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सावधान! हीट वेव को हल्के में न ले

गर्मियों का मौसम शुरू है और इस वर्ष यह कतई नार्मल नहीं होगा। तैयार हो जाए हीट वेव के लिए। पिछले सप्ताह तक  बारिश, ओलावृष्टि और आंधी के बेमौसम दौर से तापमान ठिकठाक रहा। लेकिन अब दिन-प्रतिदिन तापमान बढ़ता हुआ है।  मौसम विभाग की चेतावनी है कि अगले पांच दिनों में गर्मी और बढ़ेगी। मौसम संबंधी एप्स की माने तो अगले एक हफ्ते में तापमान 40 डिग्री तक जा सकता है। बताया जा रहा है कि इस साल गर्मी ज्यादा पड़ेगी, बहुत ज्यादा।हमें ग्लोबल वार्मिंग के खतरनाक दुष्परिणाम भोगने होंगे।इसी गर्मी में पूत के पांव पालने में दिखलाई पड़ेंगे।

इस साल की फरवरी,1901 के बाद की सबसे गर्म फरवरी थी। वही मार्च में जितनी बारिश हुई, उतनी पिछले सौ सालों में कभी नहीं हुई।अब अप्रैल से भारत के मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र की चेतावनी है कि तीन महीने का गर्मी का मौसम बहुत कष्टदायी होगा। पिछले साल भी हीट वेव तकलीफदेह रही थी। उसने दुनिया भर में गेंहू की आपूर्ति को प्रभावित किया था। इस बार भारत के मौसम के पूर्वानुमान की ओर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। छह मार्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में गर्मी से निपटने की तैयारियों की समीक्षा बैठक आयोजित हुई। ऊर्जा मंत्रालय भी जरूरी कदम उठा रहा है। उसने बिजलीघरों को कोयले का आयात करने का निर्देश दिया है। कोयला भारत में बिजली उत्पादन का प्रमुख साधन है और कोयले का घरेलू उत्पादन संभवतः मांग की पूर्ति नहीं कर पाएगा।

परन्तु सारी तैयारियों के बावजूद आने वाले दिन कष्टकारी होने वाले हैं।

विश्व बैंक द्वारा नवंबर में जारी एक रपट में चेतावनी दी गई थी कि भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक बन सकता है जहां वेट बल्ब टेम्परेचर 35 डिग्री सेल्सियस (जो मनुष्य की सहन करने योग्य तापमान की उच्चतम सीमा है) से ऊपर होगा। वेट बल्ब टेम्परेचर क्या है? वह धूप में खड़े होने पर मनुष्य के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को मापने का एक तरीका है। वेट बल्ब टेम्परेचर की गणना हवा के तापमान और गति, वातावरण में नमी, सूर्य के कोण और बादलों की मौजूदगी आदि को ध्यान में रख कर की जाती है। जब वेट बल्ब टेम्परेचर 35 डिग्री सेल्सियस हो जाता है तो मनुष्यों के लिए पसीने से अपने शरीर को ठंडा रखना असंभव होता है। इस तरह यह वह अधिकतम तापमान है जिस पर मनुष्य जीवित रह सकता है। कुछ घंटों तक इस तापमान का सामना करने पर स्वस्थ से स्वस्थ व्यक्ति को भी लू लगने एवं मृत्यु होने का खतरा रहता है। सन् 2010 से 2019 के बीच भारत में उसके पिछले दशक की तुलना में ग्रीष्म लहर की घटनाओं में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

सन् 2019 में प्रकाशित मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर एल्फातिह एल्ताहिर एवं उनके सहयोगियों के एक शोधप्रबंध में चेतावनी दी गई है कि भले ही विश्व ग्रीन हाउस गैसों के उर्त्सजन में कमी की दिशा में प्रगति करे किंतु दक्षिण एशिया के बड़े इलाकों को 31 डिग्री तक के वेट बल्ब टेम्परेचर का सामना करना पड़ेगा, जो कि अधिकांश मनुष्यों के लिए बहुत खतरनाक माना जाता है। एल्ताहिर का यह भी अनुमान कि पूरी दुनिया में फारस की खाड़ी ग्रीष्म लहर की दृष्टि से सबसे ख़राब क्षेत्र होगा। इसके बाद उत्तर भारत और फिर घनी आबादी वाले पूर्वी चीन का नंबर होगा। अगर कार्बन उत्सर्जन में कमी नहीं लाई गई और दुनिया वैसी ही चलती रही जैसे चल रही है तो 2071 से 2100 के बीच, करीब चार प्रतिशत आबादी को कम से एक बार छह घंटे की अवधि की मनुष्यों के लिए जानलेवा 35 डिग्री वेट बल्ब टेम्परेचर की हीट वेव का सामना करना पड़ेगा। जो शहर इस तरह की हीट वेव में जलेंगे उनमें लखनऊ और पटना जैसे बड़ी आबादी वाले नगर शामिल हैं।

भारत ने हालात से निपटने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। एक राष्ट्रव्यापी हीट एक्शन प्लान बनाया गया है। यह अहमदाबाद में सन 2013 में लागू की गई योजना पर आधारित है। ऐसा कहा जाता है कि इस योजना के अंतर्गत टेक्स्ट मैसेज भेजकर, बड़ी संख्या में पानी के प्याऊ खोल कर और लोगों को धूप में निकलने से बचने की सलाह देकर कम से कम 2000 जानें बचाई गईं थीं। इस साल यह योजना 23 राज्यों में लागू की जाएगी। सन 2017 से ही नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ कार्यशालाएं आयोजित कर उन्हें गर्मी से निपटने की समग्र योजना लागू करने के लिए कह रहा है और उन्हें यह भी बता रहा है कि इससे कैसे जानें बचाई जा सकेंगी।

इसमें कोई शक नहीं कि साल-दर-साल स्थिति और ख़राब होती जाएगी। साल-दर-साल सिन्धु-गंगा के मैदान में रहने वाली विशाल गरीब आबादी के लिए कई दिनों या कई सप्ताहों तक गर्मी के कारण जीना और मुहाल होता जायेगा। प्रो। एल्फातिह एल्ताहिर ने लिखा है कि भारत के लिए वैश्विक जलवायु परिवर्तन अब केवल अकादमिक चर्चा का विषय नहीं है, केवल एक अमूर्त खतरा नहीं है, वरन जीवन-मृत्यु का प्रश्न बन गया है।

ग्लोबल वार्मिंग अब एक वैज्ञानिक अवधारणा नहीं रह गई है। वह एक भयावह सच्चाई बन कर हमारे सामने उपस्थित है और अत्यंत कार्यकुशल और साधन-संपन्न सरकारों के लिए भी इसे आपदा में बदलने से रोकना एक चुनौती होगा।

जो हो, फिलहाल तैयारी कीजिए बहुत गर्म और बहुत परेशान करने वाली गर्मियों की। खूब पानी पिएं, अपने आप को ठंडा रखें और यदि बहुत ज़रूरी न हो तो दोपहर को बाहर न निकलें। यह ज़िन्दगी का सवाल है। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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