बेबाक विचार

बदहाली का एक नमूना

ByNI Editorial,
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बदहाली का एक नमूना
भारत में इस समय ऐसी कई भर्ती परीक्षाएं हैं, जो धांधली के आरोपों के चलते अटकी हुई हैं। उन्हीं में यूपी में दारोगा भर्ती परीक्षा भी है। बेशक, इसमें धांधली के आरोप का सच सामने आना चाहिए। लेकिन, ऐसा होने की संभावना कम है, क्योंकि ऐसी बातें फिलहाल देश के एजेंडे पर नहीं हैं।  चूंकि आज के दौर में मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए आम लोगों की मुश्किलें महत्त्वपूर्ण खबर नहीं हैं, इसलिए ऐसी खबरें अक्सर चर्चा में नहीं आतीं। जबकि ये मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। इस बात की एक मिसाल पर गौर कीजिए। उत्तर प्रदेश में दारोगा भर्ती परीक्षा के अभ्यर्थी पिछले एक महीने से ज्यादा समय से लखनऊ में प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका आरोप है कि दारोगा भर्ती परीक्षा में धांधली हुई है और इसकी जांच कराई जाए। लेकिन देश तो छोड़िए, यह उत्तर प्रदेश के भी मीडिया और सियासी हलकों में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि भारत में इस समय ऐसी कई भर्ती परीक्षाएं हैं, जो धांधली के आरोपों के चलते अटकी हुई हैं। उत्तर प्रदेश में दारोगा भर्ती परीक्षा में धांधली के मामले में भी अब तक दर्जनों लोग गिरफ्तार हो चुके हैं। लेकिन परीक्षा रद्द नहीं की गई है। इसी वजह से लखनऊ के इकोगार्डन मैदान में पिछले करीब एक महीने से सैकड़ों छात्र हाथों में कई तरह के बैनर लिए धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मांग है कि पिछले साल हुई एसआई यानी दारोगा भर्ती परीक्षा में हुई कथित धांधली की जांच हो और परीक्षा रद्द की जाए। इस हफ्ते मंगलवार को छात्रों ने लखनऊ पहुंच कर यूपी पुलिस भर्ती बोर्ड के दफ्तर के सामने प्रदर्शन किया। वे विधानसभा तक पहुंचना चाहते थे। लेकिन पुलिस बल का प्रयोग करके उन्हें खदेड़ दिया गया। जबकि अभ्यर्थियों के आरोप बेहद गंभीर हैँ। उनका कहना है कि राज्य सरकार ने एनएसआईईटी नाम की उस एजेंसी को ऑनलाइन परीक्षा कराने की जिम्मेदारी दी, जो मध्य प्रदेश समेत देश के छह राज्यों में ब्लैक लिस्टेड है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस कंपनी पर साढ़े तीन करोड़ का जुर्माना भी लगाया है। इसके बावजूद यूपी में इसी एजेंसी को दारोगा भर्ती परीक्षा की जिम्मेदारी दे दी गई। तो इस आरोप में दम है कि भ्रष्टाचार में लिप्त कंपनी को परीक्षा की जिम्मेदारी देने का साफ मतलब है कि इसमें बड़े स्तर के अधिकारी भी शामिल हैं। बेशक, इस कथित धांधली का पर्दाफाश होना चाहिए। लेकिन, ऐसा होने की संभावना कम है, क्योंकि ऐसी बातें फिलहाल देश के एजेंडे पर नहीं हैं।
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