प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी जोखिम ली है। अब वे 2022 का गुजरात विधानसभा चुनाव तभी जीत पाएंगे जब कांग्रेस और आप दोनों एक-दूसरे के वोट काटने वाली राजनीति करें। यदि गुजरात में कांग्रेस और आप में तनिक भी तालमेल हुआ और प्रशांत किशोर ने इसका मैनेजमेंट बनवाया तो अनिवार्यतः भाजपा हारेगी। आप की ताकत अब गुजरात में भाजपा की जीत-हार में निर्णायक होगी। गुजरात के जानकारों-संपादक-मालिकों की मानें तो गुजरात में नए मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल संजीदा-गंभीर मिजाज के हैं लेकिन पटेलों व खासकर सौराष्ट्र के पटेलों में मतलब नहीं रखते हैं। न प्रशासनिक अनुभव है। सो, नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत और झारखंड में रघुवर दास को मुख्यमंत्री बनाने का जो प्रयोग किया था उसका मिलाजुला रूप भूपेंद्र पटेल हैं। इन दोनों सीएम के साथ कैबिनेट में फिर भी अनुभवी लोग थे, जिससे प्रशासनिक धमक बनी। लेकिन गुजरात में पूरा कैबिनेट ही बिना प्रशासनिक अनुभव के है तो अफसरों की मनमानी, कामचोरी जमकर होगी। यों, राज प्रधानमंत्री दफ्तर और गांधीनगर में नरेंद्र मोदी के पुराने जानकार अफसरों की सलाह से चलेगा लेकिन गुजरात में कोरोना वायरस की महामारी की भयावहता से पहले ही जाहिर है कि वहां के अफसरों में संवेदना, चिंता और राजनीतिक हित साधना खत्म है। गुजरात में प्रशासकीय व्यवस्था में अफसर सिर्फ मंत्रियों की हां में हां मिला अपना उल्लू साधते हुए हैं। All-New Cabinet In Gujarat
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ऐसे में नए सीएम, नए मंत्रियों का जमीनी असर, जातीय असर अपने-अपने विधानसभा इलाकों में सिमटा रहेगा। ये रिमोट से चलेंगे। जैसे त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनका कैबिनेट लोकप्रियता के सर्वे में फेल था वैसे विजय रुपाणी फेल माने गए तो अकेला जिम्मेवार कारण इनका रिमोट कंट्रोल से संचालन था। विजय रुपाणी को बनाने वाले उनके गॉडफादर अमित शाह थे तो भूपेंद्र पटेल का रिमोट आनंदी बेन पटेल और नरेंद्र मोदी के हाथों में होगा। हां, विजय रुपाणी की छुट्टी का कारण पटेलों की नाराजगी के साथ आनंदीबेन पटेल की पहले दिन से नाराजगी का भी है। गुजरात में हर सियासी जानकार जानता है कि आनंदीबेन पटेल और अमित शाह में हमेशा खुन्नस रही। मौका आने पर पटेल आंदोलन के बहाने जमीन तैयार करके अमित शाह ने आनंदीबेन की छुट्टी करा अपने नंबर एक करीबी विजय रुपाणी को मुख्यमंत्री बनवाया। और वक्त का कमाल जो पटेलों की नाराजगी के ही हवाले गांधीनगर की सत्ता से विजय रुपाणी का तख्ता पलट हुआ और आनंदीबेन के खास भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री बने।
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उस नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सौ टका नया कैबिनेट बनाने का एक्शन गजब है। संघ परिवार, भाजपा में किसी तरह की कोई सलाह, विचार और निर्णय नहीं। अकेले नरेंद्र मोदी का फैसला। इससे उन्हें कई फायदे हैं। एक, भाजपा के सभी मंत्रियों, नेताओं, मुख्यमंत्रियों को दो टूक मैसेज कि वे अकेले सर्वेसर्वा। पुराने मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों की इनिंग जल्द खत्म होने वाली। सन् 2024 का चुनाव जीतने के बाद वे एकदम नए चेहरों की कैबिनेट बनाएंगे। वे अकेले चाणक्य, चुनाव लड़वाने वाले और मुख्यमंत्री-कैबिनेट नियुक्त और बरखास्त करने वाले।
इस एप्रोच का देश की राजनीति के सिलसिले में भी अर्थ है। एक, लोगों कांग्रेस और राहुल गांधी से उनकी तुलना करें। जहां राहुल गांधी में दम नहीं जो पुरानी पीढ़ी की जगह नई पीढ़ी, नए चेहरों को लाएं वहीं नरेंद्र मोदी ने एक झटके में पूरी कैबिनेट नई बनवा डाली। वे झटका राजनीति करते हैं जबकि राहुल और कांग्रेस में हलाल राजनीति की भी हिम्मत नहीं। दूसरा अर्थ भाजपा के भीतर नरेंद्र मोदी वैसे ही बिजली कड़काते हुए हैं, जैसे इंदिरा गांधी ने एक वक्त कांग्रेस में कड़काई थी।
मैं यह बात पहले भी लिखता रहा हूं और गुजरात के ताजा वाकये से फिर नोट रखें कि नरेंद्र मोदी के बाद भाजपा-संघ परिवार का वहीं भविष्य है जो आज कांग्रेस का है। इंदिरा गांधी ने क्षत्रपों, जमीनी अनुभवों में पके नेताओं को खत्म करके कांग्रेस को बीस सालों में हर तरह से खोखला बना डाला था। कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टी आज राहुल गांधी के हाथों में जिस दशा में है तो उसका कारण इंदिरा गांधी के बोये हुए बीज हैं। वहीं दशा दस साल बाद भाजपा की होगी। जब हिंदू राजनीति का ज्वार उतरेगा, लोगों की तकलीफों का विस्फोट होगा तो प्रदेश-जिलों में भाजपा के पास न जनाधार वाले नेता होंगे और न जातीय नेता।
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बहरहाल, सवाल है गुजरात के आगामी चुनाव के नाते इस परिवर्तन का क्या अर्थ? नई सरकार से पटेल वोटों को ले कर एक जातीय मैसेज बनता है। पर पुराने धाकड़ पटेल मंत्रियों की छुट्टी का उलटा असर भी संभव है। विजय रुपाणी की बेटी भी जब अपने पिता के साथ हुए व्यवहार की व्यथा व्यक्त करने से अपने को रोक नहीं पाई तो कल्पना करें कि बरखास्त जैसे अपमानित में मंत्रियों, भाजपाई नेताओं के मन में क्या चलेगा? सबको समझ आ रहा होगा कि विधानसभा चुनाव में भी मौजूदा-पुराने विधायकों-मंत्रियों के थोक में टिकट कटेंगे।
तभी गुजरात में आप पार्टी का भविष्य लगता है। फिलहाल यह नरेंद्र मोदी की रणनीति के लिए वैसे ही फायदेमंद होगी जैसे यूपी में ओवैसी के चुनाव लड़ने से होना है। गुजरात में नरेंद्र मोदी विरोधी वोट आप और कांग्रेस पार्टी में जमकर बटेंगे। और नरेंद्र मोदी फिर विरोधियों की ही राजनीति से मुकद्दर के सिकंदर साबित होंगे।
गुजरात का जुआ हार वाला!
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