कोरोना संकट के शोर में कई अहम खबरें इन दिनों दब जा रही हैं। उनमें ही एक खबर यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को उपभोक्ता का दर्जा दे दिया है। इसका नतीजा यह होगा कि ये मजदूर अपने अधिकार पाने के लिए उपभोक्ता फोरम का सहारा ले सकेंगे। भवन निर्माण उद्योग भारत में महत्वपूर्ण उद्योगों में शामिल है, लेकिन वहीं काम करने करने वाले मजदूरों को कठिन परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में बिल्डिंग निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले देश के लगभग तीन करोड़ पंजीकृत श्रमिकों को उपभोक्ता का दर्जा दिया है। भवन और अन्यग निर्माण कर्मी अधिनियम- 1996 के तहत हर राज्य को निर्माण क्षेत्र के श्रमिकों के लिए एक कल्याण बोर्ड बनाना होता है। इन श्रमिकों को कई तरह की सहायता देने के उद्देश्य से बिल्डरों से एक प्रतिशत कर लिया जाता है। यह कर जिस कोष में जाता है, उसका इस्तेमाल इन श्रमिकों को और उनके परिवार को विभिन्न लाभकारी योजनाओं के तहत लाभ देने के लिए किया जाता है। श्रमिक भी इस कोष में अपनी कमाई से छोटा सा योगदान देते हैं।
कल्याण बोर्ड जिन मामलों में श्रमिकों की मदद करते हैं उनमें शामिल हैं- दुर्घटना होने पर इलाज का खर्च, 60 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोगों को पेंशन, अपना घर बनाने के लिए लोन या एडवांस, श्रमिकों के लिए सामूहिक बीमे के प्रीमियम का भुगतान, बच्चों की पढ़ाई के लिए वित्तीय मदद, कोई बड़ी बीमारी हो जाने पर उसके इलाज का खर्च, महिला कर्मचारियों के लिए मैटरनिटी से जुड़े लाभ, इत्यादि। केंद्र और राज्य सरकारों के पास इस समय इस कर से इकठ्ठा की हुई राशि लगभग 52,000 करोड़ रुपए है, जबकि पंजीकृत श्रमिकों पर सिर्फ 17000 करोड़ रुपये के आसपास खर्च किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद, अगर किसी पंजीकृत श्रमिक को लगता है कि उसे कोष से अपेक्षित लाभ नहीं मिला है, तो वो उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम के तहत राहत मांग सकता है। ये एक बड़ा बदलाव है। भारत में 90 प्रतिशत श्रमिक असंगठित क्षेत्र में हैं, जिसकी वजह से उन्हें रोजगार से संबंधित न तो किसी तरह की सुरक्षा मिलती है और न ही कोई लाभ मिल पाता है। इसीलिए अब निर्माण क्षेत्र के श्रमिकों को मिली ये राहत महत्त्वपूर्ण है।
कंस्ट्रक्शन वर्कर्स को बड़ी राहत
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