बेबाक विचार

राज्यपाल की विवादित भूमिका

ByNI Editorial,
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राज्यपाल की विवादित भूमिका
सियासी स्तर पर देखें तो नागरिकता संशोधन कानून विरोधी आंदोलन का प्रमुख केरल बना हुआ है। राज्य की वाम मोर्चा सरकार ने पहली ऐसी राज्य सरकार बनी, जिसने विधान सभा में इस कानून के खिलाफ प्रस्ताव पास कराया। वो पहली सरकार बनी, जो इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची। अब केरल विधान सभा पहला सदन बना है, जहां इस मुद्दे पर राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच टकराव हुआ। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने सदन में वाम सरकार का अपना नीतिगत अभिभाषण देते हुए राज्य विधानसभा द्वारा पारित संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) विरोधी प्रस्ताव के संदर्भों को पढ़ा। जबकि पहले उन्होंने कहा था कि वो इस हिस्से को नहीं पढ़ेंगे। जब वे अभिभाषण पढ़ने आ रहे थे, तो उस दौरान केरल में विपक्षी दल कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ विधायकों ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का रास्ता रोका। उन्होंने नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ ‘वापस जाओ’ के नारे लगाए तथा बैनर दिखाए। विधानसभा से पारित प्रस्ताव और कानून के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने के कदम को लेकर राज्य सरकार के साथ टकराव रखने वाले खान ने कहा कि हालांकि उनकी इस विषय पर ‘आपत्तियां और असहमति’ है, लेकिन मुख्यमंत्री की इच्छा का ‘सम्मान’ करते हुए वे नीतिगत संबोधन के 18वें पैराग्राफ को पढ़ेंगे। पैराग्राफ 18 सीएए विरोधी प्रस्ताव से संबंधित है। उन्होंने कहा- ‘मैं यह पैरा पढ़ने जा रहा हूं, क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री चाहते हैं कि मैं यह पढूं। हालांकि मेरी यह राय है कि यह नीति या कार्यक्रम की परिभाषा के तहत नहीं आता है।’ राज्य सरकार के सीएए विरोधी रुख भरे संदर्भों को पढ़ते हुए उन्होंने कहा- ‘हमारी नागरिकता धर्म के आधार पर नहीं हो सकती, क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ है, जो कि हमारे संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। केरल विधानसभा ने सीएए 2019 को रद्द करने का केंद्र से अनुरोध करते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया। मेरी सरकार को लगता है कि यह कानून हमारे संविधान में प्रदत्त प्रमुख सिद्धांतों के खिलाफ है।’ इस राज्यपाल ने अपना कर्त्तव्य निभाया। संभवतः उनके पास ये विकल्प नहीं था कि राज्य मंत्रिमंडल द्वारा तैयार भाषण को वो ना पढ़ें। लेकिन ये पढ़ने के क्रम में उन्होंने अवांछित विवाद पैदा किया। इससे सत्ताधारी दल में उनका नंबर बढ़ा होगा। मगर इससे केंद्र-राज्य संबंधों और राज्यपाल पद की गरिमा पर उठते सवाल और गहरे हो गए।
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