नवीनतम मामला बैटरी चलित कारों के भविष्य को लेकर पैदा हो रहा है। दुनिया को कार्बन से मुक्ति दिलाने के लिए पूरी दुनिया में बैटरी चलित वाहनों के उपयोग का फैसला लिया गया है पर क्या कभी हमने सोचा है कि क्या हमारे देश में इनकी बैटरी तैयार करने की पर्याप्त क्षमता हैं या नहीं? बिना बैटरी उत्पादन की क्षमता हासिल किए यह कार बनाने का फैसला तो अग्निशमन विभाग द्वारा बिना पानी के इंतजाम के शहर में आग लगा कर उसे बुझाने की कोशिश करने जैसा है।
हमारा देश गजब है। कई बार जहां जल्दबाजी में कुछ ऐसे फैसले ले लिए जाते हैं कि जिन पर फिर अमल कर पाना मुश्किल होता है। आमतौर पर सरकार के ज्यादातर फैसले आम आदमी को परेशान करने वाले ही होते हैं। नवीनतम मामला देश में चल रही पेट्रोल व डीजल की गाड़ियों को समाप्त कर उनकी जगह बैटरी कारें चलाने का है। सरकार ने फैसला करते समय एक बार भी यह नहीं सोचा कि जिन लोगों ने अपने जीवन भर की कमाई जोड़कर कारें खरीदी थी। उनकी कारों को नष्ट कर देने का फैसले लेने के बाद उनका क्या होगा? मंहगाई व बेरोजगारी के दौर से देश पहले ही गुजर रहा है। वहीं देश में ऐसे भी लोग है जिनकी महीने भर की आय महज 2500 रुपए है जो कि पेंशन के रुप में उन्हें मिलती है।
हमारे जैसे पेंशन पर जीने वाले लोगों को तो कोई नई कार खरीदने के लिए कर्ज तक नहीं देता क्योंकि कर्ज की किश्त चुकाने के लायक हमारे पास कोई नियमित आय नहीं है। मैंने देखा है कि हमारे देश में सरकारें फैसला लेने के बाद यह सोचती हैं कि उन पर अमल कैसे किया जाता है। पहले सड़क बनाने का फैसला लिया जाता है। फिर दिल्ली जैसे महानगर में नगर निगम उसे खोद कर वहां नाली या सीवर लाइन की पाइप बिछाने लगता है। अब नवीनतम मामला बैटरी चलित कारों के भविष्य को लेकर पैदा हो रहा है। दुनिया को कार्बन से मुक्ति दिलाने के लिए पूरी दुनिया में बैटरी चलित वाहनों के उपयोग का फैसला लिया गया है पर क्या कभी हमने सोचा है कि क्या हमारे देश में इनकी बैटरी तैयार करने की पर्याप्त क्षमता हैं या नहीं?
इस संबंध में इंटरनेशनल एनर्जी एसोसिएशन की नवीनतम रिपोर्ट चौंकाने वाली है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में बैटरी में इस्तेमाल होने वाला सारा कच्चा माल व बैटरी ज्यादातर चीन के द्वारा ही सप्लाई की जाती है। सबसे ज्यादा बैटरी बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले खनिज पदार्थों में हैं लीथियम, निकेल व कोबाल्ट, ग्रेफाइट पूरी दुनिया में पैदा होने वाले इन पदार्थों का 80 फीसदी उत्पादन चीन में होता है। इनके बिना बिजली से चलने वाले कार की बैटरी तैयार ही नहीं की जा सकती है। सिर्फ कोबाल्ट ही चीन के अलावा किसी और देश ‘कांगो’ से लिया जा सकता है मगर वहां लंबे अरसे से चल रही राजनीतिक अस्थिरता के कारण इसकी सतत आपूर्ति हो पाना लगभग मुश्किल ही है।
बाकी खनिज जैसे लीथियम, ग्रेफाइट, निकेल चीन के अलावा कुछ और देश जैसे आस्ट्रेलिया व इंडोनेशिया में मिलते हैं पर वहां भी चीन की कंपनियों का कब्जा है। वहां पर चीन का जितना कब्जा है वह दुनिया भर के तेल व गैस के भंडारों पर हुए दूसरे देश के कब्जें से कहीं ज्यादा है। इसके अलावा दुनिया भर में मिलने वाले 70 फीसदी लीथियम, 70 फीसदी कोबाल्ट व 80 फीसदी ग्रेफाइट व 40 फीसदी निकेल की प्रोससिंग चीन ही करता है। इनके अलावा बैटरी में लगने वाले एनोड व कैथोड का 70-80 फीसदी उत्पादन में चीन का ही हिस्सा है। दक्षिण कोरिया व जापान ने जरुर थोड़ी बहुत मात्रा में यह एनोड व कैथोड तैयार किए जाते हैं।
पूरी दुनिया में तैयार की जाने वाले 50 फीसदी बैटरी चीन द्वारा ही तैयार की जाती है। वहीं अमेरिका में दुनिया में मौजूदा बैटरी कारों का महज 10 फीसदी कारें ही है। भारत का इस मामले में कहीं कोई नाम भी नहीं आता। आंकड़े बताते हैं कि चीन व अमेरिका दुनिया का 40 फीसदी हिस्सा अपने यहां इलेक्ट्रिक वाहन बनाने पर तैयार कर रहे हैं जबकि योरोप के इलेक्ट्रिक वाहनों पर 70-80 फीसदी खर्च किया जा रहा है।
हमारे देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के ऊपर तमाम कंपनियां होने के बावजूद भी ज्यादा कुछ खर्च नहीं किया जा सकता है। अभी तो शुरुआत भर है। अतः उसे देख हम कह सकते हैं कि इलेक्ट्रिक वाहनों के निर्माण के लिए भारत को चीन सरीखे अपने शत्रु देश पर ज्यादा निर्भर नहीं रह सकता है। अभी तक दूसरे देशों ने बैटरी तैयार करने में लगने वाले खनिजों की खानों तक हासिल करने में सफल नहीं हुए हैं। हम अभी भी इनके लिए दूसरे देशों में खानों का पता लगाने में जुटे हुए हैं। न ही हमने आस्ट्रेलिया में व दूसरे देशों में इन खनिजों की खोज कर उनका खनन करने में कोशिश करने के लिए कोई काम किया। न ही हमारे देश में इस क्षेत्र में किसी कंपनी ने इस क्षेत्र में कोई रूचि ही दिखाई है।
चीन जैसे दुश्मन देश पर निर्भर रहते हुए यह वाहन बनाने की कोशिश हमारे लिए कितनी खतरनाक व मंहगी साबित हो सकती है। यह आशंका निकट भविष्य में बहुत सच साबित हो सकती है। इस बीच खनिजों की सप्लाई सुनिश्चित किए बिना पुराने वाहनों को कबाड़ घोषित कर नए वाहनों को लाना एक बहुत बड़ा गलत फैसला हो सकता है। जरा कल्पना की जिए की निकट भविष्य में इन कारों मालिको की तब क्या हालत होगी जब देश में इन बैटरियों का अकाल हो जाएगा।
अभी भी कार उत्पादन में इस्तेमाल होने वाले सामानों की कमी के कारण उनका उत्पादन बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है व देश में पहली कार निजी क्षेत्र की वेदांता ने भारत में सुपर चिप बनाने के लिए कंपनी स्थापित करने का ऐलान किया है। भविष्य में इनका क्या होता है यह तो आने वाला समय ही बताएगा। यहां यह याद दिलाना जरुरी हो जाता है कि सप्लाई के लिए दूसरे देश कितना ब्लैकमेल करते है यह इतिहास में भरा हुआ है।
कुछ माह पहले अमेरिका ने पाकिस्तान को दिए गए एफ-15 विमान के पुर्जे देने पर ही रोक लगाने का ऐलान कर दिया था। वैसे भी पुरजे तो दूर वह उसकी उड़ान के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले इंजन आयल को भी अमेरिका की कंपनी से ही खरीदना होता है। ऐसा न करने पर विमान की गारंटी समाप्त हो जाती है और वे सब खड़े खड़े कबाड़ में बदल जाता है।
हमारे साथ ऐसा हुआ तो उद्योग का क्या होगा। क्या कभी सरकार ने इस बारे में कुछ सोचा है। यहां याद दिलाना जरुरी हो जाता है कि लगभग एक दशक पहले सरकार ने गैस पर चलने वाली कारे लेने के लिए कानून बनाया था। तब भारत में ज्यादातर कारे इटली की एक कंपनी सप्लाई करती थी। कुछ साल बाद सरकार ने इनकी कमी होने का ऐलान करते हुए आदेश को वापस ले लिया था मगर इस कारण यह कार रखने वालों को बेहद दिक्कत का सामना करना पड़ा था।
बिना बैटरी उत्पादन की क्षमता हासिल किए यह कार बनाने का फैसला तो अग्निशमन विभाग द्वारा बिना पानी के इंतजाम के शहर में आग लगा कर उसे बुझाने की कोशिश करने जैसा है। सिर्फ बैटरी बल्कि आज भी हम कारों के निर्माण में काम आने वाले करीब 25 फीसदी कलपुरजे भी चीन से आयात करते हैं। ऐसे में चीन द्वारा इनके निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने की हालत में हमारे कार उद्योग का क्या होगा कभी सरकार ने इस बारे में कभी कुछ सोचा है।