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समाज का पोस्टमार्टम जरूरी या व्यक्ति का?

यदि कौम, नस्ल, राष्ट्र को समझना है तो पहले शरीर की जैविक रचना की चीरफाड़जरूरी है। मसला क्योंकि हिंदू का है तो हिंदू धर्म अनुसार ही धर्म धारणाओं में यदि विचार करें तो सटीक होगा।.. दुनिया में बाकि सभ्यताओं, धर्मों की मनोवैज्ञानिक चीरफाड़ बहुत हुई है। लगातार विचार विश्लेषण है लेकिन हिंदू को लेकर लगभग नहीं। अपना कलियुगी शरीर–जीवन वैश्विक गंगा में लावारिश बहता हुआ है।

भारत कलियुगी-7: कलियुग अपना पक्का, स्थायी!

Bharat Kaliyugi Post Mortem : भारत कलियुगी-8: सवाल है समस्या की जड़ कलियुगी समाज है या व्यक्ति? भारत यदि सत्य की जगह झूठा वकलियुगी हैतो शरीर-जीवन की भ्रष्टताओं,दुर्घटनाओं के चलते ऐसा है या समाज से? लोगों की सामूहिक खोपड़ी-समाज का पोस्टमार्टम हो या प्रतिनिधि हिंदू शरीर का, जिससे पतन के कारणवैज्ञानिकता से मालूम हो।

मसला क्योंकि धर्म, समाज, देश का है इसलिए आमतौर पर दुनिया ने भीड़ के समूह में भारत का पोस्टमार्टम किया है। गोरी-गजनी से लेकर ईस्ट इंडिया कंपनी के गोरों ने हिंदुस्तान की समग्र तस्वीर बूझ कर विजय की भारत मंजिल बनाई। ऐसे ही आधुनिक वक्त में पृथ्वी के बाकी लोगों ने, देशों ने और अपने खुद के विचारकों ने भी समाज पर फोकस रखा। अंग्रेजों के भारत आने के बाद दुनिया से संपर्क में बने हिंदू सुधीजनों राम मोहन राय, रविंद्रनाथ टैगोर, महर्षि दयानंद, विवेकानंद, लाल-बाल-पाल, गांधी, सावरकर आदि सबका फोकस समाज (उसी से राजनीति) था।

 

समाज सुधार की कोशिश हुई, राष्ट्र आजादी की हूक बनी तब भी यह विचार नहीं हुआ कि इस सबका फायदा किया होगा यदि हिंदू व्यक्ति-जीवन पांच हजार साल की मुर्दनगी में जीता रहा। सो, पहले शरीर-उसके हिंदू जीवन को समझें। जिस शरीर, जिसके अवचेतन से धर्म, समाज और राष्ट्र है उस शरीर की संरचना को तो पहले जाना जाए! उसकी गुलामी, उसके भय, उसके अवचेतनका पहले डायग्नोसिस हो? मगर हिंदुओं के धर्मगुरुओं, समाज सुधारकों, चिंतकों, स्वतंत्रता संघर्ष के नेतृत्वकर्ताओं, राष्ट्र निर्माताओं ने यह जरूरी नहीं माना। कुछ ने समझा-माना तो अपनी स्वकेंद्रित बुनावट और अपने स्वार्थों में उसे छिपाया, नजरअंदाज किया।

भारत कलियुगी- 6: सतयुग से कलियुग ट्रांसफर!

Bharat Kaliyugi Post Mortem : अपनी धारणा है कलियुगी भारत की वजह आम हिंदू शरीर की बुनावट, सरंचना है। मुख्य बात शरीर है। शरीर ही बीज है, जिसके आचरण, प्रस्फुटन से पेड़ (हिंदू बरगद) की दशा-दिशा है। हिंदू जीवन में यही निर्णायक-महत्व का कोर मसला है। इसलिए भी क्योंकि हम मूर्तिपूजक हैं। मूर्ति पूजा शरीर-व्यक्ति-व्यक्तित्व केंद्रित होती है।

Bharat Kaliyugi Post Mortem :क्या कभी किसी ने सोचा कि सौ साल पहले तक लगातार लगभग तीस करोड़ लोगों की हिंदू आबादी के साथ 32 करोड़ देवी-देवताओं की कल्पना या जुमला क्यों था? अपना मानना है ऐसा हिंदू की धर्मगत अहम ब्रह्मास्मि याकि अहम केंद्रित, शरीर-दिमाग द्वारा व्यक्तिगत मोक्ष और कर्मफल की बुनावट से था। हर हिंदू शरीर अपने नाम की मंदिर में पट्टी, दान-दक्षिणा-पुण्य अंकित कराते हुए अपने को अजर-अमर, भगवान बनाने का मन में लक्ष्य लिए होता है। कोई आश्चर्य नहीं कि सहस्त्राब्दियों से आबादी जितने देवी-देवता, देवालय बनते गए।

जो मंदिर बनाते है, उनका शिलान्यास करते-करवाते हैं, या मूर्तियां बनवाते हैं वे दरअसल उससे अपनी देव छवि बनाने का मनोविज्ञान लिए होते हैं। नरेंद्र मोदी राम मंदिर और मूर्ति बनवाते रामजी की प्राण प्रतिष्ठा से अधिक हिंदुओं में अपना मंदिर, देवालय बनाने के लक्ष्य का अवचेतन लिए हुए हैं। तभी कलियुगी भारत की नंबर एक पहचान है, जिसमें अर्थ, काम, मोक्ष याकि जीवन के पौरुष अंततः इस लक्ष्य, अहंकार में बंधे होते हैं कि वह महान हो रहा है या नहीं और मोक्ष-मूर्ति बनवा रहा है या नहीं! …इसमें समाज, धर्म, राष्ट्र-देश कहीं नहीं, बल्कि व्यक्ति का अहम, अमरत्व ही सर्वोच्च।

भारत कलियुगी-5: खोखा शरीर, मरघट पर अटका!

Bharat Kaliyugi Post Mortem : बहरहाल, शरीर और जीवन का पोस्टमार्टम जरूरी है यदि कौम, नस्ल, राष्ट्र को समझना है। पहले शरीर की जैविक रचना को जानना चाहेगा। मसला क्योंकि हिंदू का है तो हिंदू धर्म अनुसार ही यदि धर्म धारणाओं में विचार करें तो सटीक होगा।

हिंदू धर्म में मान्यता है कि जीवित शरीर की व्यक्तिवादी चेतनता ‘दिल-दिमाग’ से बने ‘चित्त’ से है। इसकी हलचल में ‘वृत्ति’ मतलब तर्क-विचार-भावना लिए होती है। दिल-दिमाग उर्फ ‘चित्त’ तीन तरह के ट्रैक से उद्वेलित-धड़कता-चलता हुआ हो सकता है। ये हैं- मानस, अहंकार और बुद्धि। मानस या मनस मतलब अंतर्मन जो कि स्मृति-अनुभूति-सेंसरी प्रोसेस से बना होता है। अहंकार मतलब अपने आपका बोध, अपनी पहचान, अपने होने का गुमान। बुद्धि का अर्थ सत्य-कल्पना में फैसले, निर्णय।

Bharat Kaliyugi Post Mortem : जाहिर है हिंदू धारणा में दिल (भावना)-दिमाग (विचार गुच्छ) दोनों को ‘चित्त’ में बांध बहुत गुड़गोबर हुआ पड़ा है। तभी हिंदू जीवन की रियलिटी में ‘चित्त’ ही वह ’अवचेतन’ है, जो स्मृति-यादों-ख्यालों और भावना व अहंकार में दूसरे धर्मों, दूसरी नस्लों, कौमों से अलग तरह की खिचड़ी बनाए हुए है। तभी दुनिया को देखने-समझने के बाद स्वामी विवेकानंद का कहा यह वाक्य गहरा है- मैं क्या हूं? एशियाटिक, यूरोपीय या अमेरिकी? मुझे लगता है मैं दिलचस्प व्यक्तित्वों का मेल (curious medley of personalities खिचड़ी) हूं।

भारत कलियुगी-4: शववाहिनी गंगा और बूढ़ा बरगद!

Bharat Kaliyugi Post Mortem : मैं भटक गया हूं। लौटा जाए पोस्टमार्टम पर। सवाल है बतौर शरीर हिंदू मृत व्यक्ति का डॉक्टर यदि पोस्टमार्टम करें व घटना-दुर्घटना (क्यों कलियुगी हुआ?) का विश्लेषण करें तो वह कैसे हो? यह सवाल आधुनिक काल में जीवन और शव के रिकार्ड में मनोवैज्ञानिक डॉक्टर की सायक्लोजिकल ऑटोप्सी याकि मनोवैज्ञानिक चीरफाड़ के नए आधुनिक तरीके के चलते है। इसे मैं अहम मानता हूं। हकीकत है कि दुनिया में बाकी सभ्यताओं, धर्मों की मनोवैज्ञानिक चीरफाड़ बहुत हुई है।

Bharat Kaliyugi Post Mortem :लगातार विचार विश्लेषण है। लेकिन हिंदू को लेकर लगभग नहीं। अपना कलियुगी शरीर-जीवन वैश्विक गंगा में लावारिस बहता हुआ है। अपने स्वतंत्र-समझदार और संख्या में इने-गिने सुधीजनों में भी यह सोचना शुरू नहीं हुआ है या लगभग नहीं के बराबर है कि बतौर व्यक्ति, बतौर समाज, बतौर राष्ट्र जैविक-मनोवैज्ञानिक चीर-फाड़ करके यह बूझा-समझा जाए कि दूसरी सभ्यताओं का सतयुग में जीना है और हमारा कलियुगी जीना है तो कारणों की चीरफाड़, ऑटोप्सी क्यों न हो।

बहरहाल शरीर ही व्यक्ति जीवन का सार है, उसके जीने के अंदाज की बुनावट है। तब कल्पना करें कि शरीर के बतौर पोस्टमार्टम क्या निष्कर्ष बनेगा? संक्षेप के इन बिंदुओं पर मंथन बनाएं-

भारत कलियुगी-3: बैलगाड़ी से चंद्रयान…फिर भी गंगा शववाहिनी!

Bharat Kaliyugi Post Mortem : दिमाग- बाकी नस्लों के मुकाबले छोटा-बूढ़ा, भेड़-बकरी माफिक। डीएनए-जीवाष्म-तंत्रिकाएं-जर्जर, बिखरी असंबंद्ध। दिल और संवहन का कार्डियोवैस्क्युलर तंत्र- नसें दबी-बिखरी और हाइबरनेशन दशा वाला ठंडा गुलाम खून। पल्स कम और लगभग मुर्दनगी। फेफड़ा- तमाम तरह के वायरस, इतिहास के प्रदूषण की जमा काली परतें। कंकाल तंत्र- कमजोर-घिसा हुआ और ओलंपिक लायक नहीं। किडनी-गुर्दा-पाचन तंत्र- सदियों की गुलामी, भूख में सहनीय व असंख्य रोगों के अनुभवों को पचा लेने में समर्थ। कुल जमा निष्कर्ष- आश्चर्य ऐसे कमजोर-जर्जर शरीर के बावजूद इतनी लंबी जीवन उम्र!

सो, एक तरफ आश्चर्यजनक बीमार-जर्जर जैविक रचना लेकिन दूसरी तरफ लंबा जीवन!

तो शरीर के उपरोक्त पोस्टमार्टम से हिंदू कलियुगी पापी जीवन का क्या खुलासा?

भारत कलियुगी-2: महामारी से साबित स्थाई अंधयुग!

Bharat Kaliyugi Post Mortem : जो है वह शरीर के भीतरी ‘चित्त’ से है! ‘चित्त’ की वृत्तियों से शरीर जीवन खोखला है। बुद्धि बूढ़ी-छोटी और भेड़-बकरी माफिक। डीएनए-जीवाष्म का छिन्न-भिन्न स्वरूप उन जीवों का प्रतिबिंब जो ठंडे-बर्फीले मौसम में खून ठंडा कर, दिल की धड़कनों को कम करके सोते हैं, बहुत कम चर्बी के बल से बिना खाए-पीए पड़े रहते हैं और कुंभकर्णी गहरी नींद के सपनों में जीवन जीते हुए वक्त काटते जाते हैं। लब्बोलुआब हाइबरनेशन में जैसे-तैसे जिंदा रहना और फिर गंगा शववाहिनी में लावारिस लाश। अब अपनी ऐसी अवस्था,ऐसे ‘चित्त’ वाले कलियुगी शरीर जीवन पर चाहे तो गौरव करें या यह सोचें कि ऐसा शरीर, जीवन, सभ्यता किस काम के।

भारत कलियुगी-1: अकेले भारत, हिंदू ही कलियुगी!

Bharat Kaliyugi Post Mortem : अगली जरूरत है शरीर जिस दिमाग में जीता था, जीता रहा है, जीता हुआ है उसकी मनोवैज्ञानिक ऑटोप्सी याकि मनोदशा की चीरफाड़ की जाए। बूझें कि हमारा जीवन शरीर किस दिमाग और ‘चित्त’ भाव में जीता है? (जारी)

By हरिशंकर व्यास

भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक।  ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।

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