बेबाक विचार

तीन दिन में ये हुआ!

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तीन दिन में ये हुआ!
आज ‘गपशप’में छह दिसंबर 1992 की यादें हैं। उस दिन अयोध्या में विवादित ढांचा टूटा था तब मैं दिल्ली में नरसिंहराव सरकार का चश्मदीद था। उस दिन का ही नहीं, बल्कि उससे ठीक पहले और बाद के हफ्तों में दिल्ली में प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर नॉर्थ ब्लॉक और कांग्रेस मुख्यालय में क्या कुछ था, पार्टी में क्या हो रहा था और सरकार कैसे फैसले कर रही थी, इसका पूरा ब्योरा तब जनसत्ता में हर रविवार को छपने वाले मेरे इसी ‘गपशप’ कॉलम में छपा था। उस समय छपी गपशप के कुछ हिस्से इस बार गपशप कॉलम में इसलिए दे रहा हूं क्योंकि छह दिसंबर 1992 ही अयोध्या विवाद या राम जन्मभूमि मंदिर मसले का निर्णायक मोड़-मुकाम था जिसके नतीजे मेंआज मुकाम सन् 2020 की पांच अगस्त है। आजादी के बाद अयोध्या में राम मंदिर विवाद के कुल चार मोड़ है। पहला मोड़विवादित ढांचे में मूर्ति रखने का दिन था। दूसरा मोड़ राजीव गांधी राज में बंद मूर्ति से ताला हटने का दिन था। तीसरा मोड़ छह दिसंबर 1992 को मसजिद का ध्वंस था। अब पांच अगस्त 2020 चौथा मोड़ इसलिए है क्योंकि भारत का प्रधानमंत्री अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन करेंगा। सोचे आजादी बाद के इन चार मोड़ पर! अपना मानना है और इतिहासजन्य सत्य की सबसे बड़ी घटना व घ़ड़ीछह दिसंबर 1992 को मसजिद के ढ़ाचे के ध्वंस और उसके बाद सपाट मैदान पर रामलाल मूर्ति के अस्थाई मंदिर बनने की थी। यदि उस दिन बाबरी मसजिद के ढ़ाचे का ध्वंस नहीं होता और लोगों के भागने, चले जाने के बाद नरसिंहराव वहां अस्थाई मंदिर नहीं बनने देते और वे संसद में मसजिद के पुर्ननिर्माण का बयान दे देते तो सोचे इतिहास किधर जाता? तभी कोई माने या न माने छह दिसंबर 1992 के दिन को भारत इतिहास में हमेशा निर्णायक मोड़ के रूप में याद रखा जाएगा। छह दिसंबर की विश्व हिंदू परिषद और भाजपा की कार सेवा की घोषणा ने दिल्ली में नरसिंह राव सरकार को दुविधा में डाला था। कार सेवा रोकी जाए या होने दी जाए, इसमें अदालत की क्या भूमिका हो, क्या राज्य की कल्याण सिंह सरकार को पहले ही बरखास्त कर दिया जाए? इस किस्म के अनेक विकल्पों पर तब विचार था। विवादित ढांचा टूटा तो मानों उससे पहल सब सोए हुए थे। तभी अनेक लोगों ने प्रधानमंत्री नरसिंह राव पर ठिकरा फोड़ा। ढांचा टूटने के बाद कई दिन तक विचार होता रहा कि अब क्या हो। ट्रस्ट बनाने से लेकर मंदिर बनवा देने और मस्जिद के पुनर्निर्माण जैसे अनेक विकल्पों पर विचार हुआ। नरसिंह राव ने सारे विकल्पों पर चर्चा होने दी और अंततः यथास्थिति बनवाए रखी। सो, छह दिसबंर, उससे पहले यानी नवंबर के आखिरी हफ्ते और उसके बाद के हफ्तों में जो कुछ हुआ उसकी तब की चुनिंदा गपशप रिप्रिंट पेश हैं। इससे तब के हालात समझ आएंगे। यह अंदाजा होगा कि नरसिंह राव की डेढ़ साल पुरानी, अल्पमत की सरकार ने उस समय जो किया उसी का नतीजा है कि पांच अगस्त 2020से अयोया में राममंदिर का निर्माण प्रारंभ है। तीन दिन में ये हुआ! छह दिसंबर को अयोध्या में जब ढांचा गिराया जा रहा था, क्या उस वक्त प्रधानमंत्री और उनका दफ्तर सो रहा था? कई मंत्रियों का ऐसा मानना है। हिसाब से ग्यारह बजे तक प्रधानमंत्री को कारसेवकों के उन्माद की खबर पहुंचनी चाहिए थी। गृह मंत्रालय में सरगर्मी साढ़े बारह बजे से शुरू हुई। एक बजे यूपी सरकार का संदेश आया कि हालात बेकाबू हैं और पच्चीस कंपनी चाहिए। एक बजे करीब प्रधानमंत्री निवास और दफ्तर फोन होने लगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री माखनलाल फोतेदार सहित कई ने फोन करके पूछा- अयोध्या में क्या हो रहा है? किसी को साफ जवाब नहीं मिला? चंद्रशेखर के अनुसार वे उस दिन चंडीगढ़ में थे और गृह सचिव गोडबोले के स्तर तक फोन करते रहे, उन्हें ढांचे को ढहाने की क्रमवार सूचना मिलती रही पर सरकार के एक्शन का ब्योरा नहीं मिला। मंत्रियों को इतना भर कहा गया कि शाम छह बजे कैबिनेट बैठक है। कैबिनेट की बैठक हंगामी थी। दूरदर्शन से प्राप्त अयोध्या की घटना का कैसेट दिखाया गया। देखकर मंत्री हिल उठे। नरसिंह राव ने अपनी तरफ से पहल करके विश्वासघात और धोखा खाने की बात कही। संतोष मोहन देव और सुखराम ने प्रधानमंत्री के प्रयासों के समर्थन में प्रस्ताव रखना चाहा। अन्य मंत्रियों ने डांट दिया। क्या अभी इसकी जरूरत है? फिलहाल संकट देश की एकता-अखंडता का है। उसको लेकर सरकार के निश्चय पर विचार हो। बहरहाल, बैठक का अहम निर्णय यूपी सरकार की बरखास्तगी, राष्ट्र के नाम संदेश के थे। अध्यादेश पर राष्ट्रपति के नौ बजे दस्तखत हुए। सोमवार को सवेरे कोई डेढ़ घंटे फिर कैबिनेट की बैठक हुई। भाजपा की तीन सरकारों को भी बरखास्त करने का विचार आया और एकराय नहीं बनी। उस दिन सवेरे दिल्ली के अखबारों में राज्य सत्ता को अपनी ताकत के उपयोग का साफ आह्वान था। दो संपादकियों में मस्जिद को फिर बनवाने, आडवाणी जैसों को गिरफ्तार करने का आह्वान था। कैबिनेट ने इस समर्थन पर संतोष व्यक्त करके प्रधानमंत्री के संसद में पढ़े जाने वाले भाषण की रूपरेखा बनाई। खबर फैल गई कि प्रधानमंत्री पूरी तरह अर्जुन सिंह के कहने में आ गए हैं। उन्होंने जो सुझाव दिए, उन्हीं पर नोट बना। अगले दिन इसी तर्ज पर अर्जुन सिंह के कमान संभाल लेने की खबर भी छपी। पर संसद में रामो-वामो ने प्रधानमंत्री को बयान नहीं पढ़ने दिया। सदन नहीं चला। कांग्रेसी दिन भर खुसर-पुसर और बैठकें करते रहे। शाम को अर्जुन सिंह ने सोनिया गांधी से मुलाकात की। संकट के ऐसे समय में पहल का आग्रह किया। पर सोनिया गांधी ने इतना भी नहीं कहा कि आपको कुछ पहल करनी चाहिए। उलटे वे बोली कि इस समय नरसिंह राव के हाथ मजबूत किए जाने चाहिए। देर रात यूपी के राज्यसभा के एक जद सांसद के साथ अर्जुन सिंह और वीपी सिंह में बात हुई। वीपी सिंह ने कहा बताते हैं कि अब इस्तीफा देकर पहल का वक्तआ गया है। राय जंची नहीं। सवेरे खास सांसदों से मंत्रणा हुई। मंगलवार को सवेरे लालकृष्ण आडवाणी गिरफ्तार हो चुके थे। अर्जुन सिह ने सिर पीट लिया। यह कैसे हुआ? अर्जुन सिंह से लेकर फोतेदार और तमाम लोगों ने गृहमंत्री चव्हाण से पूछा- यह गिरफ्तारी कैसे हुई? जवाब मिला कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर हुई है। बहरहाल ये मंत्री उस दिन झल्लाते मिले कि पता नहीं किस से पूछकर निर्णय होते हैं? लालकृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी ने सारा माहौल बदल दिया। भाजपा सांसदों ने सदन नहीं चलने दिया। कांग्रेसी हतप्रभ। बावजूद इसके कांग्रेस संसदीय पार्टी की बैठक में माहौल अलग था। मुकुल वासनिक के प्रारंभिक भाषण के बाद नरसिंह राव विस्तार से बोले। तालियां-दर-तालियां। मानो नरसिंह राव ने कोई तीर मारा हो। भाषण खत्म तो अर्जुन सिंह ने उंगली खड़ी कर प्रधानमंत्री को संकेत दिया। प्रधानमंत्री ने पूछा क्या बात है?अर्जुन सिंह बोले- मैं धन्यवाद प्रकट करना चाहता हूं। परंपरा के विपरीत प्रधानमंत्री ने अपने बाद अर्जुन सिंह को बोलने को कहा। कोई पंद्रह मिनट तक अर्जुन सिंह ने धन्यवाद प्रकट किया एक लाइन थी कि उन्होंने शुरुआत कांग्रेस से की है। कांग्रेस के प्रति पूरे वफादार हैं और मृत्युपर्यंत कांग्रेस के वफादार रहेंगे। सांसद सोचते रहे कि अर्जुन सिंह ने राव साहब के प्रति वफादार रहने का बात क्यों नहीं की? बहरहाल मंगलवार के दिन अर्जुन खेमे का यह प्रचार शुरू हुआ कि नरसिंह राव उनके कहने में नहीं हैं। न आडवाणी की गिरफ्तारी की उनकी सलाह है और न वहां मस्जिद पुनर्निर्माण की बात कही है। मंगलवार की शाम को चार सूत्री कार्यक्रमों की घोषणा हुई। बुधवार को संसद नहीं चली। कांग्रेस सांसद गृहमंत्री एसबी चव्हाण के इस्तीफे का दबाव बनाने में मशगूल नजर आए। संसद सप्ताह भर के लिए स्थगित। वीपी सिंह और चंद्रशेखर ने नरसिंह राव का इस्तीफा मांगा तो प्रधानमंत्री ने वामपंथियों के साथ मिलकर सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई की घोषणा की। मुस्लिम सांसदों, मंत्रियों की बैठकों और इस्तीफों की दिन भर चर्चा चलती रही। लगभग ऐसी ही स्थिति गुरुवार को थी। संगठनों पर प्रतिबंध की घोषणा में देरी को लेकर चर्चा का जोर रहा। (13 दिसंबर, 1992)
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