यह बात किसी तर्क से गले नहीं उतरती कि केजरीवाल ने “तुच्छ” याचिका के जरिए कोर्ट का समय खराब किया। इसके बावजूद हाई कोर्ट ने ना सिर्फ सीआईसी के आदेश को रद्द कर दिया, बल्कि केजरीवाल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया।
गुजरात हाई कोर्ट का फैसला हैरान करने वाला है। यह तथ्य गौरतलब है कि प्रधानमंत्री की शैक्षिक डिग्री मांगने के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हाई कोर्ट नहीं गए थे। केजरीवाल ने अर्जी केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के पास दी। सीआईसी ने केजरीवाल की अर्जी को वाजिब माना और संबंधित यूनिवर्सिटी से प्रधानमंत्री की डिग्री याचिकाकर्ता को देने को कहा। केजरीवाल की भूमिका यहीं थम गई। हाई कोर्ट का दरवाजा यूनिवर्सिटी ने खटखटाया। उसने सीआईसी के आदेश को चुनौती दी। इस क्रम में केजरीवाल को दूसरा प्रतिवादी जरूर बनाया गया। लेकिन यह बात किसी तर्क से गले नहीं उतरती कि केजरीवाल ने “तुच्छ” याचिका के जरिए कोर्ट का समय खराब किया। इसके बावजूद हाई कोर्ट ने ना सिर्फ सीआईसी के आदेश को रद्द कर दिया, बल्कि केजरीवाल पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगा दिया। इस लिहाज से उचित तो यह होता कि कोर्ट सीआईसी पर भी जुर्माना लगाता! आखिर यूनिवर्सिटी को डिग्री उपलब्ध कराने का आदेश तो सीआईसी ने दिया था! प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर बहस अलग है।
भारतीय संविधान कम पढ़े-लिखे और अति विद्वान में फर्क नहीं करता। दरअसल, ऐसी मिसालें हैं, जब औपचारिक शिक्षा ना होने के बावजूद अनेक व्यक्तियों ने इतिहास पर अपनी छाप छोड़ी। इसलिए केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के पढ़े-लिखे होने को लेकर जो बहस छेड़ी है, उस पर उनसे असहमत होने के भी पर्याप्त तर्क मौजूद हैं। लेकिन किसी डिग्री या किसी शैक्षिक स्थिति को छिपाने का कोई तर्क नहीं हो सकता। खास कर उस व्यक्ति के लिए जो सार्वजनिक जीवन में हो। बल्कि बेहतर यह होता कि प्रधानमंत्री की डिग्री को लेकर सच सार्वजनिक करते हुए इस बहस को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाता। जबकि अब केजरीवाल और उनकी पार्टी को यह कहने का मौका मिला है कि प्रधानमंत्री के अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा होने संबंधी उनका दावा सच साबित हो गया है! बहरहाल, बिना इस सियासी बहस में जाते हुए भी यह अवश्य कहा जाएगा कि हाई कोर्ट का फैसला समस्याग्रस्त है और उससे न्यायपालिका के बारे में फैल भ्रम और मजबूत होंगे।