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ऐसा विकास किस काम का?

आम दिनों से लेकर महामारी जैसे संकट के दिनों में अगर कोई समाज अपने युवाओं को मानसिक सहारा नहीं दे पाए और उनमें जिंदगी के प्रति उम्मीद को बरकरार नहीं रख पाए, तो उसे अवश्य ही अपने भीतर गहरे झांकने की जरूरत है।

अमेरिका दुनिया का एक विकसित देश है। धनी होने के मामले में आज भी उसका कोई सानी नहीं है। इसके बावजूद अमेरिकी समाज में निराशा फैलने का आलम यह है कि कम उम्र लड़कियों में आत्म-हत्या की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। वहां की मशहूर सरकारी स्वास्थ्य संस्था सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) के एक सर्वे के मुताबिक 2021 में उन किशोर उम्र लड़कियों की संख्या में काफी इजाफा हुआ, जिन्होंने या तो खुदकुशी करने के बारे में सोचा या सचमुच इसका प्रयास किया। 2021 में कोरोना महामारी का काफी असर था। संभव है कि उसका नौजवानों की दिमागी सेहत पर बहुत खराब प्रभाव पड़ा हो। लेकिन यह भी गौर करने लायक है कि महामारी के पहले भी आत्म-हत्या के बारे में सोचने या उसका प्रयास करने वाली लड़कियों की संख्या काफी कम नहीं थी।

सीडीसी हर दो साल पर यूथ रिस्क बिवेवियर सर्वे करता ह। उसमें नौजवानों से उनकी यौन गतिविधियों, मादक पदार्थ सेवन और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े सवाल पूछे जाते हैँ। 2021 में उसने अपने इस सर्वे का दायरा बढ़ाया। 2019 में जहां इस सर्वे में 13,677 छात्रों को शामिल किया गया था, वहीं 2021 में 17,232 छात्रों को इसमें शामिल किया गया। इससे सामने आया कि नौवीं से 12वीं कक्षा में पढ़ने वाली 30 प्रतिशत छात्राओं ने 2021 में आत्म-हत्या करने के बारे में गंभीरता सोचा। 2019 के सर्वे में यह आंकड़ा 24.1 प्रतिशत था। जिन छात्राओं ने खुदकुशी की योजना बनाई, उनकी संख्या 2019 में 19.9 प्रतिशत थी, जो दो साल बाद 23.6 प्रतिशत हो गई। जिन छात्राओं ने सचमुच खुदकुशी की कोशिश की, उनकी संख्या 11 से बढ़ कर 13.2 प्रतिशत हो गई। सर्वे से सामने आया कि 2021 में आम तौर पर युवाओं की मानसिक सेहत बिगड़ी। क्या ये आंकड़े अमेरिकी समाज पर एक सवाल नहीं हैं? आम दिनों से लेकर महामारी जैसे संकट के दिनों में अगर कोई समाज अपने युवाओं को मानसिक सहारा नहीं दे पाए और उनमें जिंदगी के प्रति उम्मीद को बरकरार नहीं रख पाए, तो उसे अवश्य ही अपने भीतर गहरे झांकने की जरूरत है।

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