग बाहरी हैं, जो मजदूरी करने या रेहड़ी लगाने वहां गए थे। उनकी हत्या पर भी मीडिया पूछ रहा है कि विपक्ष इस पर क्यों खामोश है। लखीमपुर खीरी में एक भाजपा नेता ने अपनी गाड़ी से किसानों को कुचल दिया, जिसमें चार किसानों की मौत हो गई, उसे लेकर आंदोलन कर रहे विपक्ष से पूछा जा रहा है कि उस घटना के बाद हुई हिंसा में तीन लोगों के मारे जाने पर विपक्ष क्यों चुप है! सारे समय बहस का यह मुद्दा होता है कि विपक्ष अमुक विषय पर क्यों चुप है और अमुक विषय पर क्यों बोल रहा है। विपक्षी पार्टियां महंगाई के मुद्दे पर सवाल उठाएं तो मीडिया उनसे पूछता है कि उनके शासन वाले राज्य में महंगाई क्यों नहीं कम हो रही है। विपक्ष कहता है कि केंद्र सरकार एक लीटर पेट्रोल पर 32 रुपए टैक्स ले रही है तो मीडिया बताता है कि उसकी राज्य सरकार भी तो 20-22 रुपए टैक्स ले रही है वह क्यों नहीं कम कर दे रही है।

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आम नागरिक को सतत प्रचार और मीडिया के प्रभावी इस्तेमाल से इस तरह कंडीशंड किया गया है कि वह भी अपनी पीठ पर पड़ रहे चाबुक को राष्ट्र निर्माण में दिए जा रहे योगदान की तरह देख रहा है। यह स्टॉहोम सिंड्रोम है, जिसमें प्रताड़ित व्यक्ति प्रताड़ना देने वाले के मोहपाश में ही बंधा हुआ है। विपक्ष के ऊपर काल्पनिक आरोप लगा कर आम लोगों को इस बात का यकीन दिलाया गया है कि विपक्षी पार्टियों ने अपने शासन में ऐसे काम किए हैं, जिसकी वजह से सरकार को महंगाई बढ़ानी पड़ रही है या सरकारी संपत्ति बेचनी पड़ रही है। पूरे देश में ऐसा माहौल बना दिया गया है, जिससे यह लग रहा है कि विपक्ष ने जो किया है उसके लिए तो वह जिम्मेदार है ही, उसने जो नहीं किया है उसके लिए भी जिम्मेदार है और जो सरकार कर रही है उसके लिए भी वहीं जिम्मेदार है। मजेदार बात यह है कि मनरेगा से लेकर आधार, नकद हस्तांतरण और जीएसटी से लेकर सरकारी संपत्तियों के मॉनेटाइजेशन तक का काम जब विपक्षी पार्टियों की सरकारों ने किया था तब वह देश से गद्दारी था, लेकिन अब वहीं सारे काम केंद्र की मौजूदा सरकार कर रही है तो उनसे राष्ट्र निर्माण होता दिखाया जा रहा है। कुल मिला कर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार हर किस्म की जवाबदेही से परे हो गई है। किसी काम की जिम्मेदारी उसके ऊपर आयद नहीं होती है। जम्मू कश्मीर में आम लोग मारे जा रहे हैं और सैनिक शहीद हो रहे हैं। किसान 11 महीने से धरने पर बैठे हैं। पेट्रोल-डीजल से लेकर हर किस्म के ईंधन की कीमतें बढ़ रही हैं। खाने-पीने की चीजें महंगी होती जा रही हैं। अर्थव्यवस्था का भट्ठा बैठा हुआ है, जिसे बचाने के लिए या तो कर्ज लिए जा रहे हैं या सरकारी संपत्ति बेची जा रही है। बेरोजगारी बेलगाम हो गई है। देश की सीमा चारों तरफ से असुरक्षित हो गई है। भूख, भ्रष्टाचार, लोकतंत्र, प्रेस की आजादी आदि क्षेत्रों में वैश्विक पैमाने पर भारत की रेटिंग पैंदे पर पहुंच गई है। लेकिन इनमें से किसी चीज की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री या उनकी सरकार पर नहीं आती है। इन सब चीजों के लिए भी विपक्ष को कोसना देश का राष्ट्रीय शगल बन गया है।
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