बेबाक विचार

सीबीआई से न्याय की उम्मीद!

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सीबीआई से न्याय की उम्मीद!
सीबीआई के अधिकारी और कर्मचारी भी हैरान हो रहे होंगे! अपने को धन्य मान रहे होंगे कि उनकी ऐसी पुण्यता, जो सारा देश उनसे न्याय की उम्मीद कर रहा है! जिस सुप्रीम कोर्ट ने उसे पिंजरे में बंद तोता कहा था उसे भी उम्मीद है कि सीबीआई से न्याय होगा! तभी माननीय जज ने सुशांत सिंह राजपूत की मौत का केस सीबीआई को सौंपते हुए कहा, सत्यमेव जयते! क्या नेता, क्या अभिनेता, क्या उद्योगपति और क्या पत्रकार और क्या माननीय न्यायमूर्ति सबको लग रहा है कि सीबीआई न्याय करेगी। सीबीआई के इतिहास में ऐसा क्षण पहले कभी नहीं आया होगा, जब इतने लोगों ने उससे न्याय की आस लगाई हो। लोग सीबीआई से डरते हैं, उसकी जांच की बात सुन कर घबराते हैं, कुछ लोग हमेशा मानते रहे हैं कि सीबीआई जांच किसी भी मामले पर लीपापोती करने का सबसे अच्छा माध्यम है, कई लोगों को लगता रहा है कि राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए सरकारें इसका इस्तेमाल करती हैं, पर पहले कभी ऐसा नहीं सुना कि इतनी संख्या में लोग कहें कि सीबीआई को जांच मिलने का मतलब न्याय मिलना है! बहुत से लोग तो ऐसे भी हैं, जो सीबीआई को जांच मिलने को ही न्याय की जीत बता रहे हैं। अभी जांच शुरू हुई है, जांच आगे बढ़ेगी, नतीजे आएंगे, अभियोजन होगा वह सब बाद में, पहले जांच सीबीआई को मिली, ये ही अपने आप में न्याय मिलना हो गया! सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को जांच की इजाजत दे दी, इस पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जो कहा, वहां के पुलिस प्रमुख ने जो कहा, सुशांत सिंह के परिवार से लेकर पूरी फिल्म बिरादरी तक ने जो कहा और यहां तक कि देश के कानून मंत्री ने भी प्रेस कांफ्रेंस करके जो बात कही उसका यहीं अर्थ निकला कि इस मामले में न्याय हुआ है। आगे जो न्याय होगा वह अपनी जगह है पर सीबीआई को जांच मिलने को ही न्याय के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है। यह अनायास नहीं हो रहा है। इसका मकसद महाराष्ट्र पुलिस के बहाने वहां की सरकार को कठघरे में खड़ा करना है। तभी यह एक बड़े राजनीतिक गेमप्लान का छोटा हिस्सा लग रहा है। असल में सुशांत सिंह की मौत का ऐसा नैरेटिव पिछले दो महीने में बनाया गया है, जिसमें सीबीआई जांच की इजाजत मिलना ही न्याय मिलने की तरह हो गया। पहले इसे फिल्म उद्योग में बाहरी बनाम भीतरी का विवाद बनाया गया। कहा गया कि फिल्म उद्योग में नेपोटिज्म है, जिसकी वजह से बाहर से आए सुशांत सिंह को आत्महत्या करनी पड़ी। दूसरा नैरेटिव मानसिक स्वास्थ्य का बनाया गया। पहले डिप्रेशन में रह चुकी फिल्मी हस्तियों ने सुशांत के डिप्रेशन में होने का मुद्दा उठाया और मानसिक स्वास्थ्य की जरूरत पर चर्चा शुरू की तो उन फिल्मी हस्तियों के विरोधी खेमे ने एक दूसरी गुटबंदी की। तीसरा नैरेटिव फिल्म उद्योग की बड़ी हस्तियों बनाम अंडरडॉग का बनाया गया। चौथा नैरेटिव बहुत देर से आया, जब अचानक कहा जाने लगा की सुशांत सिंह ने आत्महत्या नहीं की है, उनकी हत्या की गई है। पांचवां और अंतिम नैरेटिव बिहार बनाम महाराष्ट्र की उप राष्ट्रीयता का बनाया गया, जो निश्चित रूप से अगले दो महीने में बिहार में होने वाले चुनाव से जुड़ा है। इसी नैरेटिव के सब नैरेटिव में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे को घसीटने का प्रयास किया जा रहा है। इन सारी कहानियों के बीच में सुशांत की गर्लफ्रेंड रही रिया चक्रवर्ती को बलि का बकरा बनाया जा रहा है। पहली नजर में फिलहाल कोई मामला उनके खिलाफ नहीं है पर जांच शुरू होने से पहले ही उन्हें अपराधी बना दिया गया है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद ट्विट किया- पहले महाराष्ट्र सरकार सो ‘रिया’ था, फिर संजय राउत सुशांत परिवार को धो ‘रिया’ था अब मुंबई में सरकार रो ‘रिया’ है, दोस्तों जल्दी ही सुनेंगे महाराष्ट्र सरकार जा ‘रिया’ है। इससे अपने आप सुशांत मामले की सीबीआई जांच पर इतना जोर देने का मकसद स्पष्ट हो जाता है। पर इस राजनीतिक मकसद से इतर यह बेहद घृणास्पद और स्तरहीन ट्विट है, जो रिया चक्रवर्ती नाम की एक युवा अभिनेत्री को लक्ष्य करके देश की सत्तारूढ़ और दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने किया है। बहरहाल, उस पार्टी के किसी भी नेता से किसी स्तरीय बात की उम्मीद करना ही बेमानी है। बहरहाल, जांच से पहले ही सीबीआई को ‘अपराधी’ मिल गया है। उसे बस उस ‘अपराधी’ के खिलाफ सबूत जुटाना है ताकि कुछ लोगों की सामूहिक भावना को संतुष्ट किया जा सके। ध्यान रहे जिन मामलों में सीबीआई को पहले से अपराधी नहीं मिले होते हैं उनकी जांच में आमतौर पर सीबीआई सफल नहीं होती है। जैसे वह पिछले सात साल से नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जांच कर रही है और मास्टरमाइंड अभी तक पकड़ा नहीं गया है। बिहार के मुजफ्फरपुर में एक मासूम लड़की नवारुणा चक्रवर्ती के लापता होने के केस की जांच भी सीबीआई बरसों से कर रही है। जेएनयू के लापता छात्र नजीब के मामले की जांच दो साल करने के बाद सीबीआई ने हाथ खड़े कर दिए। ऐसे मामलों की संख्या अनगिनत है, जिनकी जांच बरसों से चल रही है। ऐसे सारे मामलों की बारीकी देखें तो पता चलेगा कि उनमें ‘अपराधी’ पहले से पता नहीं है। जबकि सीबीआई की खासियत यह है कि केंद्र में जिसकी भी सरकार रही है वह ‘अपराधी’ तय करके उसके पीछे सीबीआई को छोड़ती है। यह अलग कहानी है कि कैसे केंद्र में सरकार बदलने से सीबीआई की जांच बदलती रहती है और एक सरकार के समय के अपराधी दूसरी सरकार के समय के माननीय कैसे बनते रहे हैं। जहां तक सीबीआई की जांच का सवाल है तो आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की जांच के बाद सजा दिलाने में उसका रिकार्ड जीरो प्रतिशत है। फिल्म उद्योग में ही सीबीआई जिया खान को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले की जांच कर रही है और कई बरस बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला है। नब्बे के दशक में टेनिस खिलाड़ी रूचिरा गिरोत्रा के केस में भी ऐसा ही हुआ था। वैसे तो सीबीआई की जांच के बाद सजा दिलाने की दर 70 फीसदी के करीब है पर बड़े अपराधों में यह दर चार फीसदी के आसपास है। सीबीआई की कन्विक्शन रेट इसलिए ज्यादा है क्योंकि वह छोटे-छोटे अपराधों, जैसे किसी सरकारी दफ्तर में पांच हजार रुपए घूस लेते हुए किसी कर्मचारी को पकड़ने, के मामले में सजा दिला देती है। पर 2जी घोटाले से लेकर नीरव मोदी तक के मामलों में सीबीआई जांच की अलग ही कहानी है। सो, यह नहीं कहा जा सकता है कि सीबीआई को जांच मिल गई है तो न्याय हो जाएगा। यह कई चीजों पर निर्भर करेगा, जिसमें बिहार का चुनाव और महाराष्ट्र में सरकार बदलने का अभियान मुख्य है। इस बीच पूरे प्रकरण का एक पहलू यह है कि सुशांत अपनी मौत के बाद कुछ बड़े लोगों के लिए एक राजनीतिक मोहरा बन गए हैं, जो इस बहाने लोगों की भावनाएं उभार कर अपना राजनीतिक मकसद साधना चाहते हैं।
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