बेबाक विचार

अमेरिका का मकसद

ByNI Editorial,
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अमेरिका का मकसद
Anthony Blinken India visit वहां हुई बातचीत में अमेरिका ने हांगकांग, शिनजियांग, तिब्बत और ताइवान के मुद्दों पर बात की। लेकिन लद्दाख में चीन का कब्जा उसके एजेंडे में नहीं था। उसके पहले अफगानिस्तान के मसले पर अमेरिका ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ मिल कर एक अलग चतुर्गुट बना लिया। अमेरिका के विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन की भारत यात्रा के पहले अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने औपचारिक बयान में कहा कि ब्लिंकेन भारत में मानव अधिकार के मुद्दे उठाएंगे। एक खबर में इस बात का स्पष्ट जिक्र था कि वे नागरिकता संशोधन कानून (सीसीए) का मसला भारत सरकार के सामने उठाएंगे। लेकिन इसके पहले की दो घटनाओं पर गौर करें। ब्लिंकेन की भारत यात्रा से ठीक पहले अमेरिका उप विदेश मंत्री वेंडी शरमन चीन की यात्रा पर गईं। वहां हुई बातचीत में उन्होंने हांगकांग, शिनजियांग, तिब्बत और ताइवान के मुद्दों पर बात की। लेकिन लद्दाख में चीन का कब्जा उनके एजेंडे में नहीं था। उसके पहले ये खबर आ चुकी थी कि अफगानिस्तान के मसले पर अमेरिका ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ मिल कर एक अलग चतुर्गुट (क्वैड) बना लिया है। अब ये बात तो जग-जाहिर है कि अफगानिस्तान में भारत और पाकिस्तान के हित एक दूसरे विरोधी हैं। तो जिस गुट में पाकिस्तान होगा, वहां भारतीय हितों की अनदेखी या नुकसान पहुंचाने की कोशिश होगी, ये अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। Read also उफ! ऐसा इतिहास, कैसे क्या? लेकिन ये साफ है कि अमेरिका को इसकी परवाह नहीं है। इसीलिए ब्लिंकेन की भारत का यात्रा एजेंडा समस्याग्रस्त था। कूटनीतिक हलकों में ये चर्चा थी कि मानव अधिकार जैसे मुद्दे घरेलू जनमत को बहलाने के लिए हैँ। असल में ब्लिंकेन का यहां एजेंडा चीन विरोधी चतुर्गुट (जिसमें भारत और अमेरिका के अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया भी हैं) को और ठोस रूप देना था। लेकिन भारत के लिए विचारणीय प्रश्न यह है कि जब चीन के खिलाफ भारतीय अमेरिकी चिंता का विषय नहीं हैं, तो क्या चीन विरोधी क्वैड का मतलब एशिया- प्रशांत क्षेत्र में सिर्फ अमेरिकी हितों को आगे बढ़ाना है? अगर ऐसा है, तो क्या यह नहीं समझा जाएगा कि भारत अपने हित साधने की अमेरिकी कोशिशों में खुद को इस्तेमाल होने दे रहा है? ये बात भी गौरतलब है कि अमेरिका चीन की शर्तों को लगभग स्वीकार करते हुए उससे बातचीत कर रहा है। जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद अमेरिकी राज्य अलास्का में हुई बातचीत में चीन ने बराबरी के स्तर जाकर अमेरिका को खरी-खोटी सुनाई थी। वेंडी शरमन को भी ऐसी बातें सुननी पड़ीं। मगर बाइडेन प्रशासन चीन के मामले में प्रतिस्पर्धा और संपर्क की दोहरी नीति पर चल रहा है। तो ये सवाल उठेगा कि क्या भारत को भी अपने हितों को सर्वोच्च रखते हुए आगे फूंक-फूंक कर कदम नहीं उठाना चाहिए?
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