बेबाक विचार

जरूरत है जागरूकता की

ByNI Editorial,
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जरूरत है जागरूकता की
एक नई शोध का नतीजा परेशान करने वाला है। आज के माहौल में इस पर चर्चा कम ही होगी, लेकिन ऐसी बातों को हम सिर्फ खुद के लिए जोखिम मोल लेते हुए नजरअंदाज कर सकते हैं। स्वास्थ्य की चेतना अगर समाज में हो, तो ऐसी सूचनाएं बेहद गंभीर मानी जाएंगी। दर्भाग्य से अपने समाज में ऐसी चेतना का घोर अभाव है। बहरहाल, शोध से सामने यह आया है कि इनसान बड़ी संख्या में प्लास्टिक के छोटे कणों का अनजाने में उपभोग कर रहे हैं। बहुत कम लोगों को इसके स्वास्थ्य पर होने वाले असर के बारे में पता है। ये छोटे कण तब बनते हैं जब प्लास्टिक के बड़े टुकड़े टूट जाते हैं। आयरलैंड के शोधकर्ताओं ने शिशुओं के 10 तरह की बोतलों या पॉलीप्रोपाइलीन से बने एक्सेसरीज के टूटने की दर पर शोध किया। गौरतलब है कि यह खाद्य कंटेनरों के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला प्लास्टिक है। शोधकर्ताओं ने दूध को बनाने और बोतल को स्टेरलाइज करने के बताए विश्व स्वास्थ्य संगठन के आधिकारिक दिशा-निर्देशों का पालन किया। 21 दिनों की परीक्षण अवधि में टीम ने पाया कि बोतलों ने 13 लाख से लेकर 1.62 करोड़ प्लास्टिक के माइक्रोपार्टिकल्स प्रति लीटर के बीच छोड़े। इसके बाद शोधकर्ताओं ने इस डेटा का इस्तेमाल स्तनपान की राष्ट्रीय औसत दरों के आधार पर बोतल से शिशुओं को दूध पिलाने के दौरान संभावित माइक्रोप्लास्टिक्स के वैश्विक जोखिम मॉडल तैयार करने के लिए किया। उन्होंने अनुमान लगाया कि बोतल से दूध पीने वाले शिशु औसत हर रोज 10.60 लाख माइक्रो पार्टिकल अपने जीवन के पहले 12 महीनों के दौरान निगल लेते हैं। यह शोध नेचर फूड जर्नल में छपा। शोधकर्ताओं का कहना है कि स्टेरलाइजेशन और पानी के उच्च तापमान माइक्रोप्लास्टिक के टूटने का मुख्य कारण है। शोध के लेखकों के मुताबिक शोध का लक्ष्य था बोतल से निकले वाले माइक्रोप्लास्टिक के संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में लोगों को जागरूक बनाना। उन्होंने कहा कि शिशुओं के माइक्रोप्लास्टिक के कण निगल लेने के संभावित जोखिमों के बारे में हमें नहीं पता है। यह ऐसा विषय है जिस पर और अधिक गहराई से शोध की जरूरत है। शोधकर्ताओं के मुताबिक इन अमीर देशों में शिशुओं के कण निगलने का कारण स्तनपान की दर में कमी है। मगर ऐसा चलन अब भारत जैसे विकासशील देशों में भी बढ़ रहा है। इसलिए इस समस्या को लेकर अब सचेत होने की जरूरत है।
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