हिंदुओं में वैसे भी राजा को विष्णु का अवतार मानने की परंपरा है। सदियों तक माना जाता रहा है कि राजा अच्छा है इसका मतलब है कि भगवान लोगों से खुश हैं और अगर राजा अच्छा नहीं है तो इसका मतलब है कि भगवान लोगों को सजा देना चाहते हैं। भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के कई और देशों में अवतारवादी शासन या राजनीति की झलक पिछले एक दशक में दिखी है। अमेरिका में भी लोगों ने डोनाल्ड ट्रंप को अवतार माना था और उम्मीद लगाई थी कि वे अमेरिका को फिर से महान बनाएंगे। भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में कुछ दिन पहले तक राजपक्षे परिवार की भगवान की तरह पूजा होती थी। उन्होंने एलटीटीई का खात्मा किया था। लेकिन जब रोजी-रोटी और पेट पर पड़ी है तो श्रीलंका के हजारों लोग राष्ट्रपति भवन के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। रूस में व्लादिमीर पुतिन, तुर्की में एर्दोआन, फिलीपींस में दुतेर्ते, ब्राजील में बोलसोनारो, चीन में शी जिनफिंग आदि अवतारवाद के ही प्रतीक हैं। पाकिस्तान में भी इमरान खान एक अवतार के रूप में आए थे और नई राजनीति का वादा किया था। लेकिन अंत में पाकिस्तान के लोगों ने पुरानी राजनीति को ही पसंद किया है।
भारत में भी नेहरू के समय से अवतार की परंपरा रही है। बाद में इंदिरा गांधी को भी दुर्गा का अवतार बताया जाता था। अब भारत में इस राजनीति का विस्तार हो रहा है। पहले एक ही राजा अवतार माना जाता था। बाद में राज्यों के क्षत्रप भी अवतार माने जाने लगे। लोग उनकी पूजा करने लगे और उनसे आगे सोचना बंद कर दिया। यह परंपरा भी दक्षिण भारत के राज्यों में शुरू हुई लेकिन उसके बाद पूरे देश में पहुंची। नीतीश कुमार से लेकर नवीन पटनायक तक सब अवतार हैं। कोई सुशासन का अवतार है तो कोई न्याय के साथ विकास का। ममता बनर्जी भी अवतार हैं तो एमके स्टालिन भी। अरविंद केजरीवाल का भी एक कल्ट बन रहा है। देश में सबसे बड़ा कल्ट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बना है। पूरे देश और 140 करोड़ लोगों का भार उन्होंने अपनी उंगलियों पर उठाया हुआ है।
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विचारधारा या लोक लुभावन घोषणाओं की राजनीति के मुकाबले कल्ट या अवतार की राजनीति आसान होती है। इसमें सिर्फ नेता की ब्रांडिंग करनी होती है। यह भी पॉपुलिस्ट पॉलिटिक्स का ही एक तरीका है। पहले जितने नेता, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री हुए उनकी कमियों को उजागर कर उनके बरक्स अपनी अच्छाइयों या बेहतर कामों की ब्रांडिंग करके कल्ट बनाया जाता है। जैसे बिहार में लालू प्रसाद के बरक्स नीतीश कुमार का कल्ट बना। आज बिहार में आमतौर पर उनके आगे सोचा ही नहीं जा सकता है। इसी तरह उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह, मायावती और अखिलेश यादव के बरक्स योगी आदित्यनाथ का कल्ट बना है। पश्चिम बंगाल में साढ़े तीन दशक के कम्युनिस्ट शासन के बरक्स ममता बनर्जी का कल्ट बना है। जब तक इनके मुकाबले ज्यादा बड़ी ब्रांडिंग करके कोई दूसरा कल्ट नहीं खड़ा किया जाता है, तब तक इनको हरा पाना मुश्किल हो जाएगा।
केंद्र की राजनीति में नरेंद्र मोदी के साथ ऐसा ही हुआ है। उनका इतना बड़ा कल्ट बन गया है कि उन्हें चुनौती देने वाला चेहरा ही किसी को नहीं सूझ रहा है। घूम फिर कर सारी बहस इस पर आ जाती है तो उनके मुकाबले कौन है। उनके मुकाबले कोई भी हो सकता है लेकिन कल्ट की राजनीति को स्थापित करने के सिद्धांतों के तहत हमेशा कोई ऐसा चेहरा आगे किया जाता है, जिसे पहले बदनाम करके खराब साबित कर दिया गया हो। जैसे हर समय मोदी के मुकाबले राहुल गांधी का चेहरा आगे किया जाएगा। राहुल गांधी किसी तरह से दावेदार नहीं हैं। वे पहले मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं रहे हैं। लेकिन हर सर्वेक्षण में, हर बहस में मोदी के मुकाबले राहुल गांधी का नाम लाया जाएगा और मोदी को उनसे बहुत बेहतर साबित किया जाएगा। इस तरह लोगों के अवचेतन में भी यह बात बैठाई जा रही है कि मोदी ही एकमात्र सहारा हैं। जो एक बार सत्ता में आ जाता है उसके लिए यह आसान हो जाता है कि वह अपने विरोधियों को बदनाम करे और सरकारी खर्च पर अपनी छवि चमकाए। यह काम जो जितने प्रभावी तरीके से कर रहा है उसका कल्ट उतना मजबूत हो रहा है।