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22 साल बाद भारत में एपल दुकान!

18 अप्रैल को भारत ने जश्न मनाया।नौजवानों, आईटी के लोगों, अमीर और कुलीन सब मुंबई में खुले एपल के पहले स्टोर का ‘अनुभव’ करने पहुंचे। उमंग, जोश से उमड़ी भीड़ में कुछनौजवान खुशी में भावविह्ल तो कई टिम कुक के साथ सेल्फी खिचवाने की हौड में। खूब वाहवाही और शोर-शराबा।

हां,भारत में एपल के पहले स्टोर की शुरूआत देश के लिए एक बड़ी घटना है, गर्व का क्षण है।

लेकिन क्या यह वाकई बड़ी घटना है? क्या वाकई देश को गौरवान्वित अनुभव करना चाहिए? क्या यह ‘उपलब्धि’ चुनाव प्रचार में गिनवाई जाएगी? सच पूछा जाए तो इसमें गर्व करने जैसा कुछ भी नहीं है।सोचे, दुनिया में हमारा दावा है कि चीन के बाद भारत सबसे प्रमुख विकासशील देश है। परन्तु एपल भारत से पहले 25 अन्य देशों में अपने स्टोर खोल चुका है और मुंबई का स्टोर दुनिया में उसका 524वां स्टोर है।

अमेरिका में पहला स्टोर कोई 22 साल पहले और चीन में 15 साल पहले (सन् 2008 में बीजिंग में) खुला था। उसके बाद से चीन में 45 और स्टोर खुल चुके हैं। और भारत में दूसरा स्टोर आज दिल्ली में खुलने जा रहा है।

चीन एपल का सबसे वफादार और विश्वसनीय भागीदार था। एपल और चीन के दो दशक लम्बे सम्बन्ध दोनों के लिए फायदे का सौदा था। इससे दोनों की प्रगति हुई और दोनों की जेबें भरीं। एपल की आमदनी दिन दूनी-रात चौगुनी बढी, उसके शेयर की कीमत 600 गुना हो गई और कंपनी का बाजार मूल्य 2,400 अरब डालर पर जा पहुँचा। एपल चीन में स्थित अपने कारखानों से सप्लाई करता रहा है। वहा उसके 90 प्रतिशत उत्पाद बनाए जाते हैं। उसकी कमाई का चौथाई हिस्सा चीनी ग्राहकों से आता है।

टिम कुक, जो सन् 2011 में कंपनी के सीईओ बनने के पहले उसके हेड ऑफ आपरेशन्स थे, ने कंपनी में कॉन्ट्रैक्ट पर आधारित उत्पादन की शुरुआत की थी। कुक अक्सर चीन जाते थे। उन्होंने वहां की सरकार के साथ मधुर संबंध बनाए और कायम रखे।

लेकिन अब समस्या यह है कि पिछले कुछ समय से चीन एक आक्रामक और बेरहम शेर बन गया है, जिसे काबू में रखना मुश्किल होता जा रहा है। इसलिए चीन से नाता तोड़कर भारत और वियतनाम से नाता जोड़ना रणनीतिक दृष्टि से एपल के लिए ज़रूरी हो गया था।

अमरीका और चीन के बीच बढ़ते तनाव के कारण भी चीन में व्यापार करना मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा उत्पादन लागत कम करना भी एपल एक लक्ष्य है। पिछले एक दशक में चीन में औसत वेतन दुगना हो गया है। सन् 2020 में उत्पादन इकाईयों में काम करने वाला चीनी महीने में औसतन 530 डालर कमाता था, जो भारत या वियतनाम की तुलना में लगभग दो गुना है। इन सारे कारणों से ही कंपनी ने हाल में अपनी उत्पादन इकाईयां दक्षिण भारत और वियतनाम में लगाई है।

फोक्स्कोन नामक एक ताईवानी कंपनी, जो 2017 से एपल का पुराना फ़ोन बना रही थी, को अब सबसे नए मॉडल आईफ़ोन 14 को बनाने का ठेका मिला है। एक अन्य ताईवानी कंपनी पेगाट्रोन का विशाल कारखाना भी एपल के उत्पाद बनाने की तैयारी में है। फ़िनलैंड की कंपनी सल्कोम्प भी एपल से जुड़ने जा रही है। जेपी मॉर्गन चेज़ एंड कंपनी के अनुसार 2025 तक एपल के 25 प्रतिशत उत्पाद चीन से बाहर बनाए जाएंगे।

बेशक आप कह सकते हैं कि ये असल कारण नहीं हैं। असल में तो एपल भारत इसलिए आया है क्योंकि यहाँ व्यापार और उत्पादन करना आसान है। आखिर ‘ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस’ इंडेक्स में भारत 2014 में 142वें स्थान से ऊपर चढ़कर 2019 में 63वें स्थान पर पहुँच गया है। परन्तु क्या सचमुच भारत में बिज़नेस करना ईज़ी है? कम से कम विदेशी कंपनियों के लिए तो ऐसा कतई नहीं है। भारत में उनके साथ निष्पक्ष व्यवहार नहीं होता। इसका एक उदाहरण है वोडाफ़ोन। इस कंपनी ने भारत में 20 अरब डॉलर का व्यापार किया परन्तु उससे पुरानी तारीख से भारी रकम टैक्स के रूप में मांगी गई, ऐसे नियम बनाए गए जो उसके लिए नुकसानदायक थे और हाल में स्पेक्ट्रम के नाम पर वसूली की गई। अमेज़न और वालमार्ट ने भारत में 20 अरब डॉलर से भी ज्यादा निवेश किया परन्तु ई-कॉमर्स नियमों में 2019 में ऐसे संशोधन किए गए है जिससे उनके लिए स्टॉक पर अपना स्वामित्व नियंत्रण बनाए रखना मुश्किल हो गया। एक निवेश फर्म मार्सेलस के अनुसार, भारत में कॉर्पोरेट कंपनियों के कुल मुनाफे का 70 प्रतिशत शीर्ष की 20 कंपनियों के हिस्से में जाता है और इनमें से केवल एक विदेशी है। प्रधानमंत्री मोदी यद्यपि विदेशी कंपनियों के साथ व्यावसायिक रिश्ते मज़बूत बनाने की बात करते रहे हैं और यह भी कहते रहे हैं कि भारत वैश्विक सप्लाई चेन का हिस्सा बनना चाहता है वही’मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ उनकी प्रिय परियोजनाएं हैं।

बहरहाल, चलिए, हम भी खुश हो लें कि एपल भारत आया तो। उसी तरह जैसे लुई विटान और शेनेल यहाँ आए थे।विदेशी सामान के स्टोर भले ही खुल गए है परन्तु यदि आपको ऐसा लगता है कि इससे भारत में आईफ़ोन सस्ते हो जाएंगे तो आप भ्रम में हैं। एपल फ़ोन को भारत में असेम्बल तो किया जायेगा परन्तु जो पुर्जे उसमें इस्तेमाल होंगे उनमें से अधिकांश यहाँ नहीं बनेंगे। इसलिए उत्पादन लगत कम नहीं होगी। पहले की तरह, आईफ़ोन एक बहुत छोटे तबके की पहुँच में ही रहेगा। संभवतः टिम कुक प्रधानमंत्री मोदी से मिलेंगे और भारत की कुख्यात लालफीताशाही और कस्टम और वीसा से सम्बंधित समस्याओं पर चर्चा करेंगे। मोदीजी भले ही उन्हें कुछ भी आश्वासन दें – या न दें – पर यह तय है कि आपको एपल के उत्पाद दुबई या सिंगापुर से ही हासिल करने होंगें, वहा ये सस्ते मिलते है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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