बेबाक विचार

बुरा न मानो होली है!

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बुरा न मानो होली है!
होली अगले हफ्ते है। तभी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को ऐलान किया कि वे मिलन समारोह में शामिल नहीं होंगे और साथ ही लोगों को सलाह दी कि वे भी सामूहिक जमावड़े से बचें तब सबको हैरानी हुई। उनके पीछे-पीछे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मोदी सरकार के अनेक मंत्रियों ने ऐलान कर दिया कि कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए वे होली के कार्यक्रमों से दूर रहेंगे। मेरे जैसे बहुत से लोग ऐसे होंगे, जो उम्मीद लगाए बैठे होंगे कि प्रधानमंत्री मोदी ट्विट करके कह देंगे कि होली नहीं मनाने वाली बात उन्होंने ऐसे ही कह दी थी- बुरा न मानो होली है! जैसे उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म छोड़ने के बारे में कह दिया कि वे इसे नहीं छोड़ रहे हैं, सिर्फ आठ मार्च को महिला दिवस के दिन अपना सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म महिलाओं को सौंप देंगे। वैसे भी भारत में होली के मौके पर बहुत मजाक होते रहते हैं। कोरोना वायरस को लेकर भी मजाक बन गया है। कोई कह रह है कि ‘यह ज्यादा दिन नहीं टिकेगा क्योंकि मेड इन चाइना’ है तो किसी ने कहा कि ‘कभी सोचा नहीं था कि मौत भी मेड इन चाइना होगी’। यह बड़ा व्यंग्य है पर होली में सब चलता है। बहरहाल, कोरोना वायरस के खतरे की वजह से होली नहीं मनाने और लोगों को भी सामूहिक जमावड़े से दूर रहने की सलाह देने वाली बात इसलिए हैरान करने वाली है क्योंकि अगर किसी भी बीमारी के संक्रमण का खतरा होता है तो लोगों को त्योहार मनाने से रोकना सबसे आखिरी बात होनी चाहिए। आखिर सामूहिक रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में भी एक किस्म की निजता होती है और लोग बहुत नजदीकी समूह में ही त्योहार मनाते हैं। तभी होली की बजाय सबसे पहले तो सरकार को यह ऐलान करना चाहिए था कि संसद का बजट सत्र स्थगित किया जाता है। आखिर संसद के दोनों सदनों में आठ सौ माननीय सदस्य इकट्ठा होते हैं, दो हजार के करीब कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी होते हैं, सैकड़ों पत्रकार संसद की कार्यवाही कवर करते हैं और सैकड़ों पूर्व सांसद भी सेंट्रल हॉल में बैठ कर टाइम पास करने आते हैं। आखिर इतनी संख्या में देश के माननीय लोगों की जान की भी तो कोई कीमत होनी चाहिए! अगर खतरा सचमुच इतना बड़ा है कि होली से छह दिन पहले यह ऐलान करना पड़े कि होली के मौके पर सामूहिक रूप से इकट्ठा नहीं हों तो ऐसा ऐलान हर सामूहिक गतिविधि के लिए होना चाहिए और साथ ही भीड़भाड़ वाली सारी जगहों के लिए भी होना चाहिए। पर अभी ऐसा कोई ऐलान नहीं किया गया है। बाकी सारे काम रूटीन से हो रहे हैं। स्कूल-कॉलेज खुले हैं। दफ्तरों में कामकाज सुचारू रूप से हो रहा है। भारतीय रेल रूटीन के अंदाज में हर दिन दो करोड़ों लोगों को यात्रा करा रही है। वायु सेवा निर्बाध रूप से जारी है। दिल्ली और देश के कई शहरों की लाइफ लाइन बनी मेट्रो का संचालन पूर्ववत चल रहा है। सिनेमाघर चल रहे हैं और नई फिल्में रिलीज हो रही हैं। बड़े शहरों के मॉल लोगों की भीड़ से भरे हैं, जिनमें कुछ लोग मास्क लगाए भी मिल जाएंगे, बिना यह जाने की उनका मास्क उनको कोरोना वायरस से सुरक्षा नहीं दे रहा है। तभी सवाल है कि जब सब कुछ पहले की तरह रूटीन में चल रहा है तो फिर होली से दूरी बनाने का क्या मतलब है? वैसे भी होली ज्यादा जोर-शोर से उत्तर भारत में ही मनाई जाती है। पूर्वोत्तर में और दक्षिण भारत के ज्यादातर हिस्सों में वैसी सामूहिकता के साथ होली नहीं मनाई जाती है, जैसे उत्तर भारत में मनाई जाती है। जबकि कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा देश के दूसरे हिस्सों में भी है। अगर उत्तर भारत के लोगों के जीवन की चिंता में उनको होली से दूर रहने को कहा गया है तो दक्षिण-पश्चिमी और पूर्वोत्तर के लोगों के लिए भी तो किसी तरह से ऐसी चिंता जाहिर की जानी चाहिए? क्या वहां के लोगों के जान की कीमत कुछ कम है? या वहां के लोगों को लेकर भरोसा है कि वे कोरोना वायरस का मुकाबला कर लेंगे? असल में होली को लेकर जारी की गई अघोषित एडवाइजरी से एक गलत मिसाल कायम हुई है और इससे लोगों के अंदर खौफ पैदा हुआ है सो अलग है। लोगों को यह चिंता हुई है कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री होली खेलने से मना कर रहे हैं तो जरूर कोई बड़ा खतरा होगा। इस डर और चिंता का असर सिर्फ होली के त्योहार पर नहीं होगा, बल्कि रोजमर्रा के जीवन पर भी होगा। लोग बेवजह डरेंगे। कामकाज ठप्प होगा। सामान्य वायरल इंफेक्शन को लेकर भी चिंता में आएंगे। डॉक्टरों के यहां भीड़ बढ़ेगी। दवाओं की बिक्री बढ़ेगी और होली से जुड़े सामानों की बिक्री कम होगी। सोचें, जिन कारोबारियों होली के रंग, गुलाल, पिचकारी, मिठाई आदि से पूरे साल की कमाई की सोची होगी, उनका क्या होगा? पहले से बुरी हालत में पहुंची अर्थव्यवस्था को त्योहारी खरीद-बिक्री से थोड़ी राहत मिल सकती थी, अब उसकी संभावना भी खत्म हो गई है। प्रधानमंत्री के ट्विट से ज्यादा खौफ और चिंता इसलिए भी पैदा हुई है क्योंकि भारत का मामला चीन से बहुत अलग है। चीन में सिर्फ हुबेई प्रांत और उसका भी राजधानी शहर वुहान ही कोरोना वायरस से संक्रमित हुआ है। सो, चीन ने डेढ़ करोड़ की आबादी वाले इस शहर को पूरी तरह से बंद करके हालात पर बहुत हद तक काबू पा लिया। पर भारत में तो अगर इस वायरस का संक्रमण होता है तो उसका दायरा बहुत बड़ा हो सकता है। ध्यान रहे भारत में केरल से लेकर दिल्ली-एनसीआर और जयपुर से लेकर हैदराबाद तक इस वायरस से संक्रमित मरीज मिले हैं। सरकार कहां-कहां लॉक डाउन कराएगी? तभी खौफ और चिंता पैदा करने के बजाय लोगों को जागरूक करना और चिकित्सा व्यवस्था को बेहतर करना ज्यादा जरूरी है।
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