कैंसर भारत में एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। इस बार विश्व कैंसर दिवस पर इस समस्या की तरफ फिर ध्यान गया। खतरा सारी दुनिया में है। खास ध्यान विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दिलाया। इस समय करीब 1.8 करोड़ लोगों को कैंसर की बीमारी होती है। आने वाले दशकों में इसके दोगुना बढ़ने का खतरा है। 2018 में 1.81 करोड़ लोग कैंसर से पीड़ित हुए। इसकी वजह से करीब 96 लाख लोगों की मौत हो गई। डॉक्टरों का कहना है कि कैंसर की बीमारी में तेजी की वजह सिर्फ जीवनदर में वृद्धि नहीं है। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों ने अपने सीमित संसाधनों को कैंसर की बजाय संक्रामक रोगों से निपटने और बाल स्वास्थ्य में सुधार करने पर लगाया हुआ है। इन देशों में अक्सर कैंसर से होने वाली मौत भी अधिक होती है। जाहिर है, ये अमीर और गरीब देशों में कैंसर सेवाओं के बीच अस्वीकार्य असमानताओं से निपटने के लिए यह हमारे लिए जगने का समय है। अगर लोगों के पास प्राथमिक देखभाल और रेफरल सिस्टम होगा तो कैंसर की पहले ही पहचान हो जाएगी और प्रभावी ढंग से इलाज और उपचार हो पाएगा। कहीं भी किसी के लिए कैंसर मौत की सजा नहीं होनी चाहिए।
विश्व कैंसर दिवस के मौके पर जारी रिपोर्ट में कहा गया कि अगले दशक तक 25 अरब डॉलर के निवेश से 70 लाख लोगों को कैंसर से बचाया जा सकता है। दुनिया भर में कैंसर के मामले 2040 तक 60 फीसदी तक बढ़ने की आशंका है। रिपोर्ट में कहा गया कि तंबाकू का इस्तेमाल 25 फीसदी कैंसर से होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार है। डब्ल्यूएचओ के साथ काम करने वाली संस्था अंतरराष्ट्रीय एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के मुताबिक उच्च आय वाले देशों में कैंसर का बेहतर इलाज होने से 2000 से 2015 के बीच इससे मरने वालों की संख्या में 20 फीसदी की कमी आई है। लेकिन गरीब देशों में यह दर सिर्फ पांच फीसदी है।
एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2018 में कैंसर के कुल 11,57,294 नए मामले सामने आए हैं। इंडियन कैंसर सोसायटी के मुताबिक भारत में अगले 10 सालों में करीब डेढ़ करोड़ लोगों को कैंसर हो सकता है। इनमें से 50 फीसदी में कैंसर लाइलाज होगा। साफ है, कैंसर एक बड़ी चुनौती बन चुका है। दुखद यह है कि इससे निपटने की तैयारी उसी अनुपात में चुस्त नहीं हो रही है।