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विपक्ष के पास मुद्दा क्या है

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विपक्ष के पास मुद्दा क्या है
संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने वाला है और पक्ष-विपक्ष दोनों तरफ रणनीति बनने लगी है। विपक्ष को एकजुट करने के मकसद से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिल्ली में डेरा डाला है तो सरकार ने रविवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा लेंगे। संसद के इस सत्र से पहले यह सवाल है कि विपक्ष के पास सरकार को घेरने के लिए क्या मुद्दे हैं? कौन सा मुद्दा सबसे मुख्य होगा, जिस पर विपक्ष बहस कराने की मांग करेगा? यह सवाल इसलिए भी है क्योंकि प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों कहा था कि संसद में सार्थक और अच्छी बहस के लिए एक समय तय किया जाना चाहिए। इस पर सोशल मीडिया में काफी चर्चा भी हुई और विपक्ष के नेताओं ने भी पूछा कि क्या प्रधानमंत्री उस बहस में शामिल होंगे। Winter session of parliament प्रधानमंत्री या सरकार की ओर से इसका जवाब तो नहीं दिया गया कि वे बहस में शामिल होंगे या नहीं लेकिन उम्मीद की जा रही है कि रविवार को होने वाली सर्वदलीय बैठक में इस पर चर्चा होगी। अगर प्रधानमंत्री सार्थक बहस के लिए समय तय किए जाने के अपने आइडिया के प्रति गंभीर हैं तो वे जरूर इसका प्रस्ताव रखेंगे। हालांकि संसद का सत्र सार्थक चर्चा के लिए होता है लेकिन अब संसद के दोनों सदनों की जैसी स्थिति हो गई है और पिछले कुछ बरसों से जिस तरह से कार्यवाही चल रही है उसे देखते हुए अगर थोड़े समय भी सार्थक चर्चा हो तो वह भी बहुत अच्छी बात होगी। Kishan andolan farmer protest बहरहाल, सार्थक चर्चा के लिए समय निश्चित हो या नहीं हो लेकिन एक महीने का सत्र चलना है और कई मौके आएंगे, जब अच्छी बहस हो सकती है। लेकिन सवाल है कि किस मुद्दे पर बहस होगी? विपक्ष के पास क्या मुद्दा है? विपक्ष ने संसद का पिछला सत्र पेगासस जासूसी के मसले पर बाधित किया था। इजराइल की संस्था एनएसओ के बनाए जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से भारत के नागरिकों, नेताओं, मंत्रियों, पत्रकारों, अधिकारियों और यहां तक कि जजों की जासूसी कराने का खुलासा भी ऐन मॉनसून सत्र शुरू होने के दिन हुआ था और पूरा सत्र इस मसले पर चर्चा कराने और जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाने के मसले पर बाधित हुआ था। लेकिन अब यह मुद्दा खत्म हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी बना दी है और विपक्ष के सभी नेताओं ने प्रेस कांफ्रेंस करके सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे न्याय की जीत बताया है। पता नहीं न्याय मिलेगा या नहीं लेकिन अब जबकि विपक्ष सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्याय की जीत बता चुका है तो वहीं मुद्दा संसद में उठाने का कोई मतलब नहीं है। दूसरा बड़ा मुद्दा तीन विवादित कृषि कानूनों का था तो संसद सत्र से ठीक पहले प्रधानमंत्री ने तीनों कानून वापस लेने की घोषणा कर दी। अब सत्र शुरू होते ही सरकार कानून वापस लेने के लिए बिल पेश करेगी, जिसे स्वाभाविक रूप से सभी पार्टियों का समर्थन मिलेगा और बिल पास हो जाएगा। इस बिल पर बहस के दौरान विपक्षी पार्टियां न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की गारंटी देने का कानून बनाने की मांग कर सकती हैं। लेकिन हकीकत यह है कि कृषि कानूनों का मुद्दा विपक्ष के हाथ से निकल गया है। एमएसपी का मुद्दा है, जिसे लेकर संयुक्त किसान मोर्चा ने संसद तक ट्रैक्टर मार्च का ऐलान किया है। उस दौरान अगर किसानों को रोका जाता है और पुलिस ज्यादती करती है तब संसद सत्र में विपक्ष को एक मुद्दा मिलेगा और तब वह बड़ा मुद्दा बन सकता है। Wholesale and retail inflation अब रही बात महंगाई की तो वह भारत का सनातन मुद्दा है। आजादी के बाद से भारतीय संसद का शायद ही कोई सत्र हुआ होगा, जिसमें महंगाई का मुद्दा नहीं उठा होगा। कोई भी सरकार मुद्रास्फीति को नहीं रोक सकती है। हां, फर्क यह है कि किसी सरकार में महंगाई ज्यादा बढ़ती है और किसी सरकार में कम बढ़ती है। तभी हर सरकार में और हर सत्र में महंगाई का मुद्दा रहता है। इसमें भी विपक्ष के पास पेट्रोल और डीजल की बेलगाम बढ़ती कीमतों का मुद्दा था, जिसे सत्र से ठीक पहले सरकार ने कुछ हद तक काबू करने का प्रयास किया। केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर पांच रुपए और डीजल पर 10 रुपए उत्पाद शुल्क कम किया है और चुनावी मजबूरी में ही सही लेकिन पिछले करीब एक महीने से दोनों ईंधनों की कीमतों में बढ़ोतरी रोक दी है। एक तरफ पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं और उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें भी कम होने लगी हैं इसलिए उम्मीद की जा रही है कि अगले साल के शुरू में होने वाले चुनावों तक ईंधनों की कीमत में बढ़ोतरी नहीं होगी। उलटे रसोई गैस पर सब्सिडी लौटने की चर्चा हो रही है। विपक्ष के पास राफेल का मुद्दा जरूर है, जिस पर पिछले दिनों कुछ नया खुलासा हुआ। फ्रांसीसी मीडिया ने भारत में बिचौलिए को पैसा दिए जाने के दस्तावेज सार्वजनिक किए हैं। बिचौलिए के रूप में सुशेन गुप्ता का नाम का आया है। लेकिन मुश्किल यह है कि फ्रांस में हुए खुलासे से पता चला है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय भी इस सौदे के लिए इसी बिचौलिए को पैसा दिया गया था। इस खुलासे के बाद कांग्रेस से ज्यादा आक्रामक भाजपा हो गई थी। सो, संसद में राफेल का मुद्दा उठाना कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार की तरह है। हालांकि कांग्रेस यह मुद्दा उठा सकती है क्योंकि उसका आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस जाकर मनमाने तरीके से सौदे को बदला, पिछला सौदा रद्द किया और तीन गुनी कीमत पर विमान खरीदा। मुश्किल यह है कि 59 हजार करोड़ रुपए के इस सौदे में अभी तक सिर्फ आठ-नौ करोड़ रुपए की मामूली रकम किसी बिचौलिए को देने का खुलासा हुआ है। यहीं वजह है कि सौदे में गड़बड़ी होने की पर्याप्त आशंका के बावजूद यह बात नहीं खुल रही है कि बड़ी रकम किसे, कैसे और कहां दी गई है। तभी ऐसा लग रहा है कि संसद के शीतकालीन सत्र से पहले बड़े मुद्दे किसी न किसी तरह से सुलझे हैं या सुलझाने का प्रयास हुआ है। पेगासस का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट की वजह से विपक्ष के हाथ से निकला है तो कृषि कानून और पेट्रोल-डीजल की कीमत का मुद्दा सरकार ने सुलझाने का प्रयास किया है। राफेल के मुद्दे पर पिछले कई सत्र से विपक्ष हंगामा कर रहा है इसलिए उसमें कुछ भी नया नहीं है। ममता बनर्जी की पार्टी जरूरत बीएसएफ का अधिकार क्षेत्र बढ़ाए जाने और त्रिपुरा की हिंसा का मुद्दा उठाएगी पर वह भी पूरे सत्र चलने वाला मुद्दा नहीं है।
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